Friday, 3 April 2015

♥प्रेम-सार...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम-सार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्हें भुला दूँ आखिर कैसे, तुमसे मन का तार जुड़ा है। 
तुम्हें देखकर दुनिया देखूं, तुमसे ही संसार जुड़ा है। 
रोज तुम्हारे एहसासों को, मैं चुपके से छू लेता हूँ,
तुम लगती हो सबसे प्यारी, क्यूंकि तुमसे प्यार जुड़ा है। 

उजली धूप सुबह की तुमसे, ख्वाब रात के तुम लाती हो। 
तारे भी पुलकित होते हैं, सखी अगर तुम मुस्काती हो। 

मेरे घर की तुम संरचना, तुमसे ही आधार जुड़ा है। 
तुम्हें भुला दूँ आखिर कैसे, तुमसे मन का तार जुड़ा है...

तुम आलोचक हो शब्दों की, मगर विमोचन तुमसे ही है। 
गंगाजल सी पावन हो तुम, मन का शोधन तुमसे ही है। 
"देव" तुम्हारा साथ मिला तो, गति बढ़ी मेरे चलने की,
कुशल समीक्षक, सही गलत का, अवलोकन भी तुमसे ही है। 

तुम जीवन को सम्पादित कर, पीड़ा को विस्मृत करती हो। 
तुम ऊर्जा के सबल भाव से, नया पाठ उद्धृत करती हो। 

तुम बिन मेरा जीवन रीता, तुमसे मेरा सार जुड़ा है।  
तुम्हें भुला दूँ आखिर कैसे, तुमसे मन का तार जुड़ा है। "

...................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-०३.०४.२०१५

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