Tuesday, 7 April 2015

♥♥दस्तूर....♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दस्तूर....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पास भी होकर पास नहीं वो, दूर भी होकर दूर नही है। 
पर वो मुझसे मिल न पाये, इतना भी मजबूर नहीं है। 

अपने आंसू बहा बहा कर, जीवन की खेती को सींचा,
कोई किसी को पानी देगा, अब ऐसा दस्तूर नहीं है। 

बिना जुर्म के सज़ा मुझे दी, आज है क्यूंकि वक़्त तुम्हारा,
समय मगर खुद को दोहराये, वो दिन कोसों दूर नही है। 

तुमको अपना ग़म प्यारा है, मुझको अपने दुख से मतलब,
कौन है ऐसा जिसके दिल में, पीड़ा का नासूर नहीं है। 

उम्मीदों का महल बनाकर, साथ ग़मों के रहना सोना,
तन्हाई से बढ़कर अब तो, मुझको कोई हूर नहीं है।

आज मिली जो दौलत अपने, बीते दिन को भूल गया वो,
किन होठों से कह दूँ बोलों, देखो वो मगरूर नहीं है। 

"देव" घुला है दर्द ज़हर का, गला है नीला, आँख में लाली,
लोग भला कैसे न समझें, वो दारु में चूर नहीं है। "

.....................चेतन रामकिशन "देव"….....................
दिनांक-०८.०४.२०१५

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