Wednesday, 30 September 2015

♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझे आंसू भी दे डाले, मेरा दिल भी दुखाया है। 
किसी ने रात मेरे घर का दीपक, फिर बुझाया है। 
मेरी गलती महज इतनी, मैं सच का साथ दे बैठा,
ये दुनिया झूठ की थी पर, समझ में मुझको आया है। 

मगर मैं झूठ के लफ़्ज़ों को, कैसे मुंह बयानी दूँ। 
बहुत सोचा के झूठे पेड़ को, कैसे मैं पानी दूँ। 
बताओ "देव" कैसे बोल दूँ तेज़ाब को अमृत,
सिखाओ मैं अंधेरों को, भला क्यों जिंदगानी दूँ। 

सही है झूठ तो पुस्तक में, फिर क्यों सच पढ़ाया है।   
ये दुनिया झूठ की थी पर, समझ में मुझको आया है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०१.१०.२०१५  
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Wednesday, 23 September 2015

♥ इंतजार की आंच...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ इंतजार की आंच...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझ बिन तरस रहा होगा वो, रोकर बरस रहा होगा वो।
इंतजार की आंच में देखो, कैसे झुलस रहा होगा वो।
मुझको तो एक लम्हे को भी, खाली आँगन नहीं सुहाता,
नहीं पता कि तनहा कैसे, सालों-बरस रहा होगा वो।

पेड़ से कोई पत्ता टूटे, देखके डाली भी रोती है।
यदि कोई अपना बिछड़े तो, आँख भले ये कब सोती है।
कांटो के बिस्तर सी यादें, उसको पल पल चुभती होंगी,
मिलना चाहा, नहीं मिल सके, शायद ये किस्मत होती है।

नशा न उतरा आज भी उसका, शायद चरस रहा होगा वो।
नहीं पता कि तनहा कैसे, सालों-बरस रहा होगा वो ....

होती है तकलीफ बहुत ही, जुदा यदि चाहत होती है।
नहीं चैन मिल पाता दिल को, और नहीं राहत होती है।
"देव " मुझे मालूम है लेकिन, मेरे हाथ में वक़्त नहीं है,
वक़्त यदि जो रुख बदले तो, रूह यहाँ आहत होती है।

बारिश के बिन कड़ी धूप में, व्याकुल, उमस रहा होगा वो।
नहीं पता कि तनहा कैसे, सालों-बरस रहा होगा वो। "

........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-२३.०९.१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "

Sunday, 20 September 2015

♥♥कश...♥♥

♥♥♥♥♥♥कश...♥♥♥♥♥♥♥
सिगरेट के धुयें के कश में। 
नहीं जिंदगी मेरे वश में। 

थाने, जुर्म, कचहरी कम हों,
मसले जो सुलझें आपस में। 

मुश्किल हम पर भारी होंगी,
अगर कमी आयी साहस में। 

मर्यादा भी तार तार है,
नेता उतरे निरा बहस में। 

शबनम की एक बूंद मिली न,
गम की ज्वाला और उमस में। 

औरत भी इज़्ज़त के लायक,
गुंडे भूले यहाँ हवस में। 

"देव" ये लम्बी रात कटे न,
सांस घुटी हैं, यहाँ कफ़स में। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२०.०९.१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Monday, 14 September 2015

♥♥ सपनों के कण... ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ सपनों के कण... ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बिखरे हैं सपनों के कण कण, जिन सपनों को रात बुना था। 
चीख हुयी ज़ोरों की दिल से, मगर किसी ने नहीं सुना था। 
देह तड़पती रही सड़क पर, अरमानों का कत्ल हो गया,
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था। 

ये पत्थर का जहाँ है शायद, पत्थर की दुनिया दारी है। 
कोई तड़पकर मर जाये पर, सबको अपनी जां प्यारी है। 
बेरहमी से लोग किसी के, जज़्बातों की हत्या करते,
निर्दोषों के पांव में बेड़ी, कातिल की खातिरदारी है। 

अनदेखा करते हैं उनको, दर्द वो जिनका कई गुना था। 
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था …

वादा करके तोड़ दिये हैं और ऊपर से भ्रम करते हैं। 
लोग यहाँ सदमा देने का, बड़ा ही लम्बा क्रम करते हैं। 
"देव" यहाँ घड़ियाली आंसू, मगर रिक्त दिल अपनेपन से,
नहीं मिले २ वक़्त की रोटी, निर्धन कितना श्रम करते हैं। 

सींचा जिसको, छाया न दी, बीज वो शायद जला भुना था। 
मगर किसी ने दुखियारे का, एक चिथड़ा भी नहीं चुना था। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१५.०९.१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Friday, 11 September 2015

♥शब्दों का श्रृंगार...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों का श्रृंगार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ। 
बिना तुम्हारे न जाने क्यों, लिखने से बचना चाहता हूँ। 
मेरे शब्दों को अपना लो, बस मेरी इतनी सी ख्वाहिश,
न पुस्तक की मुझे तमन्ना, और नहीं छपना चाहता हूँ ,

तुम इतनी पावन प्यारी हो, शब्द समर्पित तुमको कर दूँ। 
मन करता तेरे आँचल में, भावों का जल अर्पित कर दूँ। 

तुम्हें मानकर प्रेम की देवी, नाम तेरा जपना चाहता हूँ। 
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ। 

शब्द कोष के हर पन्ने में, तुम मुझको प्रेरित करती हो। 
तुम हो मेरी अनुभूति में, हर क्षण मेरा हित करती हो। 
 "देव" तुम्हारा प्रेम परिचय, कविता का आधार बन गया,
तुम शब्दों का अलंकार बन, मेरा मन मोहित करती हो। 

शायद प्रेम इसी को कहते, सब कुछ पूर्ण निहित होता है। 
जब देनी हो प्रेम परीक्षा, तब विष भी अमृत होता है। 

हम तुम दोनों साथ रहें बस, मैं ऐसा सपना चाहता हूँ। 
शब्दों का श्रृंगार बनो तुम, मैं कविता रचना चाहता हूँ। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१२.०९.१५ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Sunday, 6 September 2015

♥♥विवशता...♥♥

♥♥♥♥♥विवशता...♥♥♥♥♥
दो पल सुकूं नहीं जीने को।
नहीं प्यास में जल पीने को।
नहीं दवाई बीमारी में,
न कपड़ा लत्ता सीने को।

बुझती आँखों पे न चश्मा,
न सोने को दरी, खाट है।
तरस तरस के मिलती रोटी,
न जीवन में ठाठ बाट है।
झूठी जनसेवा के नाटक,
करने से न थमे गरीबी,
धनिक कुचलते बेरहमी से,
निर्धन के संग मार काट है।

लोग मजाकों में लेते हैं,
पीड़ा का जीवन जीने को।
नहीं दवाई बीमारी में,
न कपड़ा लत्ता सीने को...

बेटी बिन ब्याही घर में है,
देने को कुछ माल नहीं है।
फसलों को कुदरत ने रौंदा,
हंसी ख़ुशी का हाल नहीं है।
"देव " नहीं पैरों में चप्पल,
और पांवों में फटी बिबाई,
नहीं भुजाओं में दम बाकी,
और क़दमों में चाल नहीं है।

काश हो निर्धन की सुनवाई,
विवश न हो अश्रु पीने को।
नहीं दवाई बीमारी में,
न कपड़ा लत्ता सीने को। "

........चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-०७.०९.१५
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "