Sunday, 10 January 2016

♥अक्सर दूर...♥

♥♥♥♥♥♥♥अक्सर दूर...♥♥♥♥♥♥♥
अक्सर दूर बिछड़ने का डर । 
तन्हाई से लड़ने का डर । 
बिना तुम्हारे सूने घर को,
हर दिन यहाँ उजड़ने का डर। 

दूर रूह से हो नहीं सकते, हाँ ये सच है दूरी तन की। 
लेकिन तुमको बिन देखे ही, राह कठिन लगती जीवन की। 
लेकिन फिर भी यही निवेदन, तुम मेरी शक्ति बन जाना,
तुम बिन कोई पढ़ नहीं सकता, उलझन मेरे अंतर्मन की। 

तुम बिन चला नहीं जाता है,
पांव में छाले पड़ने का डर। 
बिना तुम्हारे सूने घर को,
हर दिन यहाँ उजड़ने का डर..... 

हाँ मालूम है नहीं निभा है, मुझसे साथ तुम्हारे जैसा। 
मुझे पता है इस दुनिया में, कोई नहीं होता तुम जैसा। 
हाँ पर दिल को कदर तुम्हारी, "देव" तुम्हारा अभिवादन है,
मैं तो चाहूँ प्यार तुम्हारा, न धन दौलत न ही पैसा। 

तुम बिन हूँ बेजान सरीखा,
इस मिटटी में गड़ने का डर। 
बिना तुम्हारे सूने घर को,
हर दिन यहाँ उजड़ने का डर। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१०.०१.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 


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