♥♥♥♥♥♥♥♥तुम ही तुम ...♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम परिचायक मेरी प्रीत की।
धुरी तुम्ही हो मेरी जीत की।
तुम शीतलता गरम धूप में,
तुम ऊष्मा हो जटिल शीत की।
तुम उत्कृष्ट मेरे जीवन में, नेह, बोध, ममता तुममें है।
तुम कर दोगी तिमिर को उजला, ये पावन क्षमता तुममें है।
तुम्ही वंदना, तुम्ही प्रार्थना, तुम्ही हमारी मनोकामना।
तुम्ही निवेदन, अधिकार तुम, तुम्ही हमारी क्षमा याचना।
तुम भावुकता हो शब्दों की,
तुम ही लय हो मेरे गीत की।
तुम शीतलता ग्रीष्म काल में,
तुम ऊष्मा हो जटिल शीत की...
तुम गंगा जल, तुम ही बल हो, तुम शक्ति हो, तुम ज्योति हो।
किरन हर्ष की फूटें मन में, निकट मेरे जब तुम होती हो।
तुम हरियाली हो उपवन की, तुम्ही फूल हो, तुम्ही रंग हो।
मेरा जीवन बने सुगन्धित, सखी यदि तुम मेरे संग हो।
तुम जाग्रति मानवता की,
तुम रूपक हो सबल रीत की।
तुम शीतलता गरम धूप में,
तुम ऊष्मा हो जटिल शीत की...
तुम्ही प्रेयसी, तुम्ही नायिका, तुम्ही धरोहर, तुम सहजन हो।
तुम्ही "देव" सी कलाकृति हो, तुम नैसर्गिक आलेखन हो।
तुम अभिनन्दन, तुम आकर्षण, तुम संग्रह हो, तुम्ही कोष हो।
तुम पर्याय प्रेम ऋतुओं का, तुम्ही लेखनी, काव्य कोश हो।
तुम सतरंगी इंद्रधनुष की,
तुम यौवनता मेरे मीत की।
तुम शीतलता गरम धूप में,
तुम ऊष्मा हो जटिल शीत की। "
"
कोई ऐसा मनुज जिसका होना हमारे जीवन में, हमारी आत्मा को पूर्ण करता है, तब निश्चित प्रेम की कलियाँ पुष्प बनकर समूचे जग को मानवीयता से सुगन्धित करती हैं, तो आइये ऐसे श्रेष्ठ जान का वंदन करें। ....."
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२९.१०.२०१७
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित )
तुम परिचायक मेरी प्रीत की।
धुरी तुम्ही हो मेरी जीत की।
तुम शीतलता गरम धूप में,
तुम ऊष्मा हो जटिल शीत की।
तुम उत्कृष्ट मेरे जीवन में, नेह, बोध, ममता तुममें है।
तुम कर दोगी तिमिर को उजला, ये पावन क्षमता तुममें है।
तुम्ही वंदना, तुम्ही प्रार्थना, तुम्ही हमारी मनोकामना।
तुम्ही निवेदन, अधिकार तुम, तुम्ही हमारी क्षमा याचना।
तुम भावुकता हो शब्दों की,
तुम ही लय हो मेरे गीत की।
तुम शीतलता ग्रीष्म काल में,
तुम ऊष्मा हो जटिल शीत की...
तुम गंगा जल, तुम ही बल हो, तुम शक्ति हो, तुम ज्योति हो।
किरन हर्ष की फूटें मन में, निकट मेरे जब तुम होती हो।
तुम हरियाली हो उपवन की, तुम्ही फूल हो, तुम्ही रंग हो।
मेरा जीवन बने सुगन्धित, सखी यदि तुम मेरे संग हो।
तुम जाग्रति मानवता की,
तुम रूपक हो सबल रीत की।
तुम शीतलता गरम धूप में,
तुम ऊष्मा हो जटिल शीत की...
तुम्ही प्रेयसी, तुम्ही नायिका, तुम्ही धरोहर, तुम सहजन हो।
तुम्ही "देव" सी कलाकृति हो, तुम नैसर्गिक आलेखन हो।
तुम अभिनन्दन, तुम आकर्षण, तुम संग्रह हो, तुम्ही कोष हो।
तुम पर्याय प्रेम ऋतुओं का, तुम्ही लेखनी, काव्य कोश हो।
तुम सतरंगी इंद्रधनुष की,
तुम यौवनता मेरे मीत की।
तुम शीतलता गरम धूप में,
तुम ऊष्मा हो जटिल शीत की। "
"
कोई ऐसा मनुज जिसका होना हमारे जीवन में, हमारी आत्मा को पूर्ण करता है, तब निश्चित प्रेम की कलियाँ पुष्प बनकर समूचे जग को मानवीयता से सुगन्धित करती हैं, तो आइये ऐसे श्रेष्ठ जान का वंदन करें। ....."
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२९.१०.२०१७
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित )
1 comment:
Atyant Sundar panktiyan
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