♥♥♥♥सीलन...♥♥♥♥
आवश्यक है, स्वयं ही अपने घावों की परतों को सिलना।
बहुत कठिन है इस दुनिया में, अपने जैसा कोई मिलना।
नयनों की सीलन और लाली, आह को कोई कब सुनता है।
किसी और के पथ के कंटक, कोई व्यक्ति कब चुनता है।
बस स्वयं की ही अभिलाषा को, पूरा करने की मंशाएं,
किसी और के खंडित सपने, कोई अंतत: कब बुनता है।
करता है भयभीत बहुत ही, अपने सपनों की जड़ हिलना।
आवश्यक है, स्वयं ही अपने घावों की परतों को सिलना...
छिटक रहीं हों जब आशाएं, और ऊपर से विमुख स्वजन का।
जलधारा सा बदल लिया है, उसने रुख अपने जीवन का।
"देव " वो जिनकी प्रतीक्षा में, दिवस, माह और वर्ष गुजारे,
वो क्या समझें मेरी पीड़ा, उनको सुख अपने तन मन का।
पीड़ाओं की चट्टानों पर, मुश्किल है फूलों का खिलना।
बहुत कठिन है इस दुनिया में, अपने जैसा कोई मिलना
चेतन रामकिशन 'देव'
(सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग http://chetankavi.blogspot.com पर पूर्व प्रकाशित। )
1 comment:
हर कोई अपने जैसा हो तो भी संतोष मिल पाना मुश्किल ही होगा क्योंकि हाथ की उंगलियाँ अपने - 2 आकार में ही शोभा पाती है , अगर वे बराबर हो जाए तो कितना मुश्किल दौर हो जाए कह नहीं सकते । ये तो बस एक पहलू है , दूसरे छोर पर तो समानता का होना आवश्यक है उससे ही सृष्टि के समस्त वास्तव में अपने एक होने की पहचान को जान पायेंगे । जिस पृथक मन बार - बार रोता है ।
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