Tuesday, 6 August 2019

♥♥♥रज्जु ... ♥♥♥

♥♥♥रज्जु ... ♥♥♥
मन की शुष्क परत पे घर्षण, पीड़ा की रज्जू करती है।
और उपर से मेरी शत्रुता, वेग में उसके बल भरती है।
नंगे पांवों पथ पर जाओ, तो उपचार रखो तुम स्वयं का,
ये दुनिया है, बुरे वक्त में, मदद किसी की कब करती है।

बस केवल भ्रमजाल है कोई, बस खुद का महिमामंडन है।
चलें झूठ की पगडंडी पर, और यहाँ सच का खंडन है।
हम आंखों के नीर से जिनके, जीवन को सुखमय करते हैं।
वही लोग देखो सपनों की, सस्ती कीमत तय करते हैं।

जरा जरा से लोभ पे देखो, मानवता भी अब मरती है।
मन की शुष्क परत पे घर्षण, पीड़ा की रज्जू करती है...

वाणी भी है मौन सरीखी, कंठ भी अब स्वर भूल रहा है।
मेरे हिस्से कंटक कंटक, उनके हिस्से फूल रहा है।
रण कौशल में शून्य हैं किन्तु, छदम से अपनी जय करते हैं।
निर्बल, निर्धन, असहायों के, जीवन पथ में भय करते हैं। 

दुरित काम से ऐसे जन की,  कहाँ आत्मा भी डरती है।
मन की शुष्क परत पे घर्षण, पीड़ा की रज्जू करती है। "

चेतन रामकिशन " देव "
06.08.2019
 

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