♥♥♥अलगाव... ♥♥♥
स्वयं से ही अलगाव हुआ है,
मन में गहरा घाव हुआ है।
सखी तुम्हारे बहिर्गमन से,
मुझपे ये प्रभाव हुआ है।
तुम संग थीं तो प्रेम था खुद से,
नयन स्वप्न से हरे भरे थे।
साथ तुम्हारा धवल चांदनी,
कभी तिमिर से नहीं डरे थे।
तुम संग थीं तो जीवन पथ पर,
हम एकाकी नहीं हुए थे,
खिले फूल से भरी हथेली,
कंटक क्षण भर नहीं छुए थे।
एक तुम्हारे परिवर्तन से,
सुख का घना अभाव हुआ है।
सखी तुम्हारे बहिर्गमन से,
मुझपे ये प्रभाव हुआ है।
तुम संग थीं तो आकांक्षा थीं,
उत्सव सा जीवन लगता था।
रात को खुश होकर सो जाना,
और सुबह हंसकर जगता था।
तुम संग थीं तो अनुभूति के,
सरिता, सागर लहर रहे थे।
" देव " उड़ानें भरता था मन,
ध्वजा प्रेम के फहर रहे थे।
शिला खंड जैसा निर्जीवी,
अब मेरा स्वभाव हुआ है।
सखी तुम्हारे बहिर्गमन से,
मुझपे ये प्रभाव हुआ है। "
चेतन रामकिशन " देव "
०४. १२.२०१९
स्वयं से ही अलगाव हुआ है,
मन में गहरा घाव हुआ है।
सखी तुम्हारे बहिर्गमन से,
मुझपे ये प्रभाव हुआ है।
तुम संग थीं तो प्रेम था खुद से,
नयन स्वप्न से हरे भरे थे।
साथ तुम्हारा धवल चांदनी,
कभी तिमिर से नहीं डरे थे।
तुम संग थीं तो जीवन पथ पर,
हम एकाकी नहीं हुए थे,
खिले फूल से भरी हथेली,
कंटक क्षण भर नहीं छुए थे।
एक तुम्हारे परिवर्तन से,
सुख का घना अभाव हुआ है।
सखी तुम्हारे बहिर्गमन से,
मुझपे ये प्रभाव हुआ है।
तुम संग थीं तो आकांक्षा थीं,
उत्सव सा जीवन लगता था।
रात को खुश होकर सो जाना,
और सुबह हंसकर जगता था।
तुम संग थीं तो अनुभूति के,
सरिता, सागर लहर रहे थे।
" देव " उड़ानें भरता था मन,
ध्वजा प्रेम के फहर रहे थे।
शिला खंड जैसा निर्जीवी,
अब मेरा स्वभाव हुआ है।
सखी तुम्हारे बहिर्गमन से,
मुझपे ये प्रभाव हुआ है। "
चेतन रामकिशन " देव "
०४. १२.२०१९
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