♥♥♥ शायद... ♥♥♥
शायद मिलना नहीं है मुमक़िन,
क्यों फिर उन्हें पुकारा जाए।
हंसकर, रोकर कटेगा जैसे,
तन्हा सफ़र गुज़ारा जाए।
बहुत तपाया आग ने ग़म की,
स्याह हुआ सारा उजलापन,
अपना चेहरा चलो अश्क़ से,
धोकर यहां निखारा जाए।
छूट गया है हाथ, हाथ से,
कदमताल भी नहीं रही है।
मौन हो गए, चुप्पी साधी,
बोलचाल भी नहीं रही है।
अब तो मुझे देखकर के भी,
अपने रुख को बदल रहे हैं।
वो इतने बेदर्द हो गए,
जबकि पत्थर पिघल रहे हैं।
अपने दिल से चलो प्यार का,
गाढ़ा रंग उतारा जाए।
शायद मिलना नहीं है मुमक़िन,
क्यों फिर उन्हें पुकारा जाए।
मुझे छोड़ना, बेहतर समझा,
उनके मन की वो ही जानें।
जिसको चाहें गैर समझ लें,
जिसको चाहें अपना मानें।
प्यार, मोहब्बत के रिश्ते में,
अब कसमों का दौर नहीं है।
कोई तड़पे, या थम जाये,
किसी को इसका गौर नहीं है।
सुनो "देव" टूटे दर्पण में,
खुद को चलो निहारा जाए।
शायद मिलना नहीं है मुमक़िन,
क्यों फिर उन्हें पुकारा जाए। "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- १०.१२.२०१९
शायद मिलना नहीं है मुमक़िन,
क्यों फिर उन्हें पुकारा जाए।
हंसकर, रोकर कटेगा जैसे,
तन्हा सफ़र गुज़ारा जाए।
बहुत तपाया आग ने ग़म की,
स्याह हुआ सारा उजलापन,
अपना चेहरा चलो अश्क़ से,
धोकर यहां निखारा जाए।
छूट गया है हाथ, हाथ से,
कदमताल भी नहीं रही है।
मौन हो गए, चुप्पी साधी,
बोलचाल भी नहीं रही है।
अब तो मुझे देखकर के भी,
अपने रुख को बदल रहे हैं।
वो इतने बेदर्द हो गए,
जबकि पत्थर पिघल रहे हैं।
अपने दिल से चलो प्यार का,
गाढ़ा रंग उतारा जाए।
शायद मिलना नहीं है मुमक़िन,
क्यों फिर उन्हें पुकारा जाए।
मुझे छोड़ना, बेहतर समझा,
उनके मन की वो ही जानें।
जिसको चाहें गैर समझ लें,
जिसको चाहें अपना मानें।
प्यार, मोहब्बत के रिश्ते में,
अब कसमों का दौर नहीं है।
कोई तड़पे, या थम जाये,
किसी को इसका गौर नहीं है।
सुनो "देव" टूटे दर्पण में,
खुद को चलो निहारा जाए।
शायद मिलना नहीं है मुमक़िन,
क्यों फिर उन्हें पुकारा जाए। "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- १०.१२.२०१९
1 comment:
बहुत ही सुन्दर..
लाजवाब सृजन।
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