**********आई वही गुलामी****************
"एक दिवस की आजादी थी, आई वही गुलामी!
माँ जननी की तस्वीरें फिर, लगती हमे पुरानी!
झंडे भी तह करके हमने, बक्सों में रख डाले,
सुप्त हो गया चिंतन मंथन, शीतल हुई जवानी!
जकड़ गयी माँ जननी फिर से, जागा भ्रष्टाचार!
सत्ताधारी दमन कर रहे, जनता का अधिकार!
लहू की स्याही सूख गई है, कैसे बढ़े कहानी!
एक दिवस की आजादी थी, आई पुन: गुलामी..........
इन्कलाब के नारों की भी, शांत हुई आवाज!
जंग लग गया है पंखो में, सुप्त हुई परवाज!
चोराहों पर पड़े सुनाई, फिर से फूहड़ गीत,
तहखाने में डाल दिए हैं, राष्ट्रगान के साज!
अंग्रेजो का रूप धर रही, देश की हर सरकार!
सिंहासन देने वालों पर, करती अत्याचार!
अरबों में भी नहीं है कोई , भगत सा स्वाभिमानी!
एक दिवस की आजादी थी, आई वही गुलामी!
आजादी के दिन ही बंटती, निर्धन को खैरात!
अँधेरे में फुटपाथों पर कटती उसकी रात!
चौराहे पर मिलती रहती, भूखी प्यासी लाश,
किन्तु शासन प्रशासन को आम हुई ये बात!
देश की धड़कन थमी "देव" है, न उर्जा संचार!
सत्ताधारी दमन कर रहे, जनता का अधिकार!
नेताओं ने बदले चेहरे, नियत वही पुरानी!
एक दिवस की आजादी थी, आई वही गुलामी!"
"१५ अगस्त की आजादी हमने जी ली! जमकर नारे लगा लिए, फिर गुलामी आ गयी है, क्यूंकि हमने देश से कभी उस तरह प्रेम ही नहीं किया, जैसे माँ के साथ करते हैं! जैसे प्रेयसी के साथ करते हैं! तो चलो हम सबको फिर से गुलामी मुबारक- चेतन रामकिशन "देव"
3 comments:
श्रेष्ठ रचना , आभार.
मेरे ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं.
varshon ke gulami kee mansikta se jabtak sabhi nahi ubhar paayinge tab tak aajadi bemani see hai..
bahut badiya saarthak aur jaagruk post ke liye dhanyavad.
इन्कलाब के नारों की भी, शांत हुई आवाज!
जंग लग गया है पंखो में, सुप्त हुई परवाज!
bhut hi bdhiya.
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