Wednesday, 30 November 2011

♥♥कलम हुआ खामोश♥♥


"♥♥♥♥♥♥♥♥कलम हुआ खामोश♥♥♥♥♥♥♥
काल ने तोड़ी साँस की डोरी, कलम हुआ खामोश!
ये सुनकर के सजल हुआ है , शब्द का हर एक कोष!

ज्ञानपीठ की रहीं विजेता, इंदिरा जिनका नाम!
सदा ही प्रेषित किया उन्होंने, मानवता का ज्ञान!
अपने ओजस्वी लेखन से, दर्पण हमे दिखाया,
देह से जीवित भले न हों वो, रहेगा जीवित नाम!

इतनी जल्दी चली गईं वो, होता है अफ़सोस!
काल ने तोड़ी साँस की डोरी, कलम हुआ खामोश"

"डॉ. इंदिरा गोस्वामी जी ( ज्ञानपीठ पुरुस्कार विजेता) का आज देहांत हो गया! शब्दों का एक बहुत बड़ा प्रेमी हमसे,  देह रूप से बहुत दूर चला गया! उनके शब्द इस संसार में स्वर्ण की तरह जगमग होते रहेंगे! क्यूंकि अनमोल शक्तियाँ कभी मृत नहीं होती हैं!===उन्हें नमन- चेतन रामकिशन "देव"

"साभार- जनाब खुर्शीद हयात जी!

♥♥मगर गरीबी सहन हो कब तक.

"♥♥♥♥♥♥♥♥♥मगर गरीबी सहन हो कब तक... ♥♥♥♥♥♥
तरस रहा है गरीबी में वो, है भूख से उसका पेट खाली!
हमारे नेता घरों में अपने, मना रहे हैं मगर दिवाली!
हजार खूनों के दोषियों को, यहाँ पे फांसी नहीं मिली है
महज तमाचा ही जड़ने वाला, बना दिया है बड़ा मवाली!

सही है ये था गलत तरीका, मगर गरीबी सहन हो कब तक!
अमीर नेता बिछायें मखमल, मगर गरीबी दहन हो कब तक!

हमारे नेता नहीं समझते, गरीब लोगों की तंगहाली!
तरस रहा है गरीबी में वो, है भूख से उसका पेट खाली........

नहीं सुनेंगे यदि जो नेता, तो जनता कब तक शिथिल रहेगी!
कभी तो उसके लहू की धारा, रगों में तपकर उबल पड़ेगी!
चलो हमारे वतन को छोड़ा, किया है अरसे से राज तुमने,
सियासियों को पकड़ पकड़ के, करोरों जनता यही कहेगी!

सही है ये था गलत तरीका, मगर ये पीड़ा सहन हो कब तक!
महज ही ३२ रूपये में आखिर, ये जिंदगानी वहन हो कब तक!

सफेदपोशों के दिन हैं उजले, है रात उनकी बड़ी निराली!
तरस रहा है गरीबी में वो, है भूख से उसका पेट खाली......

अभी समय है बदल लो अपनी, ये राजनीति गलत दिशा की!
ये झोलियाँ बस भरो न अपनी, कभी तो देखो दुखी दशा भी!
नहीं जो बदले अभी भी जो तुम, ये "देव" जीवन नहीं चलेगा,
नहीं दिवस हों तुम्हारे उजले, तिमिर में डूबेगी ये निशा भी!

सही है ये था गलत तरीका, मगर ये जिन्दा जलन हो कब तक!
ये आंख कब तक गिरायें आंसू, दिलों में ऐसी दुखन हो कब तक!

सफेदपोशों के दिन हैं उजले, है रात उनकी बड़ी निराली!
तरस रहा है गरीबी में वो, है भूख से उसका पेट खाली!"


"राज्य के सञ्चालन की नीति राजनीति को, सत्ता को जब जब अपने कुल/ अपनी बपौती समझा जाता है तो जनता की रगों का खून भी गरम होने लगता है! राजनेतिक लोगों को चिंतन करना चाहिए देश हित में! आखिर जनता क्या चाहती है? सरकारी धन को लूटना, खाना, और ऐश करना राजनीति नहीं!----

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक---३०.११.२०११

Tuesday, 29 November 2011

♥♥अंतिम विरह की पीड़ा ♥♥♥♥♥

"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥अंतिम विरह की पीड़ा ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते!
हमारे आंसू बिलख बिलख कर, तुम्हें बुलाते, तुम्हें बुलाते!
हमारी आँखों के नीचे देखो, पड़े हैं गहरे निशान काले,
बिना तुम्हारे हमें सनम अब, ख़ुशी के पल भी नहीं सुहाते!

खुदा भी जाने क्यूँ ले गए हैं, हमारे घर से तुम्हें बुलाकर!
खुदा से पूछो जियूं मैं कैसे, तुम्हें भुलाकर, तुम्हें भुलाकर!

तुम्हारे बिन तो ये आईने भी, ख़ुशी की सूरत नहीं दिखाते!
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते......

क्यूँ इतना कम था तुम्हारा जीवन, हमे अधूरा क्यूँ कर गए हो!
हमारे जीवन के पहलुओं पर, क्यूँ याद बनके बिखर गए हो!
कोई भी रस्ता नहीं है दिखता, जो पीछे पीछे मैं तेरे आऊ,
न लौटकर आओगे कभी तुम, क्यूँ इतने लम्बे सफ़र गए हो!

खुदा भी जाने क्यूँ ले गए हैं, हमारे घर से तुम्हें बुलाकर!
हमारी आँखों को नीर देकर, हमे रुलाकर, हमे रुलाकर!

तुम्हारे बिन तो हँसी ठहाके, हमारे मन को नहीं हँसाते!
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते......

खुदा हमारी सुनो जरो तुम, सफ़र में तन्हा किया करो ना!
नहीं है कटती उम्र ये तन्हा, किसी को विरहा दिया करो ना!
ये "देव" कितना हुआ है तन्हा, जरो तो सोचो तड़प हमारी,
जुदाई के पल नहीं सुहाते, जुदा किसी को किया करो ना!

खुदा भी जाने क्यूँ ले गए हैं, हमारे घर से तुम्हें बुलाकर!
खुदा से पूछो जियूं मैं कैसे, तुम्हें भुलाकर, तुम्हें भुलाकर!

तुम्हारे बिन तो पड़ोसियों के, वो नन्हें बच्चे नहीं चिढाते!
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते!"

" किसी के जीवन से किसी से चले जाने से जीवन का पक्ष निश्चित रूप से प्रभावित
होता है! किसी के असमय चले जाने से होने वाली पीड़ा बड़ा सताती है! उसी पीड़ा को अपने शब्दों में उकेरने का छोटा सा प्रयास किया है! www.chetankavi.blogspot.com

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-- २९.११.२०११

Monday, 28 November 2011

♥आंसुओं की फुहार कर के♥♥


"♥♥♥♥♥♥♥♥आंसुओं की फुहार कर के♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किया है तन्हा हमें उन्होंने, हमारी उल्फत को मार कर के!
हमे रुलाके चले गए वो, भुला दिया हमको प्यार कर के!
कहाँ गईं वो कसम वफ़ा की, मिलन के वादे कहाँ गए हैं,
चले गए हैं यहाँ से हंसकर, वो आंसुओं की फुहार कर के!"
                                                                        ..........चेतन रामकिशन "देव"....

♥♥दुःख( सुख की बेला) ♥♥

"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दुःख( सुख की बेला) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा!
कोई तुम्हारे पथों से कंटक, नहीं चुनेगा, नहीं चुनेगा!
न टूटना तुम दुखों से अपने, कभी तो सुख का सवेरा होगा,
कोई तुम्हारे नयन के सपने, नहीं बुनेगा, नहीं बुनेगा!

ये जिंदगी है ही नाम इसका, दुखों की बेला, सुखों का सावन!
दुखों से डरकर नहीं रहो तुम, कभी तो सुख का मिलेगा यौवन!

वही संभल कर है आगे बढ़ता, जो खाके ठोकर कभी गिरेगा!
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा......

कभी है बेकारी की तड़प तो, कभी मोहब्बत हमे रुलाती!
कभी पराजय सताए हमको, कभी गरीबी हमे सताती!
कभी गगन में भी उड़ता जीवन, कभी जमीं की है धूल मिलती,
ये जिंदगी है ही नाम इसका, कभी गिराती, कभी उठाती!

तपन में दुःख की नहीं जलो तुम, ख़ुशी भी तुमको करार देगी!
तुम्हारे चेहरे के कालेपन को, ये जिंदगी ही निखार देगी!

उसी का जीवन बढेगा आगे, जो जिंदगी से नहीं डरेगा!
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा......

ये जिंदगी है ही नाम इसका, हमेशा इसमें ख़ुशी नहीं है!
मगर ये मानव की जिंदगानी, यूँ ही किसी को मिली नहीं है!
दुखों के डर से नहीं कहो तुम, है "देव" हमको दिला दे मुक्ति,
किसी के मुक्ति भी मांगने से, किसी को मुक्ति मिली नहीं है!

तो जिंदगी जब है काटनी तो, चलो के हिम्मत से हम जियेंगे!
नहीं दुखों से डरेंगे हम तो, हम अपने आंसू स्वयं पियेंगे!

वही रहेगा हमेशा जिन्दा, जो अपने मन से नहीं मरेगा!
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा!"

" पीड़ा, से मन को वेदना अपर मिलती है किन्तु ये जीवन अनवरत चलने का नाम है! हमे पीड़ा से उर्जा प्राप्त करनी होगी! हमे खुद को सहनशील बनाना होगा! तभी हम जीवन को संघर्ष के साथ जी सकेंगे! तो आइये पीड़ा को सहन करने के लिए सहनशीलता को उन्नत करें! 
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- २८.११.२०११ 

Wednesday, 23 November 2011

♥निराशा( असफलता की जननी)♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥निराशा( असफलता की जननी)♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निराश होकर के जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सफलता!
ये जिंदगी है ही नाम इसका, कभी विषमता, कभी सरलता! 
ना दोष दो तुम खुदा को अपने, करो तो मेहनत सही दिशा में,
बिना कर्म के चरागे-किस्मत, उम्र में पूरी कभी ना जलता!

निराश रहने से तो हमेशा, विचार मैले ही बन सकेंगे!
सदा डिगेंगे पथों से अपने, नहीं निशाने पे ठन सकेंगे!

निराश भावों से जिंदगी के ग़मों का मौसम नहीं बदलता!
निराश होकर के जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सफलता.......

निराश होना नहीं सुहाता, ख़ुशी के पल भी नहीं दमकते!
निराश भावों के इस तिमिर में, हँसी के तारे नहीं चमकते!
निराश होके तो जिंदगी में, सदा ही कांटे मिलेंगे तुमको,
निराश भावों के बागवां में, ख़ुशी के गुलशन नहीं महकते!

निराश रहने से तो हमेशा, विचार मैले ही बन सकेंगे!
रहेंगे हाथों पे हाथ रखकर, नहीं हमारे कदम बढ़ेंगे!

निराश शब्दों से जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सबलता!
निराश होकर के जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सफलता.......

चलो के बदलें मनन का अपने, मनों में आशाओं को वसायें!
हमे मिलेगी सफलता सच में, सही दिशा में कदम बढायें!
निराशा भावों से "देव" जीवन सदा ही लगता है बोझ जैसा,
मनों में साहस भरें चलो हम, विपत्ति में भी हम मुस्कुरायें!

निराशा भावों से तो हमेशा, विचार मैले ही बन सकेंगे!
रहेगी भूमि सदा ही बंजर, जमीं में अंकुर नहीं उगेंगे!

निराश चिंतन से जिंदगी में, ख़ुशी का सूरज नहीं निकलता!
निराश होकर के जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सफलता!"


"दुःख और सुख जिंदगी के हिस्से हैं! निराशा के साथ जिंदगी जीना,
जीवन की निर्णायक सोच को प्रभावित करता है! निराशा व्यक्ति के जिंदगी से
उसके साहस का अंत करती है और वो व्यक्ति सबल होते हुए भी
अपनी हिम्मत/ मेहनत का अंत कर देता है! तो आइये आशावान बनें!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- २४.११.२०११









 

Saturday, 19 November 2011

♥दहेज़ की अगन♥


"♥♥♥♥♥♥♥♥दहेज़ की अगन♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी!
नए माहौल में उसने नई दुनिया वसाई थी!
वो जिसको मांग में सिंदूर भरकर पूजती रहती,
उसी लोभी ने उसकी देह की होली जलाई थी!

उन्हें करके भी ऐसे पाप, न अवसाद होता है!
तमाशा देखते हैं वो, कोई बरबाद होता है!

पड़ी है राख- चिंगारी जहाँ मखमल बिछाई थी!
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी......

पिता ने कर्ज लेकर के ब्याह उसका रचाया था!
उधर से मांग जो आई वही सामान लाया था!
बड़ी आशाओं से उसने दिया था हाथ बेटी का,
नयन में नीर भरके बेटी को डोली बिठाया था!

कभी सोचा भी ना था बेटी का ये हाल कर देंगे!
वो उसकी चांदनी को इस तरह से लाल कर देंगे!

हुई दुनिया से वो रुखसत, करी जिसकी विदाई थी!
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी......

हजारों नारियों के साथ ऐसा रोज करते हैं!
कभी प्रहार करते हैं, कभी आरोप जड़ते हैं!
यहाँ लगती हैं मिथ्या "देव" नारी मुक्ति की बातें,
यहाँ नारी के रखवाले ही उनसे युद्ध लड़ते हैं!

पति की आयु-वृद्धि को, सदा मंदिर भी जाती थी!
चरण छूती थी भगवन के, वहां मस्तक झुकाती थी!

उसी ने मौत दी, जिसके लिए बाती जलाई थी!
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी!"


" दहेज़ के लिए नारी की देह को जलाना, उत्पीड़न करना, आज भी व्यापक स्तर पर है! नारी भी मानव है, पीड़ा की अनुभूति उसे भी होती है! आखिर हम प्रेम और अपनेपन की बजाये क्यूँ विवाह जैसे बंधन में सौदेबाजी करते हैं और मनचाहा ना मिलने पर ऐसी अमानवीय हरकत करते हैं! तो आइये इस दशा को सँभालने में अपने स्तर से सहयोग करें!-
   दिनांक--२०-११-2011                                        चेतन रामकिशन "देव"

Thursday, 17 November 2011

♥♥धुंधली चांदनी ♥♥


"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥धुंधली चांदनी ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सुबह की लाल किरणें हों या रात की हो चांदनी!
बिन तेरे ए सनम मेरे, धुंधली है हर एक रोशनी!
ये जहाँ तुम बिन अधूरा लग रहा है रात-दिन,
लौट आओ फिर सनम तुम, दूर कर दो हर कमी!

घर का हर कोना है सूना, बिन तेरी आवाज के!
कल के सपने भी हैं टूटे, टूटे सपने आज के!

तेरे बिन हर एक ख़ुशी है, घर के बाहर ही थमी!
सुबह की लाल किरणें हों या रात की हो चांदनी..............

कोई धुन मन को न भाए, तेरी पायल के सिवा!
चल रहीं हैं आँधियां पर, लग रही चुप चुप हवा!
अब दवायें कम न करतीं, मेरी पीड़ा की तड़प,
तेरे हाथों के छुअन बिन, बेअसर है हर दवा!

जिंदगी लगती है सूनी, बिन तुम्हारे साथ के!
उंगलिया भी आना चाहें, पास तेरे हाथ के!

बिन तेरे ना हैं सुहाते, चाँद, तारे और जमीं!
सुबह की लाल किरणें हों या रात की हो चांदनी..............

तुम न जाने क्यूँ गए हो, तोड़के हर एक कसम!
एक पल भी क्या तुम्हें हम, याद न आए सनम!
"देव" तेरे बिन जहाँ में, बस तिमिर की छांव है,
बिन तेरे जीवन अधूरा, है अधूरा ये जनम!

तेरे बिन बेजान लगते, शब्द भी और सार भी!
मन भी मेरा रो रहा है, टूटे दिल के तार भी!

बिन तुम्हारे रहती है इन, आँखों में हर दम नमी!
सुबह की लाल किरणें हों या रात की हो चांदनी!"


"किसी अपने के जीवन से चले जाने से, जीवन का पक्ष निश्चित रूप से प्रभावित होता है! व्यक्ति, जीवित रहते हुए भी अकेला रहता है और हतौत्साहित रहता है! उसके जीवन का अकेलापन उसके साहस को कुरेदता है! तो आइये किसी के जीवन से जाने से पहले सोचें--------चेतन रामकिशन "देव"



Tuesday, 15 November 2011

माँ( ममतामयी छवि)♥

"♥♥♥♥ माँ( ममतामयी छवि)♥♥♥♥♥♥
वो प्रेम है, दुलार है, ममतामयी छवि है!
लोरी हमे सुनाती, वो स्नेह की छवि है!
दुनिया में कोई दूसरा उस जैसा नहीं है,
चंदा की चांदनी है वो, प्रकाश का रवि है!

हे माँ! तुम्हारी तुलना कोई कर नहीं सकता!
गणना तुम्हारे त्याग की कोई कर नहीं सकता!

संसार के हर रत्न से अनमोल वो निधि है!
वो प्रेम है, दुलार है, ममतामयी छवि है........

वो सत्य का दर्पण है,वो आशाओं की लड़ी!
दुर्गम कठिन पथों पे है माँ साथ में खड़ी!
मिथ्या का रंग उसपे कभी चढ़ नहीं पाया,
बातें हैं मेरी माँ की सदा सत्य से जड़ी!

हे माँ! तुम्हारी तुलना कोई कर नहीं सकता!
गणना तुम्हारे त्याग की कोई कर नहीं सकता!

करुणा के छीर जैसी माँ बहती हुई नदी है!
वो प्रेम है, दुलार है, ममतामयी छवि है........

खुद रहके भी दुखों में हमें, हर्ष माँ देती!
उलझन को हमारी सदा निष्कर्ष माँ देती!
आओ के "देव" माँ की करें वंदना सभी,
देती है जन्म भी हमें उत्कर्ष माँ देती!

हे माँ! तुम्हारी तुलना कोई कर नहीं सकता!
गणना तुम्हारे त्याग की कोई कर नहीं सकता!

माँ के ह्रदय में कोई कपट और न बदी है!
वो प्रेम है, दुलार है, ममतामयी छवि है!"


"माँ- के बारे में लिखने के लिए संसार का हर शब्दकोष छोटा है! माँ अतुलनीय है! माँ वन्दनीय है! माँ अनमोल है! माँ संसार की सबसे अमूल्य निधि है! तो आइये माँ का सम्मान करें-------चेतन रामकिशन "देव"