Friday, 27 January 2012

♥मात शारदे की कृपा...♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥मात शारदे की कृपा...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मनुज के मन में ज्ञान के दीप, आपकी कृपा से जलते हैं!
आपके जन्मदिवस पर हे माँ, पुष्पों के उपवन खिलते हैं!

मात शारदे की कृपा से होती है, बुद्धि के चिंतन में वृद्धि!
आपके ही आशीष से मिलती, हमारे लेखन को सम्रद्धि!
मात शारदे यदि हमारे साथ में आपका स्नेह ना होता,
हमारे जीवन में न आती, कोई सफलता, न उपलब्धि!

हम शीश झुकाकर मात शारदे, तन्मय हो वंदन करते हैं!
मनुज के मन में ज्ञान के दीप, आपकी कृपा से जलते हैं....

मात शारदे आपका पूजन हम सबको शक्ति देता है!
समस्याओं से संघर्षों की, हम सबको युक्ति देता है!
मात शारदे आपका वंदन, जीवन में उजियारा करता,
मात शारदे आपका वंदन, मिथ्या से मुक्ति देता है!

भक्ति भाव से मात शारदे, आपका अभिनन्दन करते हैं!
मनुज के मन में ज्ञान के दीप, आपकी कृपा से जलते हैं....

मात शारदे सदा ही हमको, अपने स्नेह से सिंचित करना!
कोई भूल यदि हो जाए तो, क्रोध कभी ना किंचित करना!
"देव" आपका इक यही निवेदन, मित्रों के संग में करता है,
अपनी संतानों को हे माता, ममता से वंचित ना करना!

आपके ही आशीष से माता, ज्ञान के नव-अंकुर पलते हैं!
मनुज के मन में ज्ञान के दीप, आपकी कृपा से जलते हैं!"



" ज्ञान के देवी माँ सरस्वती जी के वंदन में, अभिनन्दन में, स्वागत में, सम्मान में, उक्त पंक्तियाँ जोड़ी हैं! मैं और आप सब तो अज्ञानी हैं, ज्ञान और विवेक तो माँ ही देती हैं! माँ को नमन करते हुए प्रार्थना करता हूँ कि, उनकी कृपा सदा हम पर बनी रहे!"

चेतन रामकिशन "देव"

दिनांक---२८.०१.२०१२

सर्वाधिकार सुरक्षित

Wednesday, 25 January 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥अपना ध्वज तिरंगा.. ♥♥♥♥♥♥
लहर रहा है शान से देखो, अपना ध्वज तिरंगा!
भारत माँ के चरण धो रही, निर्मल पावन गंगा!

आओ बनें हम गाँधी जैसे, सत्य, अहिंसा दूत!
भारत माँ के बनें चलो हम, सच्चे नेक सपूत!
आओ मिटा दें अपने मन मैले दुरित विचार,
बाबा भीमराव के जैसे हम, दूर करें सब छूत!

मन से मैली काई धोकर, मन को कर ले चंगा!
लहर रहा है शान से देखो, अपना ध्वज तिरंगा....

इस दिन को तुम भूले से भी, रस्म का न दो नाम!
इस दिवस की आकांक्षा में, मिट गए वीर जवान!
देश को इस मंजिल पे लाना, सरल नहीं था काम,
वीर-शहीदों का है इसमें, तप, जप और बलिदान!

अपने हित में न करना तुम भारत का तन नंगा!
लहर रहा है शान से देखो, अपना ध्वज तिरंगा......

आओ करें वीरों की खातिर, फूलों की बौछार!
यही वीर वंदन,चंदन और स्वागत के हकदार!
देश नहीं होता वीरों बिन, "देव" नहीं आजाद,
कभी न बन पाता जग में, भारत का किरदार!

अपने हित में न करना तुम भारत का तन नंगा!
लहर रहा है शान से देखो, अपना ध्वज तिरंगा...."

"गणतंत्र दिवस, मात्र कोई रस्म नहीं है! जो लोग इसे रस्म समझते हैं या बनाते हैं वो उन शहीदों के सम्मान को ठेस पहुंचाते हैं! ये दिन संकल्प का दिन है! इस दिन देश हित, समाज हित के लिए मन में कोई संकल्प लीजिये!"

चेतन रामकिशन "देव"

दिनांक---२६.०१.२०१२ 


सर्वाधिकार सुरक्षित
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

Tuesday, 24 January 2012


♥♥♥♥♥♥♥कैसे लिख दूँ हिन्दुस्तानी....♥♥♥♥♥♥♥♥
भारत माँ के तन से बहता,खून जिन्हें लगता है पानी!
भारत माँ के घाव देखकर, जो रखते हैं सुप्त जवानी!
जिन लोगों को देश के झुक जाने से कोई लाज नहीं,
ऐसे लोगों को आखिर में, कैसे लिख दूँ हिन्दुस्तानी!

जिन लोगों का मन नहीं जानता, देश प्रेम का अर्थ!
ऐसे लोगों का जन्म व्यर्थ है और मरना भी व्यर्थ!

जिन लोगों ने भारत की कीमत कभी नहीं पहचानी!
ऐसे लोगों को आखिर में, कैसे लिख दूँ हिन्दुस्तानी.......

जो जन अपने लाभ में करते हैं भारत को नीलाम!
जो जन धर्मवाद में करते, इस देश में कत्ले-आम!
जिन लोगों के काटनी चाही है चैन अमन की डोरी,
तारीखों में कभी न रोशन होता इन लोगों का नाम!

ऐसे लोग नहीं बन सकते हैं, कभी भी प्रेरणावान!
जिन्होंने अपने कदम के नीचे रखा है हिंदुस्तान!

आजादी के किरदारों की झूठी लगती जिन्हें कहानी!
ऐसे लोगों को आखिर में, कैसे लिख दूँ हिन्दुस्तानी.......

जिस धरती पे जन्म लिया, वो धरती माँ जैसे प्यारी!
हमको अपनी गोद में रखे, जन्म-मरण की नातेदारी!
"देव"कभी भी उन लोगों की नम आँखों से याद न आए,
जिन लोगों ने देश के संग में, हर पल की कोई गद्दारी!

मातृभूमि की करें वंदना, आओ करें इसका सम्मान!
हम नहीं करेंगे, नहीं सहेंगे,  इस भारत का अपमान!

जिन लोगों ने मातृभूमि के लिए कोई सोच न ठानी!
ऐसे लोगों को आखिर में, कैसे लिख दूँ हिन्दुस्तानी!"


" देश में पैदा होने मात्र से, हम देशवासी तो कहलाये जा सकते हैं, परन्तु देश-प्रेमी नहीं! और हमारा कर्तव्य है कि, हम जिस देश में जन्म लें, उस देश से प्रेम करें, तो आइये चिंतन करें!"


चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--२५.०१.२०१२





Sunday, 15 January 2012

♥♥माँ की ममता ♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ की ममता ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
माँ की ममता ऐसे पावन, जैसे गंगाजल होता है!
माँ के आंचल के भीतर ही वायु अम्बर थल होता है!
माँ दुनिया में सर्वोत्तम है, माँ जैसा दूजा न कोई,
माँ के आशीषों से सारी समस्याओं का हल होता है!

माँ ही अपना दूध पिलाकर, इस जीवन को सिंचित करती!
नहीं प्यास से पीड़ित रखती, नहीं अन्न से वंचित करती!

माँ का तो व्यवहार सदा ही चन्दन सा शीतल होता है!
माँ के आशीषों से सारी समस्याओं का हल होता है........

माँ के नैनों में एक जैसी होती, उसकी हर संतान!
वो प्रेषित करती है ममता, सभी को एक समान!
अपनी संतानों के हित में, वो अपना दुःख भी भूले,
माँ अपने मन से चाहती है, सभी का हो उत्थान!

कभी न अपनी संतानों को देती, माँ मिथ्या का ज्ञान!
कभी क्रोध को निकट ना लाती,  ना कोई अभिमान!

माँ के मन में भेदभाव न, न ही कोई छल होता है!
माँ के आशीषों से सारी समस्याओं का हल होता है....

माँ की छवि के सम्मुख लगते शब्द हमारे अल्प!
कभी नहीं हो पाता जग में, माँ का कोई विकल्प!
अपने सुख की आकांक्षा में, माँ को ना दो शोक,
माँ का हम सम्मान करेंगे, मन में लो संकल्प!

कोई नहीं कर सकता इस जग में, माँ जैसा बलिदान!
इस स्रष्टि के उदय-मरण तक, जीवित माँ का नाम!

माँ नामक इस शब्द में, एक असीमित बल होता है!
माँ की ममता ऐसे पावन, जैसे गंगाजल होता है!"


"माँ, अद्वितीय है! कोई नहीं उस जैसा! हमारे हर्ष के लिए अपने सुख की
सभी कामनाओं को त्याग देती है माँ, क्यूंकि माँ को सबसे बड़ा सुख उसकी संतानों के हर्ष से मिलता है! तो आइये इस अनमोल चरित्र माँ को नमन करें!


चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक---१६.०१.२०१२


Tuesday, 10 January 2012

♥क्यूंकि उसका नाम है लड़की.....♥

♥♥♥♥♥♥♥क्यूंकि उसका नाम है लड़की.....♥♥♥♥♥♥♥
भेदभाव की आग में जलती, क्यूंकि उसका नाम है लड़की!
कभी भ्रूण के रूप में मरती, क्यूंकि उसका नाम है लड़की!
आज भी उसकी जीवन धारा का रुख, उसके हाथ नहीं है,
औरो के नियमों में चलती,क्यूंकि उसका नाम है लड़की!

अपने मन की आवाजों को भी, अधरों के द्वारे न लाती!
कमरे के इक कोने में जाकर, चुपके चुपके नीर बहाती!

झूठ-मूठ की हँसी में फिरती, क्यूंकि उसका नाम है लड़की!
भेदभाव की आग में जलती, क्यूंकि उसका नाम है लड़की.....

सारे कुल की मर्यादा का, बोझ उसी के सर होता है!
खुद मर्जी से उड़ न पाए, पिंजरे जैसा घर होता है!
फूंक-२ के कदम रखे वो, रहती है सहमी सहमी सी,
अपने अरमानों को मारे, जाने कैसा डर होता है!

आसमान की तरफ देखकर, वो केवल अफ़सोस जताए!
घर के भीतर इतनी बंदिश, मन ही मन वो रोष जताए!

अश्कों को आँखों में भरती, क्यूंकि उसका नाम है लड़की!
भेदभाव की आग में जलती, क्यूंकि उसका नाम है लड़की.....

जाने कब तक नन्ही लड़की, भ्रूण रूप में मौत सहेगी!
जाने कब तक नन्ही लड़की, इन आँखों में नीर भरेगी!
"देव" न जाने कब तक उसको अन्यायों के शूल चुभेंगे,
जाने कब तक नन्ही लड़की, इच्छाओं का दमन करेगी!

इतने सारे विष को पीकर, कभी किसी को बुरा न कहती!
मर्यादा के नाम पे लड़की, जुल्मों को भी चुप चुप सहती!

झूठ-मूठ की हँसी में फिरती, क्यूंकि उसका नाम है लड़की!
भेदभाव की आग में जलती, क्यूंकि उसका नाम है लड़की!"


"लड़की---कभी भ्रूण के रूप में मार दी जाती है तो, कहीं वो मर्यादाओं के नाम पर,
घर में ही कैद कर ली जाती है! लड़की की ये बेबसी, ये लाचारी जाने कभी समाप्त होगी भी या नहीं, या फिर वो ऐसे ही ...........मिटती रहेगी, बुझती रहेगी?

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--१०-०१-२०१२









Monday, 9 January 2012

♥♥♥♥♥♥♥तुम तन्हाई में जान न देना...♥♥♥♥♥♥♥
तुम न कहना बुरा वक्त को, कुदरत को इल्जाम न देना!
ए हमदम मेरी मजबूरी को, तुम धोखे का नाम न देना!

मेरे दिल में केवल तुम हो, नहीं किसी का साया आया!
नहीं किसी के सपने देखे, नहीं किसी को गले लगाया!
हर पल तेरी ही यादों में, दिवस, रात और सुबह शाम है,
तेरी सूरत जब भी चाही, पलक बंद कर पास बुलाया!

मैं जल्दी से आऊंगा वापस, तुम तन्हाई में जान न देना!
तुम न कहना बुरा वक्त को, कुदरत को इल्जाम न देना!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--०९.०१.२०१२





Sunday, 8 January 2012

♥♥चित्र( स्मृति का दर्पण)♥


♥♥♥♥♥♥♥♥चित्र( स्मृति का दर्पण)♥♥♥♥♥♥♥♥
बीते कल की, बीते पल की, याद दिलाते चित्र हमारे!
आँखों के सम्मुख आ जाते, भूले बिसरे सभी नजारे!

कभी आंख को आंसू देते, कभी खुशी के दीप जलाते!
कभी किसी बिछड़े अपने की, स्मृति को पास बुलाते!
मीलों की लम्बी दूरी को, चित्र मिटा देते एक पल में,
परदेसों में रहने वाले, अपनों को भी निकट दिखाते!

चित्र हमारे मन मंदिर में, बीते पल की छवि उभारे!
आँखों के सम्मुख आ जाते, भूले बिसरे सभी नजारे!"

" चित्र भी अनमोल होते हैं! जब भी देखो तो यादें उनके साथ सरपट दौड़ी चली आती हैं!
कभी आंखें नम होती हैं तो कभी खुश! अपने चित्र को देखकर ये पंक्तियाँ मन में आयीं तो
अंकित कर दी हमने! आप भी चित्रों को संजोकर रखियेगा!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०८-०१-२०१२




Friday, 6 January 2012

♥♥गरीब को सर्दी ने जो मारा♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥गरीब को सर्दी ने जो मारा♥♥♥♥♥♥♥♥♥
रुकी है धड़कन, लहू जमा है, गरीब को सर्दी ने जो मारा!
यहाँ वहां वो फिरा बहुत पर, अलाव का न मिला सहारा!
हैं खोखले अफसरों के दावे, के सर्दी से कोई मरा नहीं है,
इन्ही अलावों की लकड़ियों से, गर्म है उनके घरों में पारा!

गरीब लोगों के ही हकों पर, ना जाने डाका पड़ेगा कब तक!
अलाव के बिन ठिठुर-ठिठुर के, गरीब जाने मरेगा कब तक!

गरीब लोगों के आंसुओं के, ना जाने कब तक बहेगी धारा!
रुकी है धड़कन, लहू जमा है, गरीब को सर्दी ने जो मारा....

कहाँ हैं सत्ता की घोषणायें के सर्दी से कोई नहीं मरेगा!
गरीब लोगों की जिंदगी को, अलाव प्रतिदिवस जलेगा!
बंटेंगे कम्बल, बंटेंगी जर्सी, ना सर्दी में नंगा रहने देंगे,
न सर्दी उनको दुखी करेगी, न पाला उन पर असर करेगा!

मगर ये कहने की बात है बस, नहीं है सच्चाई का धरातल!
गरीब को न मिला था कल भी, गरीब को न मिलेगा कुछ कल!

गरीब लोगों की जिंदगी की, कोई बदलता नहीं नजारा !
रुकी है धड़कन, लहू जमा है, गरीब को सर्दी ने जो मारा.....

कहाँ गयीं हैं वो संस्थायें, गरीब हित का जो दावा करतीं!
कहाँ गयी है उनकी सेवा, क्यूँ उनकी आंखें नहीं हैं भरतीं!
गरीबों के हित की आड़ लेकर, गड़प रहे हैं सभी खजाने,
ना जाने ऐसे दुरित कर्म से, क्यूँ संस्थायें नहीं हैं डरतीं!

गरीबों की इन पुकारों को, ये "देव" भी अब नहीं हैं सुनते!
गरीब लोगों की जिंदगी से, खुदा भी कांटे नहीं हैं चुनते!

गरीब लोगों पे टूटता है, खुदा की कुदरत का कहर सारा!
गरीब लोगों की जिंदगी की, कोई बदलता नहीं नजारा !"


" सर्दी से बढ़ने वाली मौतों की संख्या निरंतर बढ़ रही है!
सरकारों के, अफसरों के दावे खोखले लगते हैं! अलाव की लकड़ियाँ चौराहे पर
जलने की बजाये अफसरों के घरों में पारा बढाती हैं! आखिर गरीब ठण्ड से कब तक मरता रहेगा!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--०७.०१.२०१२
















Wednesday, 4 January 2012

♥♥♥♥♥♥क्यूँ ...♥♥♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥क्यूँ ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्यूँ बिकता है प्रेम यहाँ पर, क्यूँ बिकते हैं भाव यहाँ पर!
क्यूँ बिकती है दवा यहाँ पर, क्यूँ दुखते हैं घाव यहाँ पर!

देखो उधर किसी कोने में, मनुज की प्रीती झुलस रही है!
उसके मन मंदिर में केवल, लोभ की बारिश बरस रही है!
अपनी आनंदों में केवल, आज का मानव डूब चूका है,
कहीं पे बीवी, कभी पे बहना, कहीं पे माता तरस रही है!

क्यूँ मिटता है यहाँ समर्पण, क्यूँ मिटते सदभाव यहाँ पर!
क्यूँ बिकता है प्रेम यहाँ पर, क्यूँ बिकते हैं भाव यहाँ पर....

कोई घरों को फूंक रहा है, कोई किसी का यौवन लूटे!
कोई किसी का नीर बहाए, कहीं खून की धारा फूटे!
आज रगों में बहने वाला, खून भी पानी जैसा लगता,
अपनेपन का भी नाता अब, आज यहाँ पल भर में टूटे!

क्यूँ रोती है आंख यहाँ पर, क्यूँ लुटते हैं ख्वाब यहाँ पर!
क्यूँ बिकता है प्रेम यहाँ पर, क्यूँ बिकते हैं भाव यहाँ पर....

आज आदमी को मानव भी, कहने में आती है लज्जा!
औरों के घर रहें-गिरें पर, कायम हो अपने घर सज्जा!
"देव" ये कैसा लालच देखो, आज आदमी ने ओढा है,
मानवता की ढही ईमारत, टुटा- फूटा छत और छज्जा!

क्यूँ रोती है आंख यहाँ पर, क्यूँ लुटते हैं ख्वाब यहाँ पर!
क्यूँ बिकता है प्रेम यहाँ पर, क्यूँ बिकते हैं भाव यहाँ पर!"

"आज मानवता जिस प्रकार से समाप्त होती जा रही है! मनवा सिर्फ अपने लालच के
मद में समाज, सदभाव, अपनायत को मिटाता चला जा रहा है, उससे कैसे मानवता
जीवित बच पायेगी?

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- ०५.०१.२०१२ 

यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!







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Monday, 2 January 2012

♥♥♥♥हमारी बहनें...♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥हमारी बहनें...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हमारी बहनें हैं चांदनी सी, हमारी बहनें खिला सुमन हैं!
हमारी बहनें हैं रागिनी सी, हमारी बहनें मधुर भजन हैं!
हमारी बहनें हैं परियों जैसी, हमारी बहनें घरों की शोभा,
हमारी बहनें हैं कोकिला सी, हमारी बहनें मधुर वचन हैं!

हमारी आंखें यदि सजल हों, हमारी बहनें ही चुप करातीं!
हमारी पीड़ा में साथ आकर, हमारे संग में कदम बढ़ातीं!

हमारी बहनें सदा सुंगंधित के जैसे चन्दन घुली पवन हैं!
हमारी बहनें हैं चांदनी सी, हमारी बहनें खिला सुमन हैं.....

हमारी बहनें हमारी खातिर, खुशी भी अपनी निसार कर दें!
हमारी बहनें हमारे पथ में, गुलों की महकी बहार कर दें!
हमारी बहनें ही बांधती हैं, कलाई में धागा प्रेम वाला,
हमारी बहनें हमारे घर में, हंसी की रिमझिम फुहार कर दें!

हमारी बहनें जो हमसे छोटी, हमें वो बेटी सा प्यार देती!
हमारी बहनें बड़ी जो हमसे, वो हमको माँ सा दुलार देती!

हमारी बहनें कड़ी दुपहरी में, छांव जैसे मधुर छुअन हैं!
हमारी बहनें हैं चांदनी सी, हमारी बहनें खिला सुमन हैं.....
   
हमारी बहनें रहें सलामत, हमारी है बस यही इबादत!
हमेशा इनको करार देना, हमेशा इनकी करो हिफाजत!
कभी हमें वो दिशा दिखाकर, सही गलत का करें इशारा,
कभी न मन में द्वेष रखें, सदा ही मन में रखें मोहब्बत!

हमारी बहनें तो मित्र बनकर, हमारी पीड़ा का हल सुझातीं!
हमारी बहनें हमारे हित में, सदा ही हितकर कदम उठातीं!

हमारी बहनें हैं कोमल के जैसे मखमल का आवरण हैं!
हमारी बहनें हैं चांदनी सी, हमारी बहनें खिला सुमन हैं!"


"बहनें, कभी दोस्त बनकर हमारे सहयोग की साथी बनती हैं तो
कभी हमारे हस्त में राखी का धागा बांधकर हमारी आयु वृद्धि,
हमारे हित की कामना करती हैं! बहनें अनमोल हैं!
तो आइये बहनों को नमन करें!

"ये रचना समर्पित है फेसबुक पे मिलीं मेरी गीता दीदी, अर्चना दीदी,
सरिता दीदी और नैनी जी के लिए! नमन इन्हें!"
   
चेतन रामकिशन "देव"    दिनांक--०३.०१.२०१२