Tuesday, 20 March 2012

♥बचपन के सुनहरे दिन..♥



♥♥♥♥♥♥♥♥बचपन के सुनहरे दिन..♥♥♥♥♥♥♥
वो बचपन के सुनहरे दिन, मुझे जब याद आते हैं!
मेरे सब दोस्त मेरे दिल से अपना दिल मिलाते हैं!
नहीं नफरत, नहीं हिंसा, नहीं छल होता है मन में,
वो एक दूजे के दिल में, प्यार के दीपक जलाते हैं!

मगर जब उम्र बढ़ने से, वो बचपन बीत जाता है!
हर एक इन्सान फिर जाति-धर्म के गीत गाता है!

चिराग-ए-ईश्क बचपन के, सभी फिर टूट जाते हैं!
वो बचपन के सुनहरे दिन, मुझे जब याद आते हैं...

वो बचपन भी बहुत प्यारा, बहुत रंगीन होता था!
कभी हंसकर दिखाता था,कभी ग़मगीन होता था!
नहीं कोई भेद होता था किसी भी दोस्त के मन में,
हर एक बस झूमता गाता, ख़ुशी में लीन होता था!

मगर जब उम्र बढ़ने से, वो बचपन लुप्त होता है!
तो अपनापन हमारी सोच से, फिर सुप्त होता है!

वो मिटटी, कांच से निर्मित, खिलौने फूट जाते हैं!
वो बचपन के सुनहरे दिन, मुझे जब याद आते हैं...

मैं अक्सर सोचता हूँ,काश वो बचपन नहीं जाता!
तो कम से कम ज़माने को,खराबा खून ना भाता!
नहीं फिर "देव" ये दंगे, कहीं नफरत नहीं होती,
हंसी के फूल खिल जाते, दुखों का दौर ना आता!

मगर जब उम्र बढ़ने से, वो बचपन दूर हो जाता!
खुशी का वाकया हर इक, पलों में चूर हो जाता!

वो बचपन के सभी एहसास, मन से छूट जाते हैं!
वो बचपन के सुनहरे दिन, मुझे जब याद आते हैं!"

"
बचपन, न कोई भेद, न कोई नफरत ! धर्म जाति से ऊपर,
एक दूसरे की खुशी में लीन, एक दूजे के साथ साथ भोजन करने के पल, जब भी याद आते हैं तो आज के रक्त रंजित माहौल को देखकर लगता है कि, कहाँ आ गए हम ?"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--२०.०३.२०१२


सर्वाधिकार सुरक्षित!

2 comments:

Unknown said...

बहुत सुंदर भावनाओं के साथ बचपन की व्याख्या की है आपने .....आपकी रचना वाकई अच्छी लगी.....बहुत खूब...

रमा शर्मा, जापान said...

बहुत सुंदर .... बहुत अच्छा चित्रण किया है आपने....