♥♥♥♥♥♥♥विरह की पीड़ा ♥♥♥♥♥♥♥
तेरे बिन ना सुमन, ना कली खिल रही!
मेरे जीवन की हर्षित, किरण ढल रही!
अब विरह भाव को मुक्त कर दो जरा,
ना दिवस शीत है, रात भी जल रही!
क्रोध की भावना से, ना दण्डित करो!
मेरे कोमल ह्रदय को, ना खंडित करो!
तेरे बिन प्रेम की, रीत ना चल रही!
तेरे बिन ना सुमन, ना कली खिल रही........
तेरे बिन शूल पांवो में चुभने लगे!
वो सफलता भरे, पग भी रुकने लगे!
तेरे बिन हैं तिमिर के मनोभाव बस,
अब पथों के उजाले भी, बुझने लगे!
प्रेम की भावना का, ना उपहास कर!
इस तरह हर्ष का, तू नहीं ह्रास कर!
तेरे बिन प्रेम की, रीत ना चल रही!
तेरे बिन ना सुमन, ना कली खिल रही!"
"प्रेम, में विरह बहुत पीड़ा देती है! प्रेम और विरह का सम्बन्ध भी है, किन्तु फिर भी अपनी तरफ से प्रयास करियेगा कि, आपने द्वारा किसी को विरह ना मिले! क्यूंकि, विरह की पीड़ा, व्यक्ति को हतो-उत्साहित करती है!
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२८.०६.२०१२
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