♥♥मन की घुटन.♥♥♥♥
घुटा घुटा मेरा मन क्यूँ है!
दर्द से ये अपनापन क्यूँ है!
चारों तरफा भीड़ है लेकिन,
दिल में ये सूनापन क्यूँ है!
न जाने क्यूँ तन्हाई के,
बादल जीवन पर छाते हैं!
और सितारे खुशियों वाले,
न जाने क्यूँ छुप जाते हैं!
जिन राहों पर कदम रखोगे,
कांटे चुभते हैं पैरों में,
और न जाने क्यूँ जीवन से,
जलते दीपक बुझ जाते हैं!
दिल रोता है, रूह सिसकती,
और मेरा जर्जर तन क्यूँ है!
घुटा घुटा मेरा मन क्यूँ है!
दर्द से ये अपनापन क्यूँ है!"
..........चेतन रामकिशन "देव"...................
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