Friday 24 August 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥अनमोल-प्रेम ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सखी तुम्हारा प्रेम अमर है, प्रेम बड़ा अनमोल!
सखी बहुत सुन्दर लगते हैं, मधुर प्रेम के बोल!

सखी तुम्हारे प्यार से मेरे, जीवन में श्रृंगार!
गंगा जैसा निर्मल है ये, सखी तुम्हारा प्यार!
सखी तुम्हारे प्रेम से, हमको मिलता है उत्कर्ष,
सखी तुम्हारे प्रेम से बहती, चन्दन की रसधार!

सखी तुम्हारे दर्शन करता, मन की आंखे खोल!
सखी तुम्हारा प्रेम अमर है, प्रेम बड़ा अनमोल.....

सखी तुम्हारे प्रेम से मिलते, मेरे कलम को भाव!
सखी तुम्हारे प्रेम से भरते, क्षण में गहरे घाव!
सखी तुम्हारा प्रेम है कोमल, जैसे हो प्रसून,
सखी तुम्हारे प्रेम में हिंसा, न कोई दुर्भाव!

सखी तुम्हारे प्रेम के आगे, धन-दौलत बेमोल!
सखी तुम्हारा प्रेम अमर है, प्रेम बड़ा अनमोल.....

तन तो होता नश्वर, किन्तु जीवित रहता प्यार!
प्रेम है अमृत रस जैसा, जिससे खिलता संसार!
पतझड़, सावन ,सर्दी हो या खिले बसंत बहार ,
"देव" प्रेम तो हर मौसम में करता है मनुहार!

तुमसे ही इतिहास बनेगा और तुम ही भूगोल!
सखी तुम्हारा प्रेम अमर है, प्रेम बड़ा अनमोल!"
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प्रेम-एक अनमोल अनुभूति! एक अनमोल सोच! एक अनमोल और निश्चल भावना! जहाँ शुद्ध प्रेम होता है, वहां जीवन हर्षित होता, वहां जीवन पुलकित होता है! वहां समस्याओं से लड़ने के लिए शक्तियां मिलती है! प्रेम के तीन शब्द, जब ह्रदय की गहराई से किसी को कहे जाते हैं, तो वे शब्द पीड़ा में दवा, प्यास में पानी और जीवन के संघर्ष के समतुल्य अनुभूति प्रदान करते हैं! तो आइये................"

"अपने भावनात्मक प्रेम को समर्पित रचना"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२५.०८.२०१२

रचना मेरे ब्लॉग पूर्व प्रकाशित!

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