Sunday, 30 September 2012


♥♥♥♥♥प्रीत(एक अमूल्य अनुभूति)♥♥♥♥♥♥♥♥
मन की कोमल अनुभूति में, जग गयी देखो प्रीत!
एक अनजाने शख्स को मैंने, बना लिया मनमीत!

फूलों की टहनी से लिखा, दिल पर उसका नाम!
छवि बहुत प्यारी है उसकी, जैसे हो गुलफ़ाम!
जब से मेरे मन जागी है, उसके प्रेम की सोच,
तब से देखो खिली खिली है, मेरी सुबहो-शाम!

उसकी बोली लगती जैसे, वीणा का संगीत!
मन की कोमल अनुभूति में, जग गयी देखो प्रीत!

उसके सपनों से रौशन है, मेरी तो हर रात!
मेरे सीने पर सर रखकर, करती है वो बात!
महक रहा उसकी खुशबु से, ये अपना घर आंगन,
उससे बतियाते बतियाते, हो जाती प्रभात!

उसकी सूरत दिखती पहले, लिखुब ग़ज़ल या गीत!
मन की कोमल अनुभूति में, जग गयी देखो प्रीत!

जिस दिन मेरा प्रेम निवेदन करेगी वो स्वीकार!
उस दिन देखो हो जायेगा, जीवन में श्रृंगार!
लेकिन कोई शर्त नहीं, वो बदले में दे प्रेम.
कभी प्रेम में हाँ होती है, और कभी इनकार!

"देव" प्रेम एहसास है जिसमे, नहीं हार, न जीत!
मन की कोमल अनुभूति में, जग गयी देखो प्रीत!"

" प्रीत-की अनुभूति जब भी कोमल मन में जगती है, तो जीवन सचमुच खिला खिला हो जाता! भले की कोई अनजाना व्यक्ति आकर ह्रदय में प्रेम की दस्तक दे, लेकिन वो फिर भी अपना लगता है! प्रेम की अनुभूति के ये शब्द बहुत कर्णप्रिय होते हैं, इन शब्दों में एक सरगम होती है! तो आइये इस सरगम में खो जायें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०१.१०.२०१२

"रचना अपनी अनदेखी प्रेम की अनुभूति समर्पित!"


सर्वाधिकार सुरक्षित!


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