♥♥♥♥शब्दों का तन..♥♥♥♥♥
आज कलम का मन ज़ख़्मी है
और शब्दों का तन ज़ख़्मी है!
हिंसा से भूमि घायल है,
और ये नील गगन ज़ख़्मी है!
हंसी भला कैसे आये,
जब मानवता की लाश पड़ी हो!
नहीं कफ़न तक के पैसे हों,
और निर्धन की रुदन घड़ी हो!
संतानों के होते भी जब,
घर के बूढ़े मांगे भिक्षा,
और लोगों की जान से ज्यादा,
जब दौलत की छवि बड़ी हो!
हरियाली का वध करने से,
आज हमारा वन ज़ख़्मी है!
आज कलम का मन ज़ख़्मी है!
और शब्दों का तन ज़ख़्मी है!"
....चेतन रामकिशन "देव"......
1 comment:
पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब
बेह्तरीन अभिव्यक्ति .आपका ब्लॉग देखा मैने और नमन है आपको और बहुत ही सुन्दर शब्दों से सजाया गया है लिखते रहिये और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
Post a Comment