Wednesday 17 October 2012


♥♥♥♥♥♥♥काँटों की चुभन.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आजकल रिश्ते भी कमजोर बहुत होने लगे!
आज अपने ही मुझे दर्द में डुबोने लगे!

कल तलक जो मेरी राहों में फूल रखते थे,
वही बेदर्दी से अब काँटों को चुभोने लगे!

आज कल मुल्क के नेताओं की हालत देखो,
अपने लालच में अछूतों के घर भी सोने लगे!

बूंद भर को प्यार को तरसेंगे वही लोग यहाँ,
बीज नफरत के जो सारे जहाँ में बोने लगे!

"देव" बाजार में अब कीमतें घटीं देखो,
चंद सिक्कों के लिए लोग ईमां खोने लगे!"

...........(चेतन रामकिशन "देव").............

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