♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥मखमल का दिल.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
पत्थर जैसी इस दुनिया में, मखमल का दिल ढूंढ रहा हूँ!
जिसकी ठंडक दिल को भाए, ऐसा आँचल ढूंढ रहा हूँ!
आसमान में मार धुँयें की, और रसायन पानी में है,
मैं गंगा के पानी में ही, अब गंगा जल ढूंढ रहा हूँ!
बिन पानी के जिन खेतों की, फसलें देखो झुलस रही हैं,
आज उन्ही खेतों की खातिर, गीला बादल ढूंढ रहा हूँ!
कौन कौन है ऐसा जिसने, इस जनता को नहीं छला हो,
आज सियासी भारत का मैं, इक ऐसा दल ढूंढ रहा हूँ!
"देव" नहीं सुनता है कोई, इस दुनिया में दर्द किसी का,
इसीलिए तो अपने दुख का, अब खुद ही हल ढूंढ रहा हूँ!"
...................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक-०३.०४.२०१३
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