♥♥♥♥♥♥नया गीत..♥♥♥♥♥♥♥
आशाओं के मैं नए शब्द लेकर,
के फिर से नया गीत लिखने लगा हूँ!
पिया है जहर मैंने, जब से ये सच का,
के पहले से सुन्दर, मैं दिखने लगा हूँ!
गिरा हूँ मगर फिर से उठने की हिम्मत,
के इन बाजुओं में बचाकर रखी है!
मैं मिलता हूँ हंसकर रक़ीबों से अपने,
के मैंने तो नफरत भुलाकर रखी है!
नहीं है जरुरी के इस जिंदगी में,
खुशी ही खुशी हमको मिलती रहेगी,
इसी वास्ते मैंने अपनी हंसी में,
के पीड़ा गमों की छुपाकर रखी है!
खुशी और गमों के, मैं इन आंसुओं को,
देखो तसल्ली से, चखने लगा हूँ!
आशाओं के मैं नए शब्द लेकर,
के फिर से नया गीत लिखने लगा हूँ..
कभी तो मिलेगी मुझे मेरे मंजिल,
हताशा में रहने से, क्या फायदा है!
पता है के जब झूठ, आये पकड़ में,
तो फिर झूठ कहने से, क्या फायदा है!
सुनो "देव" अपनी निगाहों से देखो,
निगाहें मिलाकर यहाँ पे रहो तुम,
के तुम दर्द में भी, तलाशो खुशी को,
यूँ मायूस रहने से, क्या फायदा है!
मैं शब्दों से अपने, मोहब्बत की बातें,
के सबकी हथेली पे, रचने लगा हूँ!
आशाओं के मैं नए शब्द लेकर,
के फिर से नया गीत लिखने लगा हूँ!"
.........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-०९.०७.२०१३
आशाओं के मैं नए शब्द लेकर,
के फिर से नया गीत लिखने लगा हूँ!
पिया है जहर मैंने, जब से ये सच का,
के पहले से सुन्दर, मैं दिखने लगा हूँ!
गिरा हूँ मगर फिर से उठने की हिम्मत,
के इन बाजुओं में बचाकर रखी है!
मैं मिलता हूँ हंसकर रक़ीबों से अपने,
के मैंने तो नफरत भुलाकर रखी है!
नहीं है जरुरी के इस जिंदगी में,
खुशी ही खुशी हमको मिलती रहेगी,
इसी वास्ते मैंने अपनी हंसी में,
के पीड़ा गमों की छुपाकर रखी है!
खुशी और गमों के, मैं इन आंसुओं को,
देखो तसल्ली से, चखने लगा हूँ!
आशाओं के मैं नए शब्द लेकर,
के फिर से नया गीत लिखने लगा हूँ..
कभी तो मिलेगी मुझे मेरे मंजिल,
हताशा में रहने से, क्या फायदा है!
पता है के जब झूठ, आये पकड़ में,
तो फिर झूठ कहने से, क्या फायदा है!
सुनो "देव" अपनी निगाहों से देखो,
निगाहें मिलाकर यहाँ पे रहो तुम,
के तुम दर्द में भी, तलाशो खुशी को,
यूँ मायूस रहने से, क्या फायदा है!
मैं शब्दों से अपने, मोहब्बत की बातें,
के सबकी हथेली पे, रचने लगा हूँ!
आशाओं के मैं नए शब्द लेकर,
के फिर से नया गीत लिखने लगा हूँ!"
.........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-०९.०७.२०१३
1 comment:
वाह! सुन्दर कविता!!
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