♥♥♥♥♥आज अपनी लेखनी से...♥♥♥♥♥♥♥
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!
अपने शब्दों से जगत को, नेह का मतलब सिखाया!
कुछ समर्पण, कुछ मधुरता, भावना लेकर के मन की,
मैंने अपनी लेखनी में, पीड़ितों का दुख वसाया!
खुद की खातिर ही जिए जो, आदमी किस काम का है!
फिर तो जीवन आदमी का, सिर्फ खाली नाम का है!
वो ही अच्छा आदमी है, औरों के जो काम आया!
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!
देश में वंचित करोड़ों, देश में भूखे बहुत हैं!
उनके आंगन में लगे वो, पेड़ अब सूखे बहुत हैं!
न ही नेता, न ही अफसर, "देव" कोई न सुने अब,
इन बड़े लोगों के दिल तो, आजकल रूखे बहुत हैं!
भूख की इस वेदना को, शब्द मेरे सुन रहे हैं!
एक दिन बदलाव होगा, ऐसे सपने बुन रहे हैं!
मिट गया उसका जहाँ भी, जिसने लोगों को सताया
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!"
…........…चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१९.१०.२०१३
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!
अपने शब्दों से जगत को, नेह का मतलब सिखाया!
कुछ समर्पण, कुछ मधुरता, भावना लेकर के मन की,
मैंने अपनी लेखनी में, पीड़ितों का दुख वसाया!
खुद की खातिर ही जिए जो, आदमी किस काम का है!
फिर तो जीवन आदमी का, सिर्फ खाली नाम का है!
वो ही अच्छा आदमी है, औरों के जो काम आया!
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!
देश में वंचित करोड़ों, देश में भूखे बहुत हैं!
उनके आंगन में लगे वो, पेड़ अब सूखे बहुत हैं!
न ही नेता, न ही अफसर, "देव" कोई न सुने अब,
इन बड़े लोगों के दिल तो, आजकल रूखे बहुत हैं!
भूख की इस वेदना को, शब्द मेरे सुन रहे हैं!
एक दिन बदलाव होगा, ऐसे सपने बुन रहे हैं!
मिट गया उसका जहाँ भी, जिसने लोगों को सताया
आज अपनी लेखनी से, गीत फिर मैंने रचाया!"
…........…चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१९.१०.२०१३
No comments:
Post a Comment