Wednesday, 5 March 2014

♥♥प्यार के आख़र...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार के आख़र...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझको अपने दिल में रखना, और रूह से प्यार निभाना!
मेरे साथ में रहना हर पल, मैं रूठूं तो मुझे मनाना!
नहीं शिकायत करना मुझसे, अगर काम कोई बिगड़े तो,
मुझको अपने पास बिठाकर, सही काम की लय सिखलाना!

प्रेम के पथ पर नया नया हूँ, एहसासों को सिंचित करना!
न लाऊं उपहार अगर जो, क्रोध नहीं तुम किंचित करना!
अपना एक एक अक्षर देकर, ग़ज़ल तुम्हारी खातिर लिखूं,
और मेरे बिखरे आख़र को, सरस भाव से संचित करना!

काव्य कला में निपुण नहीं हूँ, सही गलत तुम ही बतलाना!
मुझको अपने दिल में रखना, और रूह से प्यार निभाना!

कभी तिमिर जो घेरे मुझको, दीपक बनकर राह दिखाना!
अगर अधिकता काम की हो तो, मेरा थोड़ा हाथ बंटाना!
कभी थकावट हो मुझको तो, गोद में अपनी मुझे सुलाना,
माँ की लोरी की तरह से, प्यार भरे कुछ गीत सुनाना!

बुरी नजर का खतरा हो तो, काजल का एक तिलक लगाना!
मुझको अपने दिल में रखना, और रूह से प्यार निभाना!

नजर से अपनी दूर न करना, घने पेड़ सी छाया करना!
इस दुनिया की नज़र से हमदम, अपना प्यार बचाया करना!
"देव" कभी मुश्किल लम्हों में, अगर अकेला पड़ जाऊं तो,
तो तुम मेरे हाथ में हमदम, अपना हाथ थमाया करना!

तुम शामिल हो मेरी रूह में, रूह में अपनी मुझे समाना!
मुझको अपने दिल में रखना, और रूह से प्यार निभाना!"

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प्रेम-का एक एक क्षण अनमोल होता है, प्रेम अनुबंध पत्रों जैसे लिखित प्रमाणों का मोहताज नहीं होता, हाँ वो विश्वास और समर्पण का आधार मांगता है, प्रेम चाहें एक क्षण का ही क्यूँ न हो, अगर वो समर्पण और विश्वास के साथ किया जाता है अथवा दिया जाता है, तब वो क्षणिक प्रेम भी प्रेम ग्रंथ पर अमर हो जाता है, तो आइये प्रेम को धारण करें! "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.०३.२०१४

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सर्वाधिकार सुरक्षित "
" मेरी ये रचना, मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

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