♥♥♥♥♥♥♥आँखों की नदी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ढूंढकर भी मुझे जब तू नहीं मिल पाती है!
मेरी आँखों की नदी फिर से मचल जाती है!
तुझको इल्ज़ामों से फुर्सत ही नहीं मैं क्या करूँ,
जिंदगी पेश-ए-सफाई में निकल जाती है!
जैसा बोओगे वही वैसा काटना होगा,
ख़ार बोने से कहाँ गुल की फसल आती है!
जिंदगी में कोई जब देता सहारा हक़ से,
लड़खड़ाती हुयी दुनिया भी संभल जाती है!
तेरे बदलाव से हैरानगी नहीं मुझको,
मोम की कांच तो पल भर में पिघल जाती है!
मलके मरहम भी नहीं, चैन मयस्सर हमको,
दर्द की आंच से ये, रूह भी जल जाती है!
"देव" चेहरे से नहीं गम के निशां मिटने दिए,
वरना सूरत तो यहाँ पल में बदल जाती है!
...........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-१५.०४.२०१४
ढूंढकर भी मुझे जब तू नहीं मिल पाती है!
मेरी आँखों की नदी फिर से मचल जाती है!
तुझको इल्ज़ामों से फुर्सत ही नहीं मैं क्या करूँ,
जिंदगी पेश-ए-सफाई में निकल जाती है!
जैसा बोओगे वही वैसा काटना होगा,
ख़ार बोने से कहाँ गुल की फसल आती है!
जिंदगी में कोई जब देता सहारा हक़ से,
लड़खड़ाती हुयी दुनिया भी संभल जाती है!
तेरे बदलाव से हैरानगी नहीं मुझको,
मोम की कांच तो पल भर में पिघल जाती है!
मलके मरहम भी नहीं, चैन मयस्सर हमको,
दर्द की आंच से ये, रूह भी जल जाती है!
"देव" चेहरे से नहीं गम के निशां मिटने दिए,
वरना सूरत तो यहाँ पल में बदल जाती है!
...........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-१५.०४.२०१४
3 comments:
आपकी लिखी रचना बुधवार 16 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
बहुत ही उम्दा गज़ल ... लाजवाब ...
"
सम्मानित दिग्विजय जी, एवं दिगंबर जी, आपका आभार "
Post a Comment