♥♥♥कविता(एक चन्द्रिका)..♥♥♥
मैं कविता का पक्ष करता हूँ!
भावनाओं का नक्ष करता हूँ!
जब कविता को मुझसे मिलना हो,
मन को उसके समक्ष करता हूँ!
ये कविता है प्रेमिका जैसी!
ये कविता है चन्द्रिका जैसी!
रंग भर देती अक्षरों में जो,
ये कविता है तूलिका जैसी!
योग्यता इतनी हैं भरी जिसमें,
उसको वंदन से यक्ष करता हूँ!
मैं कविता का पक्ष करता हूँ...
प्रेम की बारिशों सी बरसी है!
मेरे आँगन की एक तुलसी है!
ये कविता है इस तरह अपनी,
मेरी पीड़ा में साथ झुलसी है!
देख कविता के इस समर्पण को,
आंसुओं से मैं अक्ष भरता हूँ!
मैं कविता का पक्ष करता हूँ...
ये कविता सदा ही पावन हो!
हर कलमकार का धवल मन हो!
"देव" आशाओं के जलें दीपक,
न तिमिर से भरा कोई क्षण हो!
एक बढ़ाई तो है बहुत ही कम,
मैं तो प्रसंशा लक्ष करता हूँ!
मैं कविता का पक्ष करता हूँ!
भावनाओं का नक्ष करता हूँ! "
(नक्ष-अंकित/लेखन, यक्ष-देवयोनि/विशेष, अक्ष-नयन/आँखे, लक्ष-लाख )
" कविता, जब आत्मा और हृदय से अंकित होती है, तो वो प्रेरणा बन जाती है, कविता
किसी की बपौती नहीं, कविता तो हृदय के मूल तत्वों में निहित होती है, जो हृदय के भावों से, अंकित नहीं होती, वो तुकांत/अतुकांत गठजोड़ तो हो सकता है, पर कविता कभी नहीं, तो आइये कविता का सम्मान हृदय से करें! "
......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-११.०९.२०१४
"
सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "
1 comment:
अच्छी रचना .. व्यक्त भाव ही होनें चाहिए ..
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