♥♥♥♥♥साथ ग़र तेरा...♥♥♥♥♥
साथ ग़र तेरा मिल गया होता।
प्यार का दीप जल गया होता।
हौंसला तेरे प्यार का पाकर,
ग़म का पर्वत भी हिल गया होता।
तू जो हाथों से अपने देती शिफ़ा,
मेरा हर घाव सिल गया होता।
बीज उल्फ़त के रोंप देतीं अगर,
फूल चाहत का खिल गया होता।
प्यार का मुझको ऐसा देते शहद,
मेरे दिल में जो घुल गया होता।
रौशनी लेके तेरी रंगत की,
ये अँधेरा भी ढल गया होता।
प्यार तक़दीर में नहीं शायद,
"देव" होता तो मिल गया होता। "
........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-१९.१०.२०१४
साथ ग़र तेरा मिल गया होता।
प्यार का दीप जल गया होता।
हौंसला तेरे प्यार का पाकर,
ग़म का पर्वत भी हिल गया होता।
तू जो हाथों से अपने देती शिफ़ा,
मेरा हर घाव सिल गया होता।
बीज उल्फ़त के रोंप देतीं अगर,
फूल चाहत का खिल गया होता।
प्यार का मुझको ऐसा देते शहद,
मेरे दिल में जो घुल गया होता।
रौशनी लेके तेरी रंगत की,
ये अँधेरा भी ढल गया होता।
प्यार तक़दीर में नहीं शायद,
"देव" होता तो मिल गया होता। "
........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-१९.१०.२०१४
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