Saturday, 22 November 2014

♥♥मिथ्या सौगंध...♥♥


♥♥♥मिथ्या सौगंध...♥♥♥
फूलों में भी गंध नहीं है। 
अब सच्ची सौगंध नहीं है। 
क्षण भर में सब अलग हो रहे,
रूहानी सम्बन्ध नहीं है। 

चटक रहे दिल शीशे जैसे,
भावुकता का मान नहीं है। 
दर्द किसी को कितना होगा,
मानो उनको ज्ञान नहीं है। 
परदे पर नाटक का मंचन,
करके पात्र बदल जाते हैं,
कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा का,
अब कोई स्थान नहीं है। 

खेल रहें हैं लोग दिलों से,
कोई प्रतिबन्ध नहीं है। 
क्षण भर में सब अलग हो रहे,
रूहानी सम्बन्ध नहीं है...

नाम की नातेदारी रखना,
अब लोगों का नया नियम है। 
तोड़ के दिल वो सोच रहे हैं,
मानो कोई सही करम है। 
"देव" न जाने क्यों लोगों के,
हाथ जरा भी नहीं कांपते,
अब अपनायत नहीं रही है,
न ही मन में बचा रहम है। 

मारके दिल लावारिस छोड़ें,
कफ़न का भी प्रबंध नहीं है। 
 क्षण भर में सब अलग हो रहे,
रूहानी सम्बन्ध नहीं है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२३.११.२०१४ 

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