Sunday, 23 November 2014

♥♥♥हे! कुदरत...♥♥♥


♥♥♥♥♥हे! कुदरत...♥♥♥♥♥
माँ की गोद में रखा सर हो। 
भरा ख़ुशी से सबका घर हो। 
हिंसा, नफरत, शूल रहें न,
भूखा कोई, न बेघर हो। 

हे! कुदरत तुमसे विनती है,
दिल लोगों का साफ़ करो तुम। 
न्याय की खातिर भटक रहा जो,
उसके संग इन्साफ करो तुम। 
ये क्या तुम आँखों को मूंदे,
लाचारों पर जुल्म देखतीं।
जो लोगों के हक़ को लूटें,
कभी न उनको माफ़ करो तुम। 

बिन रोटी के मरे न मुफ़लिस,
और न जल में घुल जहर हो। 
हिंसा, नफरत, शूल रहें न,
भूखा कोई, न बेघर हो...

सही कार्य का अवलोकन कर,
उसको आगे करते रहना। 
हे! कुदरत तुम शक्तिशाली,
पापी जन का बोझ न सहना। 
"देव" की तरह लोग अनेकों,
विनती तुमसे ये करते हैं,
नहीं तनिक भी निर्दोषों के,
घर को बिजली बनकर ढहना। 

इस जग को तुम ऐसा कर दो,
घर घर में बहता मधुकर हो। 
हिंसा, नफरत, शूल रहें न,
भूखा कोई, न बेघर हो। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२४ .११.२०१४


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