Monday, 8 December 2014

♥♥♥प्रदीप्ति...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रदीप्ति...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
घना कोहरा, बड़ा गहरा, नहीं कुछ भी दिखाई दे। 
धधकते सूर्य के ऊपर भी, जब पहरा दिखाई दे। 
तुम्हें उम्मीद के दीयों से, उसको फिर जगाना है,
कोई ज्योति अगर तुमको, कभी बुझती दिखाई दे। 

अँधेरा देखकर, डरकर, सफर तय नहीं हो सकता। 
जिसे हो जीतना उसको कोई भय हो नहीं सकता! 
किसी का साथ मिल जाये तो बेहतर है सफर लेकिन,
कोई जो साथ छोड़े तो प्रलय भी हो नहीं सकता। 

भुजाओं में जो रखते बल, अकेले होके भी भारी। 
वही मौका गंवाता है, वो जिसकी सोच है हारी। 

सुनो संगीत तुम दिल का, जो दुनिया चुप दिखाई दे। 
घना कोहरा, बड़ा गहरा, नहीं कुछ भी दिखाई दे। "

..............चेतन रामकिशन "देव"…….......... 
दिनांक--०९.१२.२०१४

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