♥♥♥♥♥रिक्तता...♥♥♥♥♥♥♥
रिक्तता बिन तेरे बहुत होती।
आँख भी बिन तेरे नहीं सोती।
रात की लम्बी सी सुरंगों में,
भोर भी पास में नहीं होती।
तेरे आने की राह नजरों में।
तेरे दर्शन की चाह नज़रों में।
तेरी धुंधली सी भी झलक न दिखे,
तो उमड़ती है दाह नजरों में।
चाहकर भी ये अब जटिल पीड़ा,
देखो अवकाश में नहीं होती।
रात की लम्बी सी सुरंगों में,
भोर भी पास में नहीं होती …
प्राण के बिन मेरा ये तन रहता।
मौन हूँ अब मैं कुछ नहीं कहता।
" देव " पाषाण तुमने समझा तो,
बनके जलधार मैं नहीं बहता।
ढ़लना चाहूँ मैं तेरी प्रतिमा में,
और कोई आस अब नहीं होती।
रात की लम्बी सी सुरंगों में,
भोर भी पास में नहीं होती। "
......चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक--०९.१२.२०१४
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