Monday, 16 February 2015

♥♥दर्द की परछाईं...♥♥


♥♥♥♥♥दर्द की परछाईं...♥♥♥♥♥♥♥
ख्वाब फिर अंगड़ाई लेकर आ रहे हैं। 
दर्द की परछाईं लेकर आ रहे हैं। 

दर्द की कैसे दवा मुझको मिलेगी,
इस कदर महंगाई लेकर आ रहे हैं। 

भीड़ में भी हर घड़ी तनहा करे,
हर लम्हा तन्हाई लेकर आ रहें हैं। 

मुझको ठोकर मार जो आगे बढे,
मेरी खातिर खाई लेकर आ रहे हैं। 

लूटकर पैसा जो घर में भर रहे,
दान को एक पाई लेकर आ रहे हैं। 

क़त्ल करके उनको न कोई सजा,
पर मेरी रुसवाई लेकर आ रहे हैं। 

"देव" जिसने उम्र भर आंसू दिये,
आज वो शहनाई लेकर आ रहे हैं। "

........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-१६.०२.२०१५

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