♥♥♥♥♥उमस...♥♥♥♥♥♥
मैं आँखों से बरस रहा हूँ।
लेकिन जल को तरस रहा हूँ।
बाहर से मैं खुश दिखता हूँ,
पर भीतर से झुलस रहा हूँ।
अंतर्मन पे चोट लगी है,
पर उसका उपचार नहीं है।
वही उठायें सबपे ऊँगली,
खुद जिनका आधार नहीं है।
लोगों का दिल ज़ख़्मी करके,
देख रहेंगे हैं खूब तमाशा,
वो क्या जानें मानवता को,
जिनके दिल में प्यार नहीं है।
दम घुटता, हवा नहीं है,
मन ही मन में, उमस रहा हूँ।
बाहर से मैं खुश दिखता हूँ,
पर भीतर से झुलस रहा हूँ।
पीठ में खंजर घोंपा जाये,
चीख किसी की कब सुनते हैं।
लोग अजब हैं इस दुनिया के,
बस अपना मतलब चुनते हैं।
"देव" किसी की आह को सुनकर,
अनदेखा करने की कोशिश,
किसी के घर को सौंप तबाही,
नफरत के जाले बुनते हैं।
प्यार वफ़ा के ढाई अक्षर,
मैं सुनने को तरस रहा हूँ।
बाहर से मैं खुश दिखता हूँ,
पर भीतर से झुलस रहा हूँ। "
........चेतन रामकिशन "देव"..........
दिनांक-१८.०२.२०१५
No comments:
Post a Comment