♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥बेवफाई...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ज़िक्र मेरा करते करते, आँख क्यों नम हो रही है।
क्या तुम्हारी बेवफाई, आज बेदम हो रही है।
लौटकर तुम तब न आये, मिन्नतें कितनी बयां कीं,
अब क्या आना, जब हमारी उम्र ये कम हो रही है।
पत्थरों की चोट देकर, दोस्तों संग जश्न में थे,
वक़्त बदला तो उन्हीं की, राह गुमसुम हो रही है।
अब न मेरे पास आना, आग हूँ मैं जल पड़ोगे,
है लपट ज्वालामुखी की, तेज हरदम हो रही है।
सोचता हूँ माफ़ कर दूँ, तुमको मैं इंसानियत पर,
पर हमारी रूह ऐसा सुनके, पुरनम हो रही है।
इश्क़ की बातें क्या करना, कद्र जब दिल की नहीं हो,
इसीलिए तो प्यार की, इज़्ज़त बहुत कम हो रही है।
"देव" एक छोटी जगह भी, दिल की तुमको दे सकूँ न,
क्यूंकि अब तन्हाई खुद की, मेरी हमदम हो रही है। "
.................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-२४.०२.२०१५
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