Saturday, 14 February 2015

♥♥...आह ♥♥


♥♥♥♥♥...आह ♥♥♥♥♥
दिल में दर्द बहुत होता है। 
जब कोई निर्धन रोता है। 
उसकी रात कटे रो रोकर,
भूखा प्यासा दिन होता है। 

क्यों निर्धन के हक़ पे डाला,
रोज यूँ ही डाला जाता है। 
क्यों निर्धन की तारीखों को,
बस कल पे टाला जाता है। 
क्यों निर्धन को ठगने वाले,
गैर वतन को काला धन दें,
जो लूटा करते निर्धन को,
क्यों उनका पाला जाता है। 

निर्धन कृषक अन्न उगाये,
तब ये सारा जग सोता है। 
उसकी रात कटे रो रोकर,
भूखा प्यासा दिन होता है... 

नये शहर की नयी योजना,
रोज यहाँ विकसित होती है। 
पर निर्धन की ओर किसी की,
सोच नहीं दृष्टित होती है। 
"देव" अगर निर्धन को यूँ ही,
रखा हाशिये पे जायेगा। 
तो ये निर्धन भूखा, प्यासा,
ऐसे ही मारा जायेगा। 

मजदूरी भी इतनी कम है,
नहीं गुजारा तक होता है।  
उसकी रात कटे रो रोकर,
भूखा प्यासा दिन होता है। "

.......चेतन रामकिशन "देव"……  
दिनांक-१५.०२.२०१५

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