Monday 9 February 2015

♥♥पक्षपात...♥♥


♥♥♥♥♥पक्षपात...♥♥♥♥♥♥
पक्षपात, आघात हमे क्यूँ। 
विरह में व्याकुल रात हमे क्यूँ। 
अपनी विजय श्री लिखने को,
आखिर बोलो मात हमे क्यूँ। 

हम भी मानव हैं तुम जैसे,
फिर क्यों खुद को श्रेष्ठ समझना। 
कुदरत ने जब फ़र्क़ किया न,
तो क्यों खुद को ज्येष्ठ समझना। 
जीवन में इस प्रेम के पथ पर,
मैं से जो हम हो जाते हैं। 
उनमें अंतर नहीं रहे फिर,
वे मानव सम हो जाते हैं। 

स्वर्ण पत्र सबको देते हो,
बोलो सूखे पात हमे क्यों। 
अपनी विजय श्री लिखने को,
आखिर बोलो मात हमे क्यूँ...

गठबंधन या नातेदारी,
चाहें फूलों की फुलवारी। 
बिना समर्पण के नहीं होती,
रिश्तों की दुनिया उजियारी। 
"देव" जहाँ में समरसता से,
जो रिश्तों को अपनाते हैं। 
वही लोग एक एक में जुड़कर,
देखो ग्यारह बन जाते हैं। 

सबसे हंसकर बोल रहे पर,
नाम की ऐसे बात हमे क्यूँ। 
अपनी विजय श्री लिखने को,
आखिर बोलो मात हमे क्यूँ। "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक- ०९.०२.२०१५ 

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