Sunday, 1 March 2015

♥♥♥♥खत...♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥खत...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किसी के वास्ते लिखा हुआ ख़त, लौट आया है। 
वो मुझको भूल बैठा या पता झूठा बताया है। 
मैं अपने खत को हाथों में, पकड़ जो देखने बैठा,
लगा के मेरे लफ़्ज़ों ने, बड़ा सागर बहाया है। 

वफ़ा के साथ में अक्सर, यही खिलवाड़ क्यों होता। 
कोई चिट्ठी न अपनाये, पता सच्चा नही होता। 

इन्हीं सब उलझनों ने आज फिर से, दिल दुखाया है। 
किसी के वास्ते लिखा हुआ ख़त, लौट आया है.... 

नहीं मालूम क्यों एहसास की, कीमत नहीं होती। 
मेरी चिट्ठी यही सब सोचकर के, ग़मज़दा होती। 
भरोसा टूटने लगता है मेरा "देव" उस लम्हा,
किसी के प्यार की क्यों कर, यहाँ इज़्ज़त नहीं होती। 

तड़पती अपनी चिट्ठी को, मैं सीने से लगाता हूँ। 
यहाँ कोई नहीं सुनता, उसे मैं चुप कराता हूँ। 

ये चिट्ठी जब भी रोती है, गले इसको लगाया है। 
किसी के वास्ते लिखा हुआ ख़त, लौट आया है। "

..............चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-०२.०३.२०१५

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