♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥कैसी होली..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
विरह में डूबी रात कठिन है, तिमिर बहुत गहरा छाया है।
दिन भी बीता सुबक सुबक कर, चैन नहीं पल को आया है।
आँखों में लाली छाई है और चेहरे पे बड़ी उदासी,
बिना तुम्हारे रंग हैं फीके, होली पे दिल भर आया है।
तुमने दिल की सुनी नहीं क्यों, क्यों मुझसे नाता तोड़ा है।
नहीं ख़ुदकुशी मुझे गवारा, पर जीवन भी कब छोड़ा है।
तुम बिन हंसी, ख़ुशी सब भूला, कदम कदम पे ग़म पाया है।
विरह में डूबी रात कठिन है, तिमिर बहुत गहरा छाया है....
रंगों का त्यौहार निकट है, होली पे वापस आ जाना।
तरस गया हूँ मैं खिलने को, मुझे प्यार का रंग लगाना।
"देव" तुम्हारे बिन अरसे से, नींद नहीं आई आँखों को,
गोद में मेरा सर रखकर के, मुझको मीठी नींद सुलाना।
तुम आओगी तो होली पर, रंग हजारों खिल जायेंगे।
चाँद चांदनी बरसायेगा, जब हम दोनों मिल जायेंगे।
दुनिया में हैं लोग करोड़ों, नहीं मगर तुमसे पाया है।
विरह में डूबी रात कठिन है, तिमिर बहुत गहरा छाया है। "
....................चेतन रामकिशन "देव"........................
दिनांक-०२.०३.२०१५
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