♥♥♥♥भ्रूण में बालिका...♥♥♥♥♥
भ्रूण में बालिका है,पता जब चला!
उसके पालन का देखो इरादा टला!
मात को उसका आगम नहीं भा रहा!
और पिता क्रोध में देखो चिल्ला रहा!
मानो सारी हंसी को ग्रहण लग गया,
गीत खुशियों के, कोई नहीं गा रहा!
हर्ष की धूप का मानो सूरज ढला!
भ्रूण में बालिका है,पता जब चला.....
पुत्र होता तो खुशियों में होते मगन!
गीत गाते सभी, घर में होता हवन!
बालिका देखकर हर खुशी मिट गई,
देखो रोने लगे हर किसी के नयन!
बालिका से ही होती जलन क्यूँ भला!
भ्रूण में बालिका है,पता जब चला......
बालिका भी तो मानव की संतान है!
न ही निर्जीव है, न ही निष्-प्राण है!
बालिका भी तो है "देव" इन्सान ही,
उसकी सूरत में भी देखो भगवान है!
बालिका से ही होता क्यूँ हमको गिला!
भ्रूण में बालिका है,पता जब चला!"
"बालिका की भ्रूण हत्या, अभी भी बदस्तूर जारी है!
एक तरफ कन्या को देवी का रूप मन जाता है और दूसरी तरफ उसको दुनिया देखने से पहले ही कुचल दिया जाता है! आखिर हम क्यूँ नहीं समझते, कि बालिका भी सजीव है और वो भी पुत्र की तरह ही आवश्यक है! तो आइये जरा चिंतन करें! "
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--१७.०३.२०१२
सर्वाधिकार सुरक्षित!
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