Tuesday, 27 December 2016

♥शोर, शराबा....♥

♥♥♥♥शोर, शराबा....♥♥♥♥
ग़म की आग, जला ये दिल है। 
जीने में तो कुछ तो मुश्किल है। 

चीख निकलकर भी दब जाये,
शोर, शराबा और कातिल है। 

खून चूसकर भी खुशहाली,
नहीं पता कैसे हासिल है। 

झूठ यहाँ सर चढ़कर बोले,
सच देखो कितना बोझिल है। 

मुझको ऊँचा देख गिराया,
यार नहीं है, वो संगदिल है।  

अनपढ़ होकर भी अपनापन,
पढ़ा लिखा है, पर जाहिल है। 

"देव " ईमां जिसने बेचा हो,
ख़ाक भला वो जिंदादिल है। "

दिनांक- २७.१२.२०१६  
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित ) 





Thursday, 22 December 2016

♥एक तूफ़ान....♥

♥♥♥♥एक तूफ़ान....♥♥♥♥
एक तूफ़ान नज़र आया है। 
घर मिटटी का घबराया है। 

अपनों ने भी नज़रें फेरीं,
गैरों ने भी ठुकराया है। 

सफर आखिरी जोड़ घटा लूँ,
कितना खोया, क्या पाया है। 

उसी फूल को रौंदा जाता,
जिसने आंगन महकाया है। 

हमको पाला छांव में जिसने,
उसी पेड़ को कटवाया है। 

जो झूठा था उसे अशरफी,
आखिर सच को झुठलाया है। 

''देव'' ये दुनिया बड़ी बेरहम,
कब्र में जिन्दा दफ़नाया है। "


(चेतन रामकिशन "देव")

दिनांक- २२.१२.२०१६ 
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित ) 








Tuesday, 22 November 2016

♥♥♥♥तुम नदी हो....♥♥♥♥




♥♥♥♥तुम नदी हो....♥♥♥♥
तुम नदी हो कोई मधुर जल की। 
तुम हो श्रृंगारिका सुनो थल की। 
मेरे जीवन का वर्तमान हो तुम,
तुम ही आधार हो मेरे कल की। 

मेरे जीवन का हर्ष तुमसे है। 
ये दिवस, माह, वर्ष तुमसे है। 
तुम नहीं हो तो मैं भी शेष नहीं,
मेरे नयनों का कर्ष* तुमसे है। 

तुमसे पुलकित हुआ मन मेरा,
तुम ही प्रतीक हो मेरे बल की।   

तुम नदी हो कोई मधुर जल की....

तुम से संयुक्त होके रह जाऊं। 
तेरी पीड़ा को स्वयं ही सह जाऊं। 
तेरी वाणी का शब्द बनकर के,
प्रेम के काव्य, छंद कह जाऊं। 

सर्वहित का विचार रखती हो,
तुम न दुर्भावना किसी छल की। 

तुम नदी हो कोई मधुर जल की....

मेरे साकार स्वप्न का दर्शन । 
तुम पे ये प्राण भी करूँ अर्पण।
"देव " तुम अर्थ हो समर्पण का,
तुम बिना रिक्त है मेरा जीवन। 

मेरे उल्लास का शिखर तुमसे,
और दृढ़ता हो तुम मेरे तल की। 

तुम नदी हो कोई मधुर जल की...."


(कर्ष*-आकर्षण )

"
प्रेम, एक ऐसा शब्द जिसमें समूची शान्ति, अपनत्व और कल्याण छिपा है,
प्रेम केवल युगलों का ही सूचक नहीं, अपितु समूचे जनमानस की कोमल भावना का सूचक है, तो आइये प्रेम को अपनत्व के प्रत्येक संदर्भ में स्वीकार करें........ चेतन रामकिशन "देव"

दिनांक- २३.११.२०१६
(मेरी यह रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित, सर्वाधिकार सुरक्षित ) 

Monday, 12 September 2016

♥♥♥♥प्रेम का पक्ष....♥♥♥♥

♥♥♥♥प्रेम का पक्ष....♥♥♥♥
प्रेम का पक्ष है,
मेरे समकक्ष है,
साथ तेरे रहूँ,
बस यही लक्ष है।
देखो आकाश में,
खिल गया चंद्रमा,
तेरे मेरे मिलन का,
जो उपलक्ष है।

मेरे अपनत्व में, तुम मेरे नेह में।
तुम मेरी आत्मा, तुम मेरी देह में।
तुमको देखा तो देखो खिले फूल भी,
हर्ष की पत्तियां, तुम तना, मूल भी।

तू मेरा केंद्र बिंदु,
तू ही अक्ष है।
तेरे मेरे मिलन का,
जो उपलक्ष है।

प्रेम का संचलन, आंकलन और मनन।
है यही प्रार्थना, तेरा हो आगमन।
"देव " तुमसे कभी भी विरक्ति न हो।
भूलकर भी विरह की विपत्ति न हो।

मेरे मन को पढ़े,
तू सबल, दक्ष है।
तेरे मेरे मिलन का,
जो उपलक्ष है।

......चेतन रामकिशन "देव"……
दिनांक-१२.०९ .२०१६
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "



Thursday, 14 July 2016

♥♥तुम.....♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम.....♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
धवल छवि, सौंदर्य अनुपम, केश मुग्ध करते हैं मन को। 
तुम बिन मेरे साथ तिमिर था, तुमने श्वेत किया जीवन को। 
मेरे भावों की सरिता तुम,  मेरी कविता की परिचायक,
तुम पावन हो गंगाजल सी, तुमने सिद्ध किया चन्दन को। 

प्रेम ग्रन्थ के प्रसंगों को, अभिव्यक्ति का सार दिया है। 
सखी मेरे जीवन को तुमने, मनचाहा उपहार दिया है। 

मधुर सुरीला स्वर तुमने ही, दिया है पायल की छन छन को। 
तुम पावन हो गंगाजल सी, तुमने सिद्ध किया चन्दन को....

दीप प्रेम के हुये हैं पुलकित, उत्सव का अवसर लगता है। 
तुम से ही पथ सरल हमारा, स्वर्ग सा तुमसे घर लगता है। 
तुम पर्याय सुमन, फूलों की, उपवन का उल्लास है तुमसे,
बिन तेरे जीवन का एक क्षण, सोचने से भी डर लगता है। 

तुमने ही सूनी डाली पर, हरा भरा श्रृंगार किया है। 
तुमने शब्दों की ऊर्जा बन, भावों का विस्तार किया है। 

तुम संग मन का क्रोध है कमतर, भूल रहा हूँ मैं अनबन को। 
तुम पावन हो गंगाजल सी, तुमने सिद्ध किया चन्दन को....

तुम अपने दर्शन देकर के, मेरा मन हर्षित करती हो। 
बहुत बड़ा ह्रदय तुम्हारा, प्राण तलाक अर्पित करती हो। 
"देव" तुम्हारी मृदुभषिता सुनकर, मन को अच्छा लगता,
नहीं किसी का बुरा सोचतीं, तुम दुनिया का हित करती हो। 

तुमने मेरी अनुभूति का, हर क्षण ही सत्कार किया है। 
बड़ा भाग्य है सखी हमारा, मुझको तुमने प्यार दिया है। 

मिटा अँधेरा जो तुम आईं, तारे चमके अभिनन्दन को। 
तुम पावन हो गंगाजल सी, तुमने सिद्ध किया चन्दन को। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१५.०७.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "



Friday, 8 July 2016

♥♥माँ......♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥माँ......♥♥♥♥♥♥♥♥
माँ की आँखों का प्यार प्यारा है। 
मैं हूँ साहिल तो माँ किनारा है। 
मेरे कानों में तब शहद सा घुले,
जब भी माँ ने मुझे पुकारा है। 

देखकर माँ को चैन मिलता है। 
घर में ममता का फूल खिलता है। 

माँ से रौशन ये घर हमारा है। 
माँ की आँखों का प्यार प्यारा है....

माँ सुगन्धित बहार जैसी है। 
माँ की बोली सितार जैसी है। 
माँ के स्पर्श से मिटा पीड़ा,
माँ तो शीतल फुहार जैसी है। 

माँ से ऊँचा न कोई रिश्ता है। 
माँ तो धरती पे एक फरिश्ता है। 

माँ ने ही आज कल संवारा है। 
माँ की आँखों का प्यार प्यारा है। 

माँ सुखद लोरियों की गायक है। 
माँ सुखद भावना की वाहक है। 
"देव" माँ का ये कद धरा जैसा,
माँ तपस्वी है और साधक है। 

माँ उमंगों में, माँ तरंगों में। 
माँ ही शामिल है, सात रंगों में। 

माँ तो ममता की दिव्य धारा है। 
माँ की आँखों का प्यार प्यारा है। "


अपनी दोनों माताओं को सादर समर्पित। 


........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०८.०७.२०१६  
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "
मेरी ये कविता मेरी वेबसाइट http://www.kavicrkdev.com/ एवं ब्लॉग https://chetankavi.blogspot.in/ पर पूर्व प्रकाशित।

Tuesday, 5 July 2016

♥बूँद बूँद आंसू......♥

♥♥♥♥♥♥बूँद बूँद आंसू......♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बूँद बूँद आंसू फूटे हैं, और हमारे दिल टूटे हैं। 
जो कहते थे हमको अपना, आज उन्होंने घर लूटे हैं। 
मानवता को तार तार कर, भरा खून से मेरा दामन,
अपना दर्द बताया हमने, तो कहते हैं हम झूठे हैं। 

ये कैसी दुनिया है जिसमें, नहीं दर्द की सुनवाई है। 
दिल रोता है बिलख बिलख कर, आँख हमारी भर आई है। 

पतझड़ है खुशियों पर फिर से, पीड़ा के अंकुर फूटे हैं। 
अपना दर्द बताया हमने, तो कहते हैं हम झूठे हैं....

वो सिक्कों के सौदागर, वो अपनायत क्या जानेंगे। 
जब मन होगा ठुकरा देंगे, जब मन होगा पहचानेंगे। 
हत्यारे हैं मेरे दिल के, रौंद दिया है अरमानों को,
कातिल हैं वो उन्हें पता है, लेकिन फिर भी न मानेंगे। 

दिल में कितना ज़हर भरा है, आज झलक ये दिखलाई है। 
फूल सूख कर बिखरे बिखरे, और कली भी मुरझाई है। 

लोग गिराकर आगे बढ़ते, लेकिन हम पीछे छूटे हैं। 
अपना दर्द बताया हमने, तो कहते हैं हम झूठे हैं....

नफ़रत का बारूद भरा है, पर नफरत से क्या मिलता है। 
फूल भी देखो सौंधी सौंधी सी, मिटटी में ही खिलता है। 
"देव " जहर नफरत का भरके, चैन रूह को मिल नहीं सकता,
चैन, सुकून तो इस दुनिया में, प्यार की बातों से मिलता है। 

केवल हाथ मिलाना छोड़ो, दिल में जो गहरी खाई है। 
मुझसे पूछो, मेरे लफ्ज़ से, ऐसा मंजर दुखदाई है। 

ख्वाब उसी की आँख से देखे, बदल गया, वो सब टूटे हैं। 
अपना दर्द बताया हमने, तो कहते हैं हम झूठे हैं। "

बदलाव और अभिमान का चश्मा लगाकर लोग, किसी की अन्तर्निहित भावना को, उसकी पीड़ा को, उसकी अनुभूति को ऐसे अनदेखा कर देते हैं, जैसे उनके अतिरिक्त इस संसार में किसी की भावना का कोई मूल्य न हो, पर किसी की पीड़ा, किसी की भावना को जान बूझकर हतोउत्साहित करना, सही तो नहीं ..............

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०६.०७.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

मेरी ये कविता मेरी वेबसाइट एवं ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित। 

Wednesday, 22 June 2016

♥कांच......♥

♥♥♥♥♥कांच......♥♥♥♥♥♥
सोचकर रात फिर गुजारी है। 
आँख दुखती है, सांस भारी है।

उसने बीवी का भी किया सौदा,
तौबा इतना बड़ा जुआरी है।

चंद सिक्कों में ही ईमान बिका,
कितनी पैसों की बेकरारी है।

कत्ल करता है सारे रिश्तों का,
आदमी आजकल शिकारी है।

टूटकर दिल भी कांच सा बिखरा,
"देव " अपनों ने चोट मारी है। "
........चेतन रामकिशन "देव"…… 

♥♥गीत का सार...♥♥

♥♥♥♥♥गीत का सार...♥♥♥♥♥♥
गीत का सार बन गये हो तुम। 
रूह का प्यार बन गये हो तुम। 

एक पल को भी तुमको भूला नहीं,
ऐसा किरदार बन गये हो तुम। 

जान तक तेरे नाम कर दूंगा,
मेरे हक़दार बन गये हो तुम। 

मैं महकने लगा गुलों की तरह,
फूल का हार बन गये हो तुम। 

मेरे चेहरे पे है दमक कितनी,
मेरा सिंगार बन गये हो तुम। 

राह मुझको सही दिखाने को,
एक मददगार बन गये हो तुम। 

"देव" तुमसे ही शाम, सुबह मेरी,
मेरा संसार बन गये हो तुम। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२३.०६.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Thursday, 9 June 2016

♥♥अंगार...♥♥

♥♥♥♥♥अंगार...♥♥♥♥♥♥
अब अंगार सुलग जाने दो। 
कुछ सपने हैं पग जाने दो। 
बहुत रखा आँखों पर पर्दा,
अब तो मुझको जग जाने दो। 

कुछ अच्छा करने की आशा,
आगे बढ़ने की अभिलाषा,
दीपक सा जलकर तो देखूं,
मन में जागी है जिज्ञासा। 
हाँ पथ तो दुर्गम है लेकिन,
न रखी है कोई हताशा। 
नव अंकुर हूँ धीरे धीरे,
सीख रहा मेहनत की भाषा। 

करो केंद्रित नयन लक्ष्य पर,
ऊर्जा नहीं अलग जाने दो। 
बहुत रखा आँखों पर पर्दा,
अब तो मुझको जग जाने दो..

कुछ इतिहास बनाना होगा,
खुद को सबल बनाना होगा,
ये जीवन का सफर है ऐसा,
कुछ खोना, कुछ पाना होगा। 
"देव " हार से कभी न डरना,
स्वयं को यही सिखाना होगा,
निशां रहे क़दमों के बाकी,
बेशक एक दिन जाना होगा। 

सच एक दिन खुलकर रहता है,
कितना पहरा लग जाने दो। 
बहुत रखा आँखों पर पर्दा,
अब तो मुझको जग जाने दो। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०९.०६.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Friday, 27 May 2016

♥ दबा दर्द...♥

♥♥♥♥♥ दबा दर्द...♥♥♥♥♥
दबा दर्द बाहर आया है। 
वक़्त ने फिर से ठुकराया है। 
हिला हवाओं से दरवाज़ा,
कौन भला मिलने आया है। 

बुरा वक़्त जब होता है तो,
कोई मरहम नहीं लगाता। 
लाख बुलाओ, करो याचना,
पास कोई हरगिज़ नहीं आता। 
दिल के रिश्ते भी टुकड़ों में,
टूट-टूट कर गिर जाते हैं,
सब ही आग लगाने वाले,
कोई लपटें नहीं बुझाता। 

कड़ी धूप है सर पर गम की,
नहीं जरा सा भी छाया है। 
हिला हवाओं से दरवाज़ा,
कौन भला मिलने आया है....

हमने बहुत किया अपनापन,
पर हमसे नफरत सी क्यों है। 
नहीं पता के इस दुनिया की,
इक तरफा फितरत सी क्यों है। 
"देव " ज़माने भर में हम ही,
बने हैं क्या आंसू पीने को,
नहीं पता के मेरी आखिर,
बिगड़ी ये किस्मत सी क्यों है। 

सबने छिड़का नमक ज़ख़्म पे,
किसने आखिर सहलाया है। 
हिला हवाओं से दरवाज़ा,
कौन भला मिलने आया है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२७.०५.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Wednesday, 11 May 2016

♥♥ पत्थर...♥♥

♥♥♥♥♥ पत्थर...♥♥♥♥♥
पत्थर को पत्थर रहने दो। 
कायम मेरा घर रहने दो। 

अब हंसने से दिल दुखता है,
आँखे मेरी तर रहने दो। 

झूठ बोलकर झूठी इज़्ज़त,
सच का ऊँचा सर रहने दो। 

जान तो एक दिन सबकी जानी,
क्यों मरने का डर रहने दो। 

बेटी तो तितली जैसी हैं,
जिन्दा इनके पर रहने दो। 

बिजली चमकी डर लगता है,
गोद में मेरा सर रहने दो। 

"देव " वसीयत लिख लो मेरी,
माँ की मूरत पर रहने दो। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-११.०५.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 









Saturday, 6 February 2016

तेरी तस्वीर.

♥♥♥♥♥ तेरी तस्वीर...♥♥♥♥♥
तेरी तस्वीर वस गयी मन में। 
कोई खुश्बु सी घुल गयी तन में। 
मोर भी झूमे, गा रही कोयल,
जैसे रौनक सी आ गयी वन में। 

तेरी बोली मिठास वाली है। 
तुझसे होली मेरी दिवाली है। 
नूर मिलता है तेरे होने से,
बिन तेरे मेरी राह खाली है। 

तू ही मेरी दुआ, मेरी बरकत,
मेरी ख्वाहिश नहीं किसी धन में। 
मोर भी झूमे, गा रही कोयल,
जैसे रौनक सी आ गयी वन में...

दूर होकर भी दूर न करना। 
मेरे ख्वाबों को चूर न करना। 
बस यूँ ही रहना फूल सी बनकर,
एक पल भी गुरुर न करना। 

तुझसे रिश्ता है "देव" जन्मों का,
ख़त्म न करना इसको अनबन में। 
मोर भी झूमे, गा रही कोयल,
जैसे रौनक सी आ गयी वन में। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०६.०२.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

Thursday, 21 January 2016

♥ निष्कासन का दंड...♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ निष्कासन का दंड...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
विवश हुआ स्वयं की हत्या को, देश का जो की कर्णधार था। 
दोष रख दिया उसके सर जो, किंचित भी न दागदार था। 
जिसने अपने अधिकारों को, मित्रों के संग पाना चाहा,
दंड दिया था निष्कासन का, जबकि वो न गुनहगार था। 

हाँ सच है कि स्वयं की हत्या, कायरता कहलाती होगी। 
जिसको अनुचित दंड मिला पर, उसे नींद कब आती होगी। 
क्या उत्पीड़न इसी वजह से, दलित वर्ग में जो जन्मा था,
भेदभाव शिक्षा मंदिर में, आग धधक सी जाती होगी। 

तार हुआ उस माँ का आँचल, तीर के जैसे आरपार था। 
दंड दिया था निष्कासन का, जबकि वो न गुनहगार था....

कभी नहीं हो पुनरावृत्ति, पराकाष्ठा है ये दुःख की। 
नहीं विवश हो बिना जुर्म के, बुझे न कोई आभा मुख की। 
"देव " नहीं वो शिक्षा मंदिर, जहाँ पे ऐसा बंटवारा हो,
यदि रहा ऐसा तो रण हो, नहीं कल्पना होगी सुख की। 

लटके वो कंधे फांसी पे, जिनपे दुःख का बड़ा भार था। 
दंड दिया था निष्कासन का, जबकि वो न गुनहगार था। "


........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-२१.०१.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 

Saturday, 16 January 2016

♥♥बलिहारी...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥बलिहारी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुझे नहीं अनदेखा करता, बेशक की जिम्मेदारी है। 
हाँ सच है कर्तव्य जरुरी, पर तू प्राणों से प्यारी है। 
बोध तुम्हारी बेचैनी का, नहीं बचा मेरी नज़रों से,
सच पूछों तो तुम पर मेरी, रूह तलक भी बलिहारी है। 

पर जीवन के कर्मठ पथ पर, खुद में जीना श्रेष्ठ नहीं है। 
इतना ऊँचा बन नहीं सकता, जो कोई मुझपे ज्येष्ठ नहीं है। 

सबके हित में निहित हूँ लेकिन, तू भी मुझको मनोहारी है। 
सच पूछों तो तुम पर मेरी, रूह तलक भी बलिहारी है.... 


नहीं उपेक्षित किया है तुमको, इच्छा रखी सदा मिलन की। 
कभी पढ़ो अपनी नज़रों से, प्रेम सुधा मेरे जीवन की। 
"देव" अपेक्षा यही रखी है, तुम भी समझो ध्येय को मेरे,
बीज कुचलने से न पनपे, बेल कोई भी अपनेपन की। 

नतमस्तक हूँ सम्मुख तेरे, तू स्वागत की अधिकारी है। 
सच पूछों तो तुम पर मेरी, रूह तलक भी बलिहारी है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१६.०१.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

Sunday, 10 January 2016

♥अक्सर दूर...♥

♥♥♥♥♥♥♥अक्सर दूर...♥♥♥♥♥♥♥
अक्सर दूर बिछड़ने का डर । 
तन्हाई से लड़ने का डर । 
बिना तुम्हारे सूने घर को,
हर दिन यहाँ उजड़ने का डर। 

दूर रूह से हो नहीं सकते, हाँ ये सच है दूरी तन की। 
लेकिन तुमको बिन देखे ही, राह कठिन लगती जीवन की। 
लेकिन फिर भी यही निवेदन, तुम मेरी शक्ति बन जाना,
तुम बिन कोई पढ़ नहीं सकता, उलझन मेरे अंतर्मन की। 

तुम बिन चला नहीं जाता है,
पांव में छाले पड़ने का डर। 
बिना तुम्हारे सूने घर को,
हर दिन यहाँ उजड़ने का डर..... 

हाँ मालूम है नहीं निभा है, मुझसे साथ तुम्हारे जैसा। 
मुझे पता है इस दुनिया में, कोई नहीं होता तुम जैसा। 
हाँ पर दिल को कदर तुम्हारी, "देव" तुम्हारा अभिवादन है,
मैं तो चाहूँ प्यार तुम्हारा, न धन दौलत न ही पैसा। 

तुम बिन हूँ बेजान सरीखा,
इस मिटटी में गड़ने का डर। 
बिना तुम्हारे सूने घर को,
हर दिन यहाँ उजड़ने का डर। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-१०.०१.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। " 


Wednesday, 6 January 2016

♥♥जिद...♥♥

♥♥♥♥जिद...♥♥♥♥
अंगारों पे चलने की जिद। 
ये हालात बदलने की जिद। 
काले गहरे अँधेरे में,
दीपक बनके जलने की जिद। 

कुछ बेहतर करने की आशा,
जो जीवन में रख लेते हैं। 
वो पीड़ा का विष भी देखो,
जग में हंसकर चख लेते हैं। 
जो आँखों में ख्वाब सजाकर,
उनको दिन में पूरा करते। 
वही लोग इतिहास की देखो,
इस दुनिया में रचना करते। 

पतझड़ में भी खिलने की जिद। 
दिल से दिल के मिलने की जिद। 
काले गहरे अँधेरे में,
दीपक बनके जलने की जिद...

ऊष्मा को प्रवाहित करना। 
ऊर्जा नयी समाहित करना। 
नहीं सिमटकर होना स्वयंभू,
न केवल अपना हित करना। 

पथ में दूर निकलने की जिद। 
समय के संग में ढलने की जिद। 
काले गहरे अँधेरे में,
दीपक बनके जलने की जिद। "

........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०६.०१.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "  

Tuesday, 5 January 2016

♥♥♥तुम्हारी पहचान...♥♥♥

♥♥♥तुम्हारी पहचान...♥♥♥
हर मुश्किल आसान हो गयी। 
तुमसे जो पहचान हो गयी। 
उपवन में भी फूल खिले हैं,
अधरों पर मुस्कान हो गयी। 

धूप गुनगुनी अच्छी लगती,
जब हम दोनों साथ चले हैं। 
छंटा रात का भी अँधेरा,
हर रस्ते पे दीप जले हैं। 
साथ तुम्हारा पाकर मेरे,
व्याकुल मन को चैन आ गया,
सूनी सूनी अँखियों में भी,
कितने प्यारे ख्वाब खिले हैं। 

तू ही मन में स्थापित है,
तू ही तन की जान हो गयी। 
उपवन में भी फूल खिले हैं,
अधरों पर मुस्कान हो गयी....

कड़ी धूप में शीतल छाया,
तुमने आँगन को महकाया। 
चले थाम कर मेरी ऊँगली,
सही गलत का भेद बताया। 
"देव " हमारे अंतर्मन में,
छवि तुम्हारी वसी हुयी है,
सारी दुनिया में रौनक है,

जब से तू आँखों को भाया। 


मैं शामिल तेरी तेरी इज़्ज़त में,
तू मेरा सम्मान हो गयी। 
उपवन में भी फूल खिले हैं,
अधरों पर मुस्कान हो गयी। "


........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०५.०१.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "





Monday, 4 January 2016

♥ लफ्ज़ ♥

♥♥♥♥♥♥♥ लफ्ज़ ♥♥♥♥♥♥♥♥
लिखे थे लफ्ज़ दिल से पर, अहम उनका नहीं पिघला। 
वो शायद चाँद और मैं एक, पत्थर भी नहीं निकला।

महीनों, साल, दिन में ही, वो भूला नाम को मेरा,
मेरा दिल कौनसी मिट्टी का, जो ये अब भी नहीं बदला।

वो दुनिया के लिये तस्वीर पर तस्वीर रखते हैं,
क्यों मेरे वास्ते खिड़की का भी, पर्दा नहीं बदला।

चुभाये ख़ार मेरे दिल को पर, दे दी उन्हें माफ़ी,
रंगे न हाथ उनके सोचकर, खूं भी नहीं निकला। "
........चेतन रामकिशन "देव"…… 
दिनांक-०५.०१.२०१६ 
" सर्वाधिकार C/R सुरक्षित। "