Friday, 26 August 2011

सोच का परिवर्तन

"♥♥♥♥♥♥सोच का परिवर्तन ♥♥♥♥♥♥
मन में अपने प्रेम रखो तुम, होठों पे मुस्कान!
आगे बढ़ने से पहले पर, त्याग चलो अभिमान!
साहस को जीवन में भरके, सच्चाई के साथ,
मजहब से ऊपर उठकर के, बनो जरा इंसान!

नैतिकता और मर्यादा का कभी न करना ह्रास!
ना कमजोरी लाना मन में, ना टूटे विश्वास!

सबको अपने गले लगाओ, सबको दो सम्मान!
मन में अपने प्रेम रखो तुम, होठों पे मुस्कान...............

जीवन में मुश्किल से डरकर, ना होना भयभीत!
कदम बढ़ाना सही दिशा में, मिलेगी तुमको जीत!
किसी के घावों पर मरहम का तुम कर देना लेप,
पत्थर में भी जग जाएगी, मानव जैसे प्रीत!

कभी उड़ाना ना निर्धन का, तुम मित्रों उपहास!
नहीं कोई ऊँचा नीचा है, सब अपने हैं खास!

मानवता का कभी ना करना तुम कोई अपमान!
मन में अपने प्रेम रखो तुम, होठों पे मुस्कान............

मृत्य का भय करना छोड़ो, ना मानो तुम हार!
खुद तुममें ईश्वर रहता है, तुम हो रचनाधार!
"देव" जगाओ अपने मन में तुम चिंतन की सोच,
ऐसा एक इतिहास बनाओ, याद करे संसार!

सच्चाई के दम के आगे तो झुकता आकाश!
आओ करें हम इस जीवन में एक ऐसा प्रकाश!

इन शब्दों से आप सभी का करता हूँ आह्वान!
मन में अपने प्रेम रखो तुम, होठों पे मुस्कान!"


"जीवन, महज जीने का नाम नहीं है! बल्कि कुछ कर दिखाने का, इतिहास बनाने का नाम है! एक दूजे से प्रेम करने का नाम है! तो आइये सोच का परिवर्तन करें!-चेतन रामकिशन "देव"




Thursday, 25 August 2011

♥बिकता बदन...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥बिकता बदन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"बदन बिक रहा ऐसे तेरा जैसे हो सामान!
 उस कोठे की दीवारों में, हुयी है तू गुमनाम!
 सब चाहते हैं तेरे तन को, न वो मन की पीर,
तुझको कहाँ समझते हैं वो खुद जैसा इंसान!

झूठ मूठ का तेरा सजना, धूमिल है श्रृंगार!
इन लोगों ने बना दिया है, नारी को व्यापार!

खून के आंसू रोती है तू, सपने भी बेजान!
बदन बिक रहा ऐसे तेरा जैसे हो सामान......

इस पिंजरे में रहती है तू, बनकर के लाचार!
यदि कभी कुछ कहना चाहे, तो होते प्रहार!
तुझे दे दिया जाता पल में बाजारू का नाम,
तुझे परोसा जाता ऐसे जैसे हो उपहार!

तेरी दशा है कितनी पीड़ित, क्या होगा अंदाज!
तेरे करुण रुदन से बजता, तेरे मन का साज!

बाहर से तू रोशन रहती, भीतर से वीरान!
बदन बिक रहा ऐसे तेरा जैसे हो सामान......

कौन सुनेगा इनकी पीड़ा, बने कौन हमदर्द!
नहीं मदद करता है कोई, सब देते हैं दर्द!
"देव" न जाने कब तक होगा नारी का व्यापार,
तू बिकती है हर मौसम में, गर्मी हो या सर्द!

तेरी वेदना इतनी व्यापक, लघु मेरे उदगार!
"देव" तेरे तो दर्द का केवल, छोटा हिस्सेदार!

इस पिंजरे में ही कट जाती, तेरी उम्र तमाम!
बदन बिक रहा ऐसे तेरा जैसे हो सामान!"

" सच में जाने कितनी अनगिनत ये महिलायें/ लड़कियां, बिक रही हैं! बिकना इनका लक्ष्य नहीं था, किन्तु इसी समाज के लोगों ने उसे इस दशा पर पहुँचाया है! क्या कभी इनका उत्थान हो सकेगा! या बस ये सिसक सिसक कर दम तोड़ती रहेंगी! =चेतन रामकिशन "देव"

Tuesday, 23 August 2011

♥कलम कैसे उठाये वो ...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥कलम कैसे उठाये वो ...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"कलम कैसे उठाये वो, गरीबी का जो मारा है!
 वो अपने घर के चूल्हे का, सुलगता सा अंगारा है!
वो बेबस है, बड़ा मजबूर, लेकिन कह नहीं सकता,
वो कैसे चाँद को छूले , जो खुद टूटा सितारा है!

बिना उसकी कमाई से, तो घर में भूख रहती है!
नहीं मिलती दवा माँ को, बहन खामोश रहती है!

वो कैसे काम को त्यागे, वही घर का सहारा है!
कलम कैसे उठाये वो, गरीबी का जो मारा है.....

कभी धोता है वो बर्तन, कभी रिक्शा चलाता है!
कभी अख़बार भी बेचे, कभी ठेला लगाता है!
कभी उसकी नजर पड़ती है, जब स्कूली बच्चों पर,
वो जाकर एक कोने में, बहुत आंसू बहाता है!

वो अपने दिल की आवाजों को लेकिन सुन नहीं सकता!
गरीबी में वो महंगे स्वप्न अपने बुन नहीं सकता!

बड़ी मुश्किल से कर पाता, वो तो सबका गुजारा है!
कलम कैसे उठाये वो, गरीबी का जो मारा है.....

वतन की कोई भी सरकार उनका दर्द ना जाने!
मिटे इनकी गरीबी जो, नहीं वो बात है ठाने!
बहुत देते हैं मंचो से तो भाषण देश के नेता,
हकीक़त में मगर कोई, गरीबों की नहीं माने!

सिसकता है, बिलखता है, कोई उसकी नहीं सुनता!
कोई उसके पथों के शूल भी आकर नहीं चुनता!

हर एक सरकार उद्घोषित करे बस झूठा नारा है!
कलम कैसे उठाये वो, गरीबी का जो मारा है!"

"बाल श्रम, सरकार केवल इसे रोकने के लिए एक कानून बना चुकी है, कानून से आप एक बालक को काम करने से वंचित कर देते हो, किन्तु क्या कभी उसके और उसके परिवार के सदस्यों की भूख मिटाने के लिए भी सरकार कुछ करती हैं, कुछ भी नहीं-चेतन रामकिशन "देव"

Monday, 22 August 2011

♥है तुम्हारी कमी...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥है तुम्हारी कमी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"धड़कने मंद हैं, आँखों में है नमी!
बुझ रहे हैं दिए , मिट रही रौशनी!
लौटकर फिर से आकाश आओ तुम,
जिंदगी कह रही, है तुम्हारी कमी!

घर में तुलसी का पौधा भी खामोश है!
थक गए हैं सुमन, अब नहीं जोश है!

अपने खेतों की भूमि भी बंजर भी बनी!
धड़कने मंद हैं, आँखों में है नमी.......


दूधवाला भी अब बोलता ही नहीं!
घर का माली भी, मुंह खोलता ही नहीं!
मौन हैं सब, तेरे बिन शरारत नहीं,
कांच खिड़की का, कोई तोड़ता नहीं!

मुन्ना भी भूख से, अब तो रोता नहीं!
तेरी तस्वीर के बिन, वो सोता नहीं!

तेरी तस्वीर उसकी जरुरत बनी!
धड़कने मंद हैं, आँखों में है नमी.......


अब खुदा से शिकायत भी कैसे करें!
अब किसी से मोहब्बत भी कैसे करें!
तेरी यादों ने ही साथ, हर पल दिया,
तेरी यादों से नफरत भी कैसे करें!

काश तू इतनी अच्छी न होती यदि!
न बुलाते खुदा, भूलकर भी कभी!

अच्छे लोगों की उसके यहाँ भी कमी!
धड़कने मंद हैं, आँखों में है नमी!"

"आज पीड़ा की इस दशा पर लिखना का मन हुआ! कोई घर की महिला जब असमय चली जाती है तो, बहुत ही ख़ामोशी पसर जाती है! बस यही चित्र खींचने की कोशिश की है!-चेतन रामकिशन "देव"

Sunday, 21 August 2011

*आज के राधा कृष्ण**


************आज के राधा कृष्ण****************

"कृष्ण बनकर गोपियों की राह बस तकने लगे हैं!
दिन में फिरते मारे मारे, रात को जगने लगे हैं!
ना ही करते गाय सेवा, याद ना गीता कथन,
आजकल के नौजवां बस प्यार तक थमने लगे हैं!

न "यशोदा" याद उनको और "नंदन" नाम भी!
दे रहे माँ बाप को हैं, पीड़ा भी, इल्जाम भी!

भूलकर हर एक सखा को, राधा बस जपने लगे हैं!
कृष्ण बनकर गोपियों की राह बस तकने लगे हैं......

न "सुदामा" के लिए अब, द्वार उनके खुल रहे हैं!
न विषैली सोच के ही, दाग धब्बे धुल रहे हैं!
अपनापन भी मिट रहा है, और मानवता नहीं,
मन में ईर्ष्या, द्वेष के ही, रंग केवल घुल रहे हैं!

आज कल के कृष्ण केवल, नाम के ही रह गए हैं!
न रहा एहसास बस, पाषाण के ही रह गए हैं!

आज कल के कृष्ण तो, खुद झूठ पे चलने लगे हैं!
कृष्ण बनकर गोपियों की राह बस तकने लगे हैं.....

आजकल की राधिका भी, छोटे कपड़े तान कर!
सड़को पे चलते हुए भी, फ़ोन रखतीं कान पर!
इन ढलकते आंचलो को, कह रहीं स्वतंत्रता,
अपने आदर्शों में केवल, "मल्लिका" को मानकर!

आज कल की राधिका भी, पथ से हटती जा रही है!
हो रहा नैतिक पतन, मर्यादा घटती जा रही है!

प्रेम के सन्देश भी अब वासना बनने लगे हैं!
कृष्ण बनकर गोपियों की राह बस तकने लगे हैं!"

"मित्रों, आजकल यही हाल है, लड़के कृष्ण से बस प्रेम सीख रहे हैं और लड़कियां राधा से! न उन्हें देवकी याद है, न वासुदेव! न शत्रु का संहार! न ही प्रजा का कर्तव्य, न ही देश की भक्ति! -चेतन रामकिशन "देव"

Saturday, 20 August 2011

♥ माँ तू कहाँ है... ♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥ माँ तू कहाँ है... ♥♥♥♥♥♥♥♥
"माँ तू कहाँ है?
माँ तू कहाँ है?

आज माँ तेरी कमी का हो रहा एहसास है!
यूँ तो धन भी है बहुत और घर भी मेरे पास है!
आज पर जाना ये मैंने, माँ तेरे बिन कुछ नहीं,
उससे ज्यादा क्या अमीरी, माँ जो जिसके पास है!

उन घरों में रहती रौनक,
तेरे पग जहाँ हैं!
माँ तू कहाँ है.....माँ तू कहाँ है.....

तेरा दिल मैंने दुखाया, आज मुझको दुःख बड़ा!
तेरी आँखों को रुलाया, आज मुझको दुःख बड़ा!
माँ तेरा अपमान करके, मैं भी अब बेनूर हूँ,
माँ मुझे अपना ले फिर से, तेरा दर पर हूँ खड़ा!

तेरे कदमों में है जन्नत,
मेरे तो जहां है!
माँ तू कहाँ है.....माँ तू कहाँ है.....

मैं यहाँ हूँ लाल मेरे, आज मेरे पास तू!
न बहा आँखों से आंसू, न हो अब उदास तू!
माँ के दिल जैसा कहीं होता नहीं है दूसरा,
तोड़ना न फिर दुबारा, एक माँ की आस तू!

माँ का मन होता वहीं हैं,
लाल उसका जहाँ है!

माँ तू कहाँ है.....माँ तू कहाँ है....."


"माँ- बिना उसके कुछ भी नहीं, लाल से ये न समझना की लाली कुछ नहीं, माँ की आँखों में कोई भेद नहीं, समान ममता! आओ माँ का सम्मान करें- चेतन रामकिशन "देव"

Thursday, 18 August 2011

♥♥हवस( पीड़ा की इन्तहा)♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥हवस( पीड़ा की इन्तहा)♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

"डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर!
 हवस के भेड़ियों ने उसकी हालत की बड़ी बदतर!
 फटे कपड़े, फटी चुनरी, हैं फूटे आंख से आंसू,
 नहीं सुनता मगर कोई, भटक के थक गयी दर दर!

हवस के भेड़िये करके भी ऐसा मुस्कुराते हैं!
मगर लड़की को वो मंजर हमेशा याद आते हैं!

हवस के भेड़ियों को अब नहीं कानून का भी डर!
डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर.....

हवस के भेड़िये तो ये कहानी रोज लिखते हैं!
यहाँ कानून के रक्षक भी उनके हाथ बिकते हैं!
बड़ी मुश्किल से होती है जमा उस लड़की की अर्जी,
सिफारिश करके नेताओं की वो आजाद फिरते हैं!

हवस के भेड़िये कानून को ठेंगा दिखाते हैं!
मगर लड़की को वो मंजर, हमेशा याद आते हैं!

नहीं भगवान भी बिजली गिराता भेड़ियों के घर!
डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर.....

हवस के भेड़ियों मानव का चोला ओढ़कर देखो!
हर लड़की भी मानव है, जरा तुम सोचकर देखो!
किसी पे जुल्म करने का तुम्हे तब होगा अंदाजा,
किसी हवसी को अपनी माँ बहन को सोंपकर देखो!

ऐसे पल किसी लड़की को जब भी याद आते हैं!
बदन बेजान होकर के, इरादे टूट जाते हैं!

निकलकर आंख से आंसू है करते गाल उसके तर!
डरी सहमी सी एक लड़की, खड़ी थाने के द्वारे पर!"


"बलात्कार/ छेड़ छाड़ की घटना, एक लड़की के जीवन को इतना दुखी करती हैं की वो,
कितने भी प्रयास करके, उस मंजर को भुला नहीं पाती है! हवस के भेड़ियों को भी अधिकांशत कानून का रक्षक भी सराहता है!-चेतन रामकिशन "देव"

Monday, 15 August 2011

♥♥प्रेमिका( पथ प्रदर्शक)♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेमिका( पथ प्रदर्शक)♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

'मैंने प्यार किया है जिससे, वो अनमोल परी है!
मेरी खुशियों की है जननी, प्रेम भरी गगरी है!

वो मेरे सपनो में वसती , मन में है इठलाती!
कौन गलत है, कौन सही है मुझको है समझाती!
दिवा स्वप्न बनकर आँखों में मकसद पूरा करती!
मेहनत से मिलती है मंजिल मुझको है बतलाती!

मिश्री सी मीठी है वो, चंदा जैसी निखरी है!
मेरी खुशियों की है जननी, प्रेम भरी गगरी है. ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

अभिमान का शब्द नहीं है, कोमल हृदय रखती!
तेज गमों की धूप में वो, बनकर साया है ढकती!
कैसे होता है आदर, सम्मान मुझे दिखलाती!
मेरे आने की आहट में भरी दोपहरी जलती!

चन्दन सी शीतल है वो, चांदी जैसी उजरी है!
मेरी खुशियों की है जननी, प्रेम भरी गगरी है. ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

अंधकार का नाम नहीं है, हर पल है वो ज्योति!
मेरे मन की सोच कलुषित, गंगाजल से धोती!
मेरे जीवन की पुष्पा है, "देव" की रात सुनहरी,
जुल्फें उसकी घनी मुलायम, आंखें जैसी मोती!

शबनम की बूंदों के जैसे, फूल फूल बिखरी है!
मेरी खुशियों की है जननी, प्रेम भरी गगरी है. ♥ ♥ ♥ ♥ ♥

"शुद्ध प्रेम मानव की सोच को उन्नत करते हुए, जीवन को आदर्शवादी अस्तित्व प्रदान करता है! तो,आइये  तो प्रेम करें और इन पलों की अनुभूति करें!-चेतन रामकिशन(देव)"

Sunday, 14 August 2011

***हम खुद अपराधी हैं....**

**************हम खुद अपराधी हैं....**************
"  परिवर्तन की बात करें हम, नहीं मगर संकल्प!
   अपनी अपनी करना चाहें, यहाँ तो कायाकल्प!
   जात धर्म के नाम पे देते, नेताओं का साथ,
   बड़े गर्व से कहते हैं फिर, नहीं था कोई विकल्प!

  पहले खुद का करो आंकलन, हम भी हैं अपराधी!
  खुद देते हैं रिश्वत उनको, हम भी हैं सहभागी!

  पाषाणों के नाम पे लड़ते, सोच हमारी अल्प!
  परिवर्तन की बात करें हम, नहीं मगर संकल्प.....

  आजादी के दिन भी घर में, करते हैं मधपान!
  अपने बच्चो को सिखलाते, केवल झूठी शान!
  महापुरुषों के चित्र के सम्मुख नहीं दिए में तेल,
  तेल में बेशक बने पकोड़ी या कोई पकवान!

  अपने मन की सोच है दूषित, करते पर प्रहार!
  अपने मतलब में देते खुद, अफसर को उपहार!

  परिवर्तन की बात व्यर्थ है, यदि नहीं संकल्प!
 अपनी अपनी करना चाहें, यहाँ तो कायाकल्प!"


"सब कह रहे हैं कि, आजादी नहीं है, सही बात है पर क्या कभी अपना आंकलन किया? परिवर्तन की बात कथनी से नहीं करनी से होती है! यदि आजादी का स्वप्न देखना है तो "परिवर्तन का संकल्प लीजिये- चेतन रामकिशन "देव"

 
  

Saturday, 13 August 2011

♥---आने वाला कुछ घंटो में♥

♥♥♥♥♥♥---आने वाला कुछ घंटो में♥♥♥♥♥♥♥♥
"आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व!
भारत वासी होने पर हम, करेंगे खासा गर्व!
न जननी के चीरहरण से, फर्क हमे पड़ता है,
सत्ताधारी अम्बर बेचें, या बेचें भूगर्भ!

अपने मतलब सिद्ध करें हम, न माटी का मोल!
हम मानव की रूह नहीं हैं, केवल खाली खोल!

अपने मन में भरें जरा, हम जननी से अपनत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व.......

घरों से अपने हटा रहें हैं, महापुरुषों के चित्र!
देश प्रेम की घटी भावना, आलम बड़ा विचित्र!
नहीं बजा करते हैं अब तो, देश प्रेम के गीत,
गली गली हर चौराहे पर, चलें दुरित चलचित्र!

भुला चले मनमथ गुप्ता को, नहीं रहे आजाद!
विस्मृत हुयी शहादत उनकी, देशप्रेम बरबाद!

देश हितों की गर्मी आए, भरो लहू में तत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व.......

आजादी के दिन को हमने, बना दिया एक रस्म!
देशप्रेम तो हमने जाने, किया कभी का भस्म!
देश में शत्रु पनप रहे पर, "देव" है चिंता हीन,
इससे तो अच्छा हम पाते, पाषाणों का जन्म!

खद्दरधारी पहन के खद्दर, करें देश का अंत!
देख तमाशा खुश होते हम, बनकर बहरे संत!

सबक नहीं ले सकते जिनसे, बदलो वो क्रतत्व!
आने वाला कुछ घंटो में, आजादी का पर्व"


"अगली सुबह आजादी की भोर की स्मृति लेकर आएगी! किन्तु सच्चे अर्थों में देश की व्यवस्था ने देश की बहुसंख्यक आबादी को गुलाम बना दिया है! देश को फिर से महासंग्राम की जरुरत है! ये महासंग्राम हर हाल में लड़ना ही है तो फिर देर क्यूँ? - चेतन रामकिशन "देव"

Friday, 12 August 2011

**राखी-तब बंधवाना डोर----**

*************राखी-तब बंधवाना डोर----**************
        भाई बहिन तक सिमट न पाए, रक्षा का त्यौहार!
        प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार!
        अपनी बहन को बहन कहो तुम, और पे अत्याचार,
        ऐसे में ये बंधन झूठा, जब हों दुरित विचार!

        खून के रिश्तों से ही बनते, यदि बहिन या भाई!
        व्यर्थ है देनी मानवता की, मिथ्या भरी दुहाई!

        डोर तभी बंधवाना तुम जब, मन का करो निखार!
        प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार......

        सगी बहिन को देते हो तुम, रुपयों का उपहार!
        वहीँ किसी अबला पे करते, हिंसा की बोछार!
        कहाँ चला जाता है जब वो, नार का रक्षा बंधन,
        क्यूँ उसको पाषाण समझ कर, करते हो प्रहार!

       रक्षा बंधन हमे सिखाता, नारी का सम्मान!
       रक्षा बंधन हमे सिखाता, समरसता का ज्ञान!

       डोर तभी बंधवाना तुम जब, बदल सको व्यवहार!
       प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार......
     
       रक्षा बंधन पर बांधो तुम, राष्ट्र एकता डोर!
       मानव को मानव से जोड़ो, मिल जायें दो छोर!
       शत्रु का अब अंत करो तुम, "देव" जुटाओ जोश,
       देश बचाना चाहते हो तो, भरो भुजा में जोर!

       रक्षा बंधन पर देना है, राष्ट्र को जीवनदान!
       एक सूत्र में बंध जाओ तुम, राम हो या रहमान!

       डोर तभी बंधवाना तुम जब, सोच में करो सुधार!
       प्रेम का धागा सबको बांधो, पुरुष हो या हो नार!"


"आज रक्षा बंधन के पर्व पर, हमे राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बंधना है! मन से गंदे विचारों से मुक्ति देनी है! एक दूसरे को मानव से मानव को जोड़ने का संकल्प लेना है, तभी सही मायने में ये एक सार्थक रक्षा बंधन होगा, अन्यथा सिर्फ और सिर्फ एक रस्म!- चेतन रामकिशन "देव"
       




Monday, 8 August 2011

♥♥छुआछूत(दुरित सोच) ♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥छुआछूत(दुरित सोच) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"आज भी देखो पनप रही है, वतन में छुआछूत!
 ऐसी सोच का धारक कहता, दलित को काला भूत!
 इनको मंदिर जाने पर भी कर देते पाबन्दी,
 खुद को किन्तु कहते हैं वो ईश्वर का एक दूत!

पशु यदि पीता है पानी, नहीं कहीं कोई बात!
दलित यदि पीना चाहे तो, मिलते डंडे लात!

धन दौलत की ताक़त से वो, करते नष्ट सबूत!
आज भी देखो पनप रही है, वतन में छुआछूत...........

कहने को आज़ादी पाए, हुए अनेकों साल!
नहीं कटा है छुआछूत का, अब तक किन्तु जाल!
नहीं पटी है खाई अभी भी, सुलग रही चिंगारी,
नहीं एकता आ पायेगी, रहा यदि ये हाल!

ऐसी घटनाओं से अब भी, रंगता है अख़बार!
मानव होकर भी मानव से, नहीं पनपता प्यार!

भेद भाव की उड़ा रहे हैं, अब भी दुरित भभूत!
आज भी देखो पनप रही है, वतन में छुआछूत...........

एक ही जैसे मानव हैं हम, एक लहू का रंग!
एक ही जैसी आकृति है, एक ही जैसा अंग!
"देव" मिटा दो अब ये दूरी, सबको गले लगाओ,
मन में रहे विकार न कोई, प्रेम की बजे तरंग!

एक मंच पर आ जाओ तो तुम, नहीं रहेगा खेद!
मानव को मानव से जोड़ो, नहीं रखो तुम भेद!

खद्दरधारी भेद न पाए, व्यूह करो मजबूत!
एक दूजे के हो जायें हम, मिट जाये ये छूत!"


हम जात धर्म, वर्ग भेद से पहले मानव हैं! हमे अपने मन से इस दुरित सोच को मिटाना होगा, तभी राष्ट्रीय एकता बन सकती है! यदि हम लोग जात धर्म के इसी जंजाल में फंसे रहे तो देश, खंडित खंडित होकर बिखर जायेगा और इस देश का अस्तित्व समाप्त हो जायेगा!- चेतन रामकिशन "देव"







♥नारी(शक्ति पुंज) ♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥नारी(शक्ति पुंज) ♥♥♥♥♥♥♥
"शक्ति का एक पुंज नारी, दीप का प्रकाश है वो!
आस्था की भावना है, फूल का अधिवास है वो!
ना चरण की धूल है वो, रेत की भूमि नहीं,
साहसी है, निष्कपट है, सत्य का आभास है वो!

नारी बनके संगिनी, प्रेम का उपहार दे!
खुद करे पीड़ा सहन, हर्ष का व्यवहार दे!

वो रचित करती सफलता, जीत का इतिहास है वो!
शक्ति का एक पुंज नारी, दीप का प्रकाश है वो....

नारी का मन गंगाजल सा, होता नहीं विकार!
माँ बनकर के नारी देती, मधु सा मीठा प्यार!
नारी हमको देती साहस, हमको दिशा दिखाए,
नारी करती  है जीवन में, उर्जा का संचार!

नारी पुत्री रूप रचकर, हर्ष का श्रंगार दे!
वो बहन के रूप आकर, मित्रता का सार दे!

जाग्रत करती हैं चिंतन, हार का अवकाश है वो!
शक्ति का एक पुंज नारी, दीप का प्रकाश है वो....

नारी न पूजन की भूखी, वो रखती सम्मान की आशा!
नारी न वंदन की भूखी, उसको दे दो मीठी भाषा!
"देव" नहीं वो धन की भूखी, न ही उसकी सोच कलुषित,
नारी केवल ये चाहती है, भेद रहित बस हो परिभाषा!

नारी है निर्माता किन्तु, फिर भी वो आभार दे!
वो करे सम्मान सबको, वो सदा सत्कार दे!




♥प्रेम( एक निरोगी भावना)♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम( एक निरोगी भावना)♥♥♥♥♥♥♥
"प्रेम
का न प्रमाण है कोई, न कोई प्रयोग!
प्रेम,
चिकित्सा का रूपक है, है न कोई रोग!
प्रेम,
न कोई दुरित भावना, न लालच की रीत,
प्रेम,
वासना से उठकर है, न है कोई भोग!

प्रेम तिमिर को दूर भगाता, ऐसा है प्रदीप!
प्रेम भावना होती है तो घर घर जलते दीप!

प्रेम नहीं तो मानव जीवन, केवल रहे अधूरा!
प्रेम सजाता है रंगों से, नाचे मगन मयूरा!

प्रेम,
भावना सदभावों की, न हिंसा का योग!
प्रेम
का न प्रमाण है कोई, न कोई प्रयोग!"


"तो आइये प्रेम के रंगों से जीवन को सजायें, क्यूंकि अकेले प्रेम से ही जात, धर्म, हिंसा जैसे अनेको दुरित विचार समाप्त हो जाते हैं! प्रेम के साथ रहें-चेतन रामकिशन "देव"



Saturday, 6 August 2011

♥♥♥♥♥♥मित्रता ♥♥♥♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥मित्रता ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
"मित्रता निष्कपट, छल रहित काम है!
मित्रता एक दूजे का सम्मान है!
मित्रता एक सरस, एक सुधि भावना,
मित्रता प्रेम का दूसरा नाम है!

मित्रता के बिना व्यर्थ है जिंदगी!
मित्रता वंदना, मित्रता बन्दिगी!

मित्रता जीत का एक आह्वान है!
मित्रता प्रेम का दूसरा नाम है......

मित्रता फूल है, मित्रता है कली!
काली रातों में बनके धवल है खिली!
हैं मेरे सतकर्म, या है माँ की दुआ,
मित्रता आप सबकी हमे है मिली!

मित्रता के बिना सूनी है हर ख़ुशी!
मित्रता के बिना जिंदगी है बुझी!

मित्रता क्रोध हिंसा का अवसान है!
मित्रता प्रेम का दूसरा नाम है......

मित्रता धनरहित एक सम्बन्ध है!
मित्रता अपनेपन की मधुर गंध है!
मित्रता जात धर्मो की जननी नहीं,
ये मनुज से मनुज का अनुबंध है!

मित्रता के बिना धुंधली है रौशनी!
मित्रता के बिना बेअसर चांदनी!

मित्रता है सुदामा,तो घनश्याम है!
मित्रता प्रेम का दूसरा नाम है"


"मित्रता, एक ऐसा सम्बन्ध जो, जात, धर्म, सबसे ऊपर! एक मनुज को मनुज से जोड़ता है! हिंसा का अवसान करता है! आप सभी को मित्र दिवस की शुभ कामना, और ईश से प्रार्थना की सबको आप जैसे मित्र दिलायें!- चेतन रामकिशन "देव"

Thursday, 4 August 2011

♥श्रमिक( अब जाग जाओ ) ♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥श्रमिक( अब जाग जाओ ) ♥♥♥♥♥♥♥
"कतरन पहने श्रमिक देश का, कैसे भारत उदय हो रहा!
भूख प्यास से पीड़ित है वो, उसका हर छण ह्रदय रो रहा!
श्रमिक अपने मनोभाव में, नहीं बुरा चाहता है किन्तु,
श्रमिक पर करके उत्पीडन, सत्ताधारी अदय हो रहा!

चलो बदलने नियति अपनी, उत्पीड़न का तोड़ो दर्पण!
उत्पीड़न के बनो विरोधी, तुम शत्रु का कर दो मर्दन!

सत्ताधारी आनंदित हैं, श्रमिक जीवन प्रलय हो रहा!
कतरन पहने श्रमिक देश का, कैसे भारत उदय हो रहा.......

अपने रक्त पसीने से, श्रमिक देश को सिंचित करते!
और देश के सत्ताधारी, उन्हें सुखों से वंचित करते!
धनिक कुबेरों के हाथों में, बिकती रहती हैं सरकारें,
निर्धन के सारे स्वपनों को, सत्ताधारी खंडित करते!

सोच गुलामी की त्यागो अब, सिंह गर्जना करना सीखो!
है लड़ने का जोश नहीं तो, ख़ामोशी से मरना सीखो!

आम आदमी कांप रहा है, सत्ताधारी अभय हो रहा!
कतरन पहने श्रमिक देश का, कैसे भारत उदय हो रहा.......

आम आदमी अब तुम जागो, अपने साहस को पहचानो!
खुद चिंतन भी करना सीखो, इनकी कथनी को न मानो!
अब सहने की आदत छोड़ो,"देव" चलो तुम रण भूमि में,
है शत्रु से मुक्ति पानी, तो लड़ने की मन में ठानो!

भय से नाता तोड़ चलो अब, शत्रु को जाकर ललकारो!
मद में चूर हुए हैं नेता, इन सबका तुम नशा उतारो!

आम आदमी दफ़न हुआ है, सत्ताधारी उदय हो रहा है!
कतरन पहने श्रमिक देश का, कैसे भारत उदय हो रहा!"


" आम आदमी को, वंचित वर्ग को, श्रमिक को और हर उस अभावों से पीड़ित वर्ग को अपने हाथों में शक्ति का संचार करना होगा! क्यूंकि ये अभाव उनके भाग्य के नहीं हैं, इस देश की वर्तमान व्यवस्था के हैं! इस व्यवस्था को बदलना होगा! नहीं तो इस वर्ग को इसी बेबसी और भूख के अलावा कुछ नहीं मिल सकता!- चेतन रामकिशन "देव"

Tuesday, 2 August 2011

♥प्रेम की पीड़ा ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम की पीड़ा ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ 
"एक पल में ही चले गए हैं, मेरे दिल में रहने वाले!
 तस्वीरें सब जला चुके हैं, हमको अपना कहने वाले!
 सारे रिश्ते तोड़ चुके हैं, तोड़ गए बंधन और नाते,
 छोड़ गए सागर में तनहा, मेरे संग में बहने वाले!

आशाओं के दीप बुझाकर, शोक भरा संगीत बजाकर,
प्यार को कदमों तले दबाकर, चले गए हैं गैर बताकर!

लहू बहाके चले गए वो, संग संग पीड़ा सहने वाले!
एक पल में ही चले गए हैं, मेरे दिल में रहने वाले.....

ना सोचा था कच्ची होगी, उनके प्रेम की डोर!
पहले सुख देकर के हमको, गम देंगे घनघोर!
किन्तु हम उनकी चाहत को दफ़न नहीं कर सकते,
हमने प्रेम किया है सच्चा, मेरे मन ना चोर!

जीते जी वो लाश बनाकर, अरमानों का गला दबाकर!
प्यार के सारे गीत भुलाकर, चले गए हैं गैर बताकर!

अग्नि जैसे दहक रहे हैं, खुद को चन्दन कहने वाले!
एक पल में ही चले गए हैं, मेरे दिल में रहने वाले......

ना ही उनका बुरा सोचता, "देव" ना  देता श्राप!
एक दिन होगा उनको अपने, कर्म का पश्चाताप!
उनकी दुरित भावना उनको, छोड़ नहीं पायगी,
कितनी भी वो करें इबादत, कितने करलें जाप!

मुझको वो पाषाण बताकर, मेरे ह्रदय में शूल चुभाकर!
दुश्मन जैसा मुझे सताकर, चले गए हैं गैर बताकर!

कंटक जैसे बने नुकीले, खुद को उपवन कहने वाले!
एक पल में ही चले गए हैं, मेरे दिल में रहने वाले!"

"प्रेम, की पीड़ा व्यक्ति को हतौत्साहित करती है और उसके आत्मविश्वास और कार्य शैली पर भी प्रभाव पड़ता है! व्यक्ति इस पीड़ा में न चाहते हुए भी समाज से अलग थलग हो जाता है! तो आइये किसी को इस पीड़ा को देने से पहले चिंतन करें-चेतन रामकिशन "देव"