Tuesday, 28 August 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आओ चलो आकाश में आओ, हम इतना ऊँचा उड़ते हैं,
जहाँ नज़र की पहुँच में देखो, दंगा और फसाद नहीं हो!

पंख पसारे साथ रहें हम, एक दूजे के साथ हमेशा,
भूले से भी इन हाथों से, अपनायत बरबाद नहीं हो!"

♥♥♥♥♥♥♥चेतन रामकिशन "देव"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

Sunday, 26 August 2012

♥करुण निवेदन.♥♥


♥♥♥करुण निवेदन.♥♥♥♥
करुण निवेदन करके देखा,
और याचना भी की मन ने!

किन्तु फिर भी प्रेम के बादल,
नहीं छा सके इस जीवन में!

जिसकी यहाँ जरुरत होती,
वो ही पास नहीं आते हैं!

और अपने दिल के ही टुकड़े,
मानो पत्थर बन जाते हैं!

होती है मायूसी किन्तु,
नहीं समझते समझाने से,

अपनायत के निशां देखिए,
मानो दिल से मिट जाते हैं!

रंग बड़े बदरंग हुए हैं,
नीर बहाया ने उपवन ने!

करुण निवेदन करके देखा,
और याचना भी की मन ने!"

.............चेतन रामकिशन "देव".....


♥♥मन की घुटन.♥♥♥♥
घुटा घुटा मेरा मन क्यूँ है!
दर्द से ये अपनापन क्यूँ है!

चारों तरफा भीड़ है लेकिन,
दिल में ये सूनापन क्यूँ है!

न जाने क्यूँ तन्हाई के,
बादल जीवन पर छाते हैं!

और सितारे खुशियों वाले,
न जाने क्यूँ छुप जाते हैं!

जिन राहों पर कदम रखोगे,
कांटे चुभते हैं पैरों में,

और न जाने क्यूँ जीवन से,
जलते दीपक बुझ जाते हैं!

दिल रोता है, रूह सिसकती,
और मेरा जर्जर तन क्यूँ है!

घुटा घुटा मेरा मन क्यूँ है!
दर्द से ये अपनापन क्यूँ है!"

..........चेतन रामकिशन "देव"...................

Friday, 24 August 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥अनमोल-प्रेम ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सखी तुम्हारा प्रेम अमर है, प्रेम बड़ा अनमोल!
सखी बहुत सुन्दर लगते हैं, मधुर प्रेम के बोल!

सखी तुम्हारे प्यार से मेरे, जीवन में श्रृंगार!
गंगा जैसा निर्मल है ये, सखी तुम्हारा प्यार!
सखी तुम्हारे प्रेम से, हमको मिलता है उत्कर्ष,
सखी तुम्हारे प्रेम से बहती, चन्दन की रसधार!

सखी तुम्हारे दर्शन करता, मन की आंखे खोल!
सखी तुम्हारा प्रेम अमर है, प्रेम बड़ा अनमोल.....

सखी तुम्हारे प्रेम से मिलते, मेरे कलम को भाव!
सखी तुम्हारे प्रेम से भरते, क्षण में गहरे घाव!
सखी तुम्हारा प्रेम है कोमल, जैसे हो प्रसून,
सखी तुम्हारे प्रेम में हिंसा, न कोई दुर्भाव!

सखी तुम्हारे प्रेम के आगे, धन-दौलत बेमोल!
सखी तुम्हारा प्रेम अमर है, प्रेम बड़ा अनमोल.....

तन तो होता नश्वर, किन्तु जीवित रहता प्यार!
प्रेम है अमृत रस जैसा, जिससे खिलता संसार!
पतझड़, सावन ,सर्दी हो या खिले बसंत बहार ,
"देव" प्रेम तो हर मौसम में करता है मनुहार!

तुमसे ही इतिहास बनेगा और तुम ही भूगोल!
सखी तुम्हारा प्रेम अमर है, प्रेम बड़ा अनमोल!"
"
प्रेम-एक अनमोल अनुभूति! एक अनमोल सोच! एक अनमोल और निश्चल भावना! जहाँ शुद्ध प्रेम होता है, वहां जीवन हर्षित होता, वहां जीवन पुलकित होता है! वहां समस्याओं से लड़ने के लिए शक्तियां मिलती है! प्रेम के तीन शब्द, जब ह्रदय की गहराई से किसी को कहे जाते हैं, तो वे शब्द पीड़ा में दवा, प्यास में पानी और जीवन के संघर्ष के समतुल्य अनुभूति प्रदान करते हैं! तो आइये................"

"अपने भावनात्मक प्रेम को समर्पित रचना"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२५.०८.२०१२

रचना मेरे ब्लॉग पूर्व प्रकाशित!
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जाने क्यूँ ऐसा लगता है, वक़्त अचानक बदल गया है!


जब भी सांसें लेता हूँ तो सीने में खंजर चुभता है!


अक्सर कोशिश करता हूँ मैं, हंसने, मुस्काने की लेकिन,


बाहर से बेशक हँसता हूँ, पर भीतर से दिल दुखता है!



.................चेतन रामकिशन "देव"......................
♥♥♥♥♥♥♥दिल का एहसास...♥♥♥♥♥♥♥♥
दिल के एहसास को कैसे मैं बदल सकता हूँ!
हमसफर आपके बिन कैसे मैं चल सकता हूँ!

मैं अगर दीप हूँ तो तुम मेरी बाती जैसी,
बिना बाती के भला, कैसे मैं जल सकता हूँ!

तुमको ही देखके, दीवानगी बढती मेरी,
हर किसी के लिए, कैसे मैं मचल सकता हूँ!

आपके प्यार से खुशबू है मेरे जीवन में,
प्यार के फूल को, कैसे मैं मसल सकता हूँ!

अपने दिल पे जो मैंने नाम लिखा है तेरा,
"देव" इस नाम को, कैसे मैं बदल सकता हूँ!"

..........चेतन रामकिशन "देव".............
♥♥♥♥♥♥♥♥♥सपनों की क्यारी..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सपनों की छोटी सी क्यारी, उजड़ गई खिलने से पहले!
चलते चलते खुशी देखिये, बिछड़ गई मिलने से पहले!

बिना बुलाए मेहमानों से, गम मेरे जीवन में आये!
जिनको मैंने अपना समझा, निकले वो ही लोग पराये!
रिश्तों की दुनिया में देखो, पल भर में परिवर्तन आया,
मेरी आंख में देख के आंसू, मेरे अपने भी मुस्काये!

किस्मत का भी हाल देखिये, बिगड़ गई बनने से पहले!
सपनों की छोटी सी क्यारी, उजड़ गई खिलने से पहले!"

....................चेतन रामकिशन "देव"......................

Tuesday, 21 August 2012


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जहाँ वासना की आशा हो, वहां पे सच्चा प्यार नहीं है!
जो दिल की पीड़ा न समझे, वो अपना दिलदार नहीं है!

दुनिया में दौलत पाने को, क्यूँ अपना ईमान बेचना,

कौन उन्हें कहता है अच्छा, सच जिनका किरदार नहीं है!

वही लोग एकजुटता करके, विजय पताका फहराते हैं,

जिनके दिल में जात-धर्म की, खड़ी कोई दीवार नहीं है!

सोने, चांदी, घर, जमीन की सभी वसीयत चाहते लेकिन,

उन बूढ़े माँ बाप के आंसू का, कोई हकदार नहीं है!

आबादी तो "देव" मुल्क की, एक अरब से ऊपर पहुंची,

लेकिन अब अशफाक, भगत की, मुल्क में पैदावार नहीं है!"


चेतन रामकिशन "देव"


Monday, 20 August 2012

♥खुशी और गम...♥



♥♥♥खुशी और गम...♥♥♥
जीवन की इस राह में देखो,
फूल भी होंगे, शूल भी होंगे!

नीम की छाया मिले कभी तो,
झाड़ी और बबूल भी होंगे!

ये जीवन है और जीवन का,
सुख दुःख से गहरा नाता है!

कभी पराजय मिलती है तो,
कभी विजयपथ मिल जाता है!

कभी यहाँ अपनों के दुःख से,
होता है मायूस कोई तो,

और कभी अपनायत पाकर,
अपना चेहरा खिल जाता है!

"देव" इसी जीवन में दुश्मन,
और यहीं मकतूल भी होंगे!

जीवन के पथ में तो देखो,
फूल भी होंगे, शूल भी होंगे!"

(मकतूल-प्रेमी)

...."शुभ-दिन".....चेतन रामकिशन "देव".....



Sunday, 12 August 2012

♥उम्दा किरदार..♥

♥♥♥♥♥उम्दा किरदार..♥♥♥♥♥♥
शब्दों का संसार रचाने निकला हूँ!
मैं उम्दा किरदार निभाने निकला हूँ!

बंदूकों ओर तलवारों की दुनिया में,
शब्दों को हथियार बनाने निकला हूँ!

प्रेम रहित लोगों के दिल तर करने को,
मैं पानी की धार बनाने निकला हूँ!

लोग सभी मजहब के जहाँ एक साथ रहें,
मैं ऐसा घरवार बनाने निकला हूँ!

जिनके हक को लूट रहे हैं खद्दरधारी,
मैं उनको अंगार बनाने निकला हूँ!"

.......चेतन रामकिशन "देव".......







Saturday, 11 August 2012

♥आशाओं के दीप..♥


♥♥♥♥♥♥♥♥आशाओं के दीप..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अपने घर भी होगी इक दिन खुशियों की बरसात!
छंट जायेंगे गम के बादल, खिल जाएगी रात!

थाम के ऊँगली उम्मीदों की, चलो लक्ष्य की ओर,
मेहनत से ही दे सकते हो, तुम मुश्किल को मात!

बस अपने मकसद की खातिर, ठगना नहीं यकीन,
जिसको सुनकर दूर हों अपने, न कहना वो बात!

जाति-धर्म के नाम पे कोई, न करना तुम भेद,
सबसे ऊँची है दुनिया में, मानवता की जात!

"देव" सुनो तो इस दुनिया में, होता उसका नाम,
जिसके ह्रदय में जिन्दा हों, दूजे के जज्बात!"

......"शुभ-दिन"......चेतन रामकिशन "देव".....



Friday, 10 August 2012



♥♥♥♥♥♥♥♥निर्धन की बेबसी.♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
भूख से जर्जर देश का निर्धन, कर्ज से दुखी किसान!
बिना दवा के निकल रही है, मजदूरों की जान!
क्या समझेंगे सत्ताधारी, इन लोगों का दर्द,
उनको दुख की परिभाषा का, नहीं है कुछ भी ज्ञान!

बड़े दर्द में, आंसू पीकर, जीते हैं ये लोग!
और देश के नेता करते, बस इनका उपयोग!

फिर भी इनको देते माफ़ी, ये निर्धन इन्सान!
भूख से जर्जर देश का निर्धन, कर्ज से दुखी किसान...

इन मजलूमों के संग होते, रोज ही अत्याचार!
इनके तन पर करते अफसर, लाठी की बौछार!
नहीं बीज कृषक को मिलता और न मिलता खाद,
इनकी फसल का दाम भी देखो, कम देती सरकार!

न अफसर, न नेता, देखो सुनते इनकी आह!
इनको तो हर पल होती है, धन-दौलत की चाह!

निर्धन लोगों के अधरों से, चली गयी मुस्कान!
भूख से जर्जर देश का निर्धन, कर्ज से दुखी किसान...

जाने कब तक रहेंगे, इनके दर्दनाक हालात!
इनके हिस्से कब आयेंगे, हंसी भरे दिन रात!
इनके इष्ट "देव" भी इनका, नहीं समझते दर्द,
जाने कब इनके घर होगी, खुशियों की बरसात!

निर्धन लोगों के जीवन में, कदम कदम पर शूल!
इनके जीवन में नहीं खिलते, आशाओं के फूल!

निर्धन लोगों की चीखों को, नहीं सुने भगवान!
भूख से जर्जर देश का निर्धन, कर्ज से दुखी किसान!"

"
देश-कुछ चुनिन्दा, चंद लोगों के अमीर होने से, खुशहाल नहीं होता! देश उस वर्ग के खुश होने से खुशहाल होता है, जो वर्ग खेत में फसल बोकर लोगों का पेट भरता है, जो वर्ग पहाड़ काट काट कर रास्ते तैयार करता है! देश को खुशहाली देनी है तो पहले इस निर्धन वर्ग को खुशहाल करना होगा!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-११.०८.२०१२




Monday, 6 August 2012

♥♥माँ का स्वरूप..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ का स्वरूप..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
दो अक्षर का नाम है माँ का, किन्तु इसमें जगत समाया!
अपनी नींद की परवाह न कर, पहले माँ ने मुझे सुलाया!
मुझे खिलौने देकर के माँ, मुस्काने का अवसर देती,
और मेरा रोना सुन माँ ने, मुझको अपने गले लगाया!

प्यारी माँ की पावन ममता, बड़े सुनहरे रंग भरती है!
माँ बच्चों के हित में हरदम, हर संभव कोशिश करती है!

माँ ने खुद भूखा रहकर के, पहले देखो मुझे खिलाया!
दो अक्षर का नाम है माँ का, किन्तु इसमें जगत समाया!"


.................चेतन रामकिशन "देव".......................







Sunday, 5 August 2012

♥♥♥♥♥♥♥♥सच्चा दोस्त..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हमेशा सुख में भी, दुःख में भी अपने साथ होते हैं!
ये ऐसे लोग ही दुनिया में, सच्चे दोस्त होते हैं!

ये सच्चे दोस्त आपस में, कभी रंजिश नहीं रखते,
वो इक दूजे के जीवन में, खुशी के बीज बोते हैं!

नहीं रिश्ता दिखावे का, नहीं मन में कपट होता,
वो इक दूजे के दुख में, अपना भी सुख चैन खोते हैं!

भले हों तन जुदा लेकिन, वो रूह से दोस्ती करते,
वो इक दूजे के आंसू , अपने आँचल में समोते हैं!

"देव", दुआ करता ईश्वर से, दोस्त मेरे खुश रहें सदा,
जो मेरे सुख में हँसते हैं, जो मेरे दुःख में रोते हैं!"

...............चेतन रामकिशन "देव"....................

♥ऐसा भी होता है अक्सर♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥ऐसा भी होता है अक्सर♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी कभी जीवन में देखो, जब गम के बादल छा जाते!
और जब अपने शत्रु बनकर, देखो हमको बहुत सताते!

इस दिल में रहने वाले भी, जब अपना मुंह मोड़ के चलते!
और लोग मज़बूरी का जब, लाभ उठाकर हमको छलते!

तब तब सोचो इस जीवन में, वक़्त परीक्षा वाला आया!
मुश्किल में भी दृढ रहकर के, कुछ करने का अवसर आया!

जो अपनी आँखों के आंसू, पानी की भांति पी जाते!
जो अपने गहरे ज़ख्मों को, अपने हाथों से सी जाते!

वही लोग पीड़ा में तपकर, देखो तो कुंदन हो जाते!
और वही तारे बनकर के, इक दिन आसमान चमकाते !"

..................चेतन रामकिशन "देव".....................

Thursday, 2 August 2012

♥♥दीप शिखा सी तुम♥♥♥


♥♥दीप शिखा सी तुम♥♥♥
जीवन पथ में दीप जले हैं!
अंधकार के रंग ढले हैं!
जब से तुम जीवन में आईं,
सखी हजारों फूल खिले हैं!

तुम अपनी मीठी वाणी से
तन मन शीतल कर देती हो!
तुम चिंतन में शुद्धि देकर,
चित् को निश्चल कर देती हो!

सखी तुम्हारी सच्चाई से,
मिथ्या ने भी होठ सिले हैं!

जब से तुम जीवन में आईं,
सखी हजारों फूल खिले हैं.....

तुमसे उपवन की हरियाली!
तुमसे मेरे घर खुशहाली!
तुमसे ही चंदा जगमग है,
तुमसे ही सूरज की लाली!

"देव" तुम्हारी प्रीत से देखो,
वाणी में मकरंद घुले हैं!

जब से तुम जीवन में आईं,
सखी हजारों फूल खिले हैं!"

"प्रेम- एक ऐसी भावना जिसके ग्रहण करने से, मनुज के जीवन में हर्ष, प्रसन्नता, संघर्ष करने की प्रेरणा, अग्रसर होने की भावना पैदा होती है! प्रेम, समर्पण भाव के साथ जब जीवन पथ में समाहित होता है, तो निश्चित रूप से उस पथ में दीप जल जाते हैं!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०३.०८.२०१२

रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!

♥प्रीत जुड़ी है मन की....♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रीत जुड़ी है मन की....♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमसे प्रीत जुड़ी है मन की, तुमसे ही रंगत यौवन की!
तुमसे ही मेरे शब्दों को, शक्ति मिलती है सृजन की!

मेरा हाथ पकड़ चलती हो, तुम मुझको प्रेरित करती हो!
तुम मेरे जीवन में हर क्षण, साहस और शक्ति भरती हो!
मेरी पीड़ा को तुम अपनी, पीड़ा सदा समझती आईं,
मेरी कुशल कामना हेतु, ईश्वर से विनती करती हो!

तुम ही मेरी सम्रद्धि हो, तुम ही उपलब्धि जीवन की!
तुमसे ही मेरे शब्दों को, शक्ति मिलती है सृजन की!"

....................चेतन रामकिशन "देव".........................