------------------------------------प्रेम ( एक जरुरत )----------------------------------------
" प्रेम बिना सब दिन सूने हैं, सूनी हैं सब रातें!
प्रेम बिना धरती सूनी है, सूनी सब बरसातें!
प्रेम बिना तो ताजमहल भी , प्रभावहीन सा लगता है!
प्रेम बिना तो पुष्प कमल भी, रंगहीन सा लगता है!
प्रेम बिना चोपालें सूनी, सूनी हैं सब बातें!
प्रेम बिना धरती सूनी है, सूनी सब बरसातें.................
प्रेम बिना तो अमृत रस भी, स्वादहीन सा लगता है!
प्रेम बिना तो मानव जीवन, पाषाण कुलीन सा लगता है!
प्रेम बिना नदियाँ सूनी हैं, सूनी हैं सब घातें!
प्रेम बिना धरती सूनी है, सूनी सब बरसातें...................
प्रेम बिना तो घुंघरू भी, ध्वनि हीन सा लगता है!
प्रेम बिना तो मधु सा मीठा , व्यंजन नीम सा लगता है!
प्रेम बिना मंडप सूना है, , सूनी हैं सब बारातें !
प्रेम बिना धरती सूनी है, सूनी सब बरसातें...................
प्रेम बिना तो कलम "देव' का, भावहीन सा लगता है!
प्रेम बिना तो जन्म "देव" का, शुन्यलीन सा लगता है!
प्रेम बिना मस्तक सूना है, सूनी हैं सभी ललाटे!
प्रेम बिना धरती सूनी है, सूनी सब बरसातें...................
" प्रेम जीवन में ठीक उसी तरह जरुरी है, जैसे जिन्दा रहने के लिए सांसो की जरुरत होती है!- चेतन रामकिशन( देव))"
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