Thursday 17 March 2011

-----------------------------------------मेरी प्रियतमा------------------------------


-----------------------------------------मेरी प्रियतमा------------------------------





" वो प्रेम की सागर है, सदभाव की सरिता!


शब्दों की आत्मा है, प्रभाव की रचयिता !


मेरी प्रेरणा की गाथा, प्रकाश पुंज है वो!


गज़लों की जान है वो, सोम्य सी कविता!"





मेरा हाथ पकड़ कर, प्रेम का निबंध लिखा उसने!


सहयोग और समर्पण से ,सम्बंध लिखा उसने!





मेरे चेहरे की रंगत है, होठों की नम्रता!


वो प्रेम की सागर है, सदभाव की सरिता!








मेरे सुख से और दुःख से, गठबन्ध लिखा उसने!


मेरे जीवन की सजावट का, प्रबंध लिखा उसने!





पुष्प सी कोमल है, सच्चाई सी जटिलता!


वो प्रेम की सागर है, सदभाव की सरिता!








'असमंजस में हूँ, नाम नहीं बता सकता!


वो शर्मा जाएगी, घूँघट नहीं हटा सकता!





'देव' के सत्य की परिचायक, प्रकृति सी सरलता!


वो प्रेम की सागर है, सदभाव की सरिता!"








("सच में, शुद्ध प्रेम का एहसास आपके जीवन को ठीक उसी तरह से पवित्र कर सकता है, जैसे गंगाजल आपके पापों को! तो आइये शुद्ध प्रेम करें............................................चेतन रामकिशन ")





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