♥♥♥♥♥♥♥हिंसा का प्रचलन..♥♥♥♥♥♥♥
गाँधी के मुल्क में भी, हिंसा का प्रचलन है!
आंसू किसी के देख के, होती नहीं दुखन है!
इस मुल्क में अब हो रही मजहब पे लड़ाई,
हर ओर देखो खून से रंजित हुआ अमन है!
गाँधी के नाम को भी, बर्बाद कर रहे हम!
आपस में लड़ रहे हैं, फसाद कर रहे हम!
भूमि है लाल खून से, सहमा हुआ गगन है!
गाँधी के मुल्क में भी, हिंसा का प्रचलन है....
अब खून की गंगा भी बहाने में डर नहीं है!
नफरत की दीवारें हैं, अब कोई घर नहीं हैं!
लड़ते हैं लोग आजकल छोटी सी बात पर,
उनके दिलों में नेह का, कोई असर नहीं है!
गाँधी की शांति को वो कमजोर बताते हैं!
इस देश के वो लोग जो हथियार उठाते हैं!
खिलते हुए गुलाब का, सूखा हुआ चमन है!
गाँधी के मुल्क में भी, हिंसा का प्रचलन है....
हिंसा से कभी रूह को आराम नहीं मिलता!
हिंसा से कभी दिल को ईनाम नहीं मिलता!
"देव" क्या पाओगे, हिंसा के पथ पे चलकर,
हिंसा के पथ पे कोई, भगवान नहीं मिलता!
हिंसा का पाठ जिंदगी, सुधार नहीं सकता!
हिंसा का रंग जिंदगी, निखार नहीं सकता!
न जाने शांति का, कब होना आगमन है!
गाँधी के मुल्क में भी, हिंसा का प्रचलन है!"
" महात्मा गाँधी का ये देश, हिंसा की आग में धधक रहा है! हिंसा कभी मजहब की तो कभी किसी के हकों को लूटने की! किन्तु अशांति पैदा करके आप तन का, धन का और दुरित भावना का उल्लास तो ले सकते हैं, पर रूह और ह्रदय का सुकूं नहीं! तो आइये चिंतन करें!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२४.४.२०१२
सर्वाधिकार सुरक्षित!
ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित!