Monday, 31 March 2014

♥बेबसी का तूफान…♥

♥♥♥बेबसी का तूफान…♥♥♥♥
दिल में तूफान बेबसी का है!
दर्द कितना ये मुफ़लिसी का है!

दिल पे पत्थर मैं रखके जीता हूँ,
वरना आलम तो ख़ुदकुशी का है!

सांस भारी हैं और बेचैनी,
इम्तहां आज फिर किसी का है!

सारी दुनिया में बह रही खुशियां,
मेरा मौसम तो नाख़ुशी का है!

लोग इल्ज़ाम यूँ लगाते हैं,
जैसे ईनाम ये ख़ुशी का है!

मेरा दिल तोड़कर के वो बोले,
ये खिलौना महज हँसी का है!

"देव" जो रूह से निभाएगा,
प्यार में मुझपे, हक़ उसी का है!"

........चेतन रामकिशन "देव"…......
दिनांक- ०१.०४.२०१४

Sunday, 30 March 2014

♥♥अश्कों की नदियां…♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥अश्कों की नदियां…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अश्कों की नदियां हैं लेकिन, होठ मेरे फिर भी सूखे हैं!
नमी नहीं है भावनाओं में, सब रिश्ते नाते रूखे हैं!
आज प्यार की परिभाषा का, पूरा ढांचा बदल गया है,
रूह की चाहत नहीं रही है, लोग बदन के बस भूखे हैं!

नहीं पता कैसी दुनिया है, अपनायत की चाह नहीं है!
नफरत के कांटे हैं पथ पर, समरसता की राह नहीं है!

भारत उदय हुआ है लेकिन, देश के निर्धन क्यूँ भूखे हैं!
अश्कों की नदियां हैं लेकिन, होठ मेरे फिर भी सूखे हैं!

बोझ समझकर माँ बाबा को, आज उन्हें दुत्कारा जाता!
आज महज दौलत की खातिर, खूँ का रिश्ता भी मिट जाता!
बस अपनी खुशियों की खातिर, भूल गए हम अपनेपन को,
सब चाहते हैं हंसी ठहाके, नहीं किसी के दुःख से नाता!

ये इक्कीसवीं सदी है जिसमें, रिश्ते नाते नाम के होते!
नातेदारी होती उनसे, जो बस अपने काम के होते!

घायल मर जाते सड़कों पर, दया के सब सागर सूखे हैं!
अश्कों की नदियां हैं लेकिन, होठ मेरे फिर भी सूखे हैं!

ऐसा आलम देख कविमन और कलम मुरझा जाते हैं!
भाव दर्द के इनके मन में और कलम में घुल जाते हैं!
"देव" गांव की वो पगडण्डी, मुझे शहर से प्यारी लगती,
जहाँ पेड़ की छाया नीचे, हम कुदरत से मिल जाते हैं!

मगर शहर के के इस धुयें ने, मानवता को मंद कर दिया!
प्यार की सुन्दर किरणों वाले, हर रस्ते को बंद कर दिया!


रोता है ये मेरा मन भी,  भाव स्याही के सूखे हैं!
अश्कों की नदियां हैं लेकिन, होठ मेरे फिर भी सूखे हैं!"

................चेतन रामकिशन "देव"…...............
दिनांक- ३०.०३.२०१४ 

Saturday, 29 March 2014

♥यादों का एहसास…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥यादों का एहसास…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सांसें भले उधारी की हों, खुद को जिन्दा रख लेते हैं!
जब भी प्यास लगे अधरों को, खुद के आंसू चख लेते हैं!
नहीं पता कब तुझे देखने की, हसरत हो जाये दिल को,
इसीलिए तस्वीर तुम्हारी, हम कमरे में रख लेते हैं!  

बड़ा ही गहरा दर्द प्यार का, दवा असर न कर पाती है!
इंसां बेशक मर जाते हैं, याद न लेकिन मर पाती है!

इसीलिए तेरी यादों का, दिल पे पत्थर रख लेते हैं!
सांसें भले उधारी की हों, खुद को जिन्दा रख लेते हैं!

तुमसे दिल का रिश्ता है हम, इसीलिए न गिला करेंगे!
घाव मुझे तुम देती जाओ, सबको हंसकर सिला करेंगे!
"देव" अगर तुम मुझे देखकर, खिड़की के परदे ढ़क लोगी,
तो हम तेरी तस्वीरों से, एहसासों में मिला करेंगे!

अपने दिल को समझा लेंगे, न तुमसे फरियाद करेंगे!
तुझे खबर न होगी तुझको, हम चुपके से याद करेंगे!

तेरी याद के एहसासों को, गीत, ग़ज़ल में लिख लेते हैं!
सांसें भले उधारी की हों, खुद को जिन्दा रख लेते हैं!"

................चेतन रामकिशन "देव"…...............
दिनांक- २९.०३.२०१४  

Thursday, 27 March 2014

♥माँ के लफ्ज़…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥माँ के लफ्ज़…♥♥♥♥♥♥♥♥♥
माँ के लफ्ज़ों से दुआओं की फसल खिल जाये!
माँ के एहसास से खुशियों का कमल खिल जाये!
दूध से अपने भुजाओं में, बल भरा मेरी,
माँ के आँचल में मुझे, सारी खुशी मिल जाये!

माँ की आवाज़ ने जब भी मुझे पुकारा है!
मुझे उस वक़्त मिला, प्यार बहुत सारा है!

माँ के छूने से, चुभा काँटा भी निकल जाये!
माँ के लफ्जों से दुआओं की फसल खिल जाये!

माँ की आँखों में सितारों की चमक रहती है!
माँ की बोली में सुरों जैसी खनक रहती है!
बंद आँखों से भी कर लेती नजारा है माँ,
माँ को संतान की पीड़ा की भनक रहती है!

माँ का दिल प्यारा है, सूरत भी बड़ी भोली है!
माँ की ममता से दीवाली है, मेरी होली है!

माँ के होने से, अंधेरों में दीया जल जाये!
माँ के लफ्जों से दुआओं की फसल खिल जाये!

माँ की आँखों में नहीं आंसू, हमें भरने हैं!
माँ के दिल के भी नहीं टुकड़े हमें करने हैं!
"देव" धरती पे है भगवान की छाया माँ में,
हमको दुख दर्द यहाँ, माँ के सभी हरने हैं!

माँ के सपनों को सजाने के लिए जुट जाओ!
माँ के जीवन के लिए, हँसके यहाँ मिट जाओ!

माँ का किरदार नहीं कोई भी बदल पाये!
माँ के लफ्जों से दुआओं की फसल खिल जाये!"


(अपनी दोनों माताओं कमला देवी जी एवं प्रेमलता जी को सादर समर्पित)

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक- २७.०३.२०१४ 

Tuesday, 25 March 2014

♥♥♥दिल की चुप्पी…♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल की चुप्पी…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गतिशीलता मंद हो गयी, सीने में दिल चुप रहता है!
मुट्ठी भर होकर भी देखो, पर्वत जैसा दुख सहता है!
इस दुनिया में न हर कोई, सुनता देखो दर्द किसी का,
इसीलिए तो सोच समझकर, ये अपनी पीड़ा कहता है!

कभी ग़ज़ल को, कभी गीत को, भावुकता से भर देता है!
कभी किसी की खातिर देखो, दुआ हजारों कर देता है!

नहीं कराहता कभी जोर से, आँखों से चुप चुप बहता है!
गतिशीलता मंद हो गयी, सीने में दिल चुप रहता है....

कभी किसी अपने के हाथों, बेदर्दी से छल जाता है!
कभी किसी की खातिर देखो, दीपक जैसे जल जाता है!
"देव" कभी इंसान के दुख में, संग साथ में रोता है ये,
और कभी खुशियों में देखो, फूलों जैसा खिल जाता है!

कपट सिखाते हम ही इसको, जनम से ये पावन होता है!
बड़ा दयालु होता है ये, इसका सुन्दर मन होता है!

अपनी इच्छा मार के देखो, दंड हमारा ये सहता है!
गतिशीलता मंद हो गयी, सीने में दिल चुप रहता है!"

.................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक- २५.०३.२०१४ 

♥♥इल्ज़ाम…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥इल्ज़ाम…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्या इल्ज़ाम लगा देने से, रंग प्यार का खिल जाता है!
क्या इल्ज़ाम लगा देने से, घाव मनों का सिल जाता है!
इन झूठे इल्ज़ामों से तो, सम्बन्धों में दूरी बढ़ती,
प्यार, वफ़ा का रिश्ता नाता, बस मिट्टी में मिल जाता है!

जो बस खुद को पाक़ समझकर, औरों पर कालिख मलते हैं!
कहाँ भला उनके जीवन में, दीये हक़ीक़त के जलते हैं!

ये क्या जानें इल्ज़ामों से, ये प्यारा दिल छिल जाता है!
क्या इल्ज़ाम लगा देने से, रंग प्यार का खिल जाता है!

कितने भी इल्ज़ाम लगाओ लेकिन सच कब मर पाया है!
इल्ज़ामों का झूठा चेहरा, एक दिन क़दमों में आया है!
"देव" जहाँ में इल्ज़ामों से, रिश्ते नाते खंडित होते,
इल्ज़ामों की आंच में तपकर, खिलता घर भी मुरझाया है!

इन झूठे इल्ज़ामों के बिन, जब भी प्यार किया जाता है!
वही प्यार देखो दुनिया में, दिल से यहाँ किया जाता है!

इल्ज़ामों की चोट से देखो, घर, आंगन सब हिल जाता है!
क्या इल्ज़ाम लगा देने से, रंग प्यार का खिल जाता है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................... 
दिनांक- २४.०३.२०१४ 

Saturday, 22 March 2014

♥♥प्रतीक्षा…♥♥

♥♥♥♥प्रतीक्षा…♥♥♥♥
मेरे हाथ पे हाथ रखोगी!
प्यार वफ़ा की बात कहोगी!
कभी दुआ में, कभी याद में,
हमदम मेरे साथ रहोगी!

कभी देख तेरी तस्वीरें,
हौले हौले बात करूँगा!
कभी रहूँगा तनहा दिन भर,
कभी तड़प में रात करूँगा!
कभी तुम्हारी आहट पाकर,
खिड़की के परदे खिसका दूँ,
कभी तुम्हारे क़दमों नीचे,
फूलों की सौगात करूँगा!

मेरे मन के पृष्ठ पटल पर,
गंगाजल सी तुम्ही बहोगी!
कभी दुआ में, कभी याद में,
हमदम मेरे साथ रहोगी...

कभी जुदाई की बातों में,
मेरे व्याकुल ज़ज्बातों में!
याद करूँगा हर पल तुमको,
सुख दुख के सब हालातों में!
तुम्हे देखने की हसरत में,
हर पल मैं प्रतीक्षा करता,
"देव" कभी मिलने आ जाना,
तुम सावन की बरसातों में!

यकीं है मुझको एक दिन तुम भी,
प्यार के ढाई लफ्ज़ कहोगी !
कभी दुआ में, कभी याद में,
हमदम मेरे साथ रहोगी!"

....चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक- २२.०३.२०१४

Thursday, 20 March 2014

♥मेरे जीवन में…♥

♥♥♥♥मेरे जीवन में…♥♥♥♥
बनकर चाँद मेरे आंगन में!
चली आओ मेरे जीवन में!
तुझसे हर एहसास पनपता,
वसी है तू ही अंतर्मन में!

तू दुनिया से न्यारी लगती!
तू फूलों की क्यारी लगती!
बिना तेरे मेरा जग सूना,
तू कोमल और प्यारी लगती...

गंगाजल सी पावन है तू,
खुशबु तेरी घुली पवन में!
तुझसे हर एहसास पनपता,
वसी है तू ही अंतर्मन में!

नैतिकता की सीमा तुझसे!
कविताओं की उपमा तुझसे!
नहीं विरत होने दे पथ से,
शब्दकोष की गरिमा तुझसे...

छुअन तुम्हारी बड़ी ही प्यारी,
नम्र भावना है चिंतन में!
तुझसे हर एहसास पनपता,
वसी है तू ही अंतर्मन में!

भाषा की मीठी बोली में!
तू कुदरत की रंगोली में!

"देव" तुझी से दीवाली है,
तू शामिल मेरी होली में!

खुशबु तेरी, रोटी में है,
स्वाद तुझी से है भोजन में!"

.....चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक- २०.०३.२०१४

Monday, 17 March 2014

♥♥प्यार के फूल…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार के फूल…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता!
किसी की खातिर जब मन देखो, रात रात भर जगने लगता!

ऐसे बेचैनी के लम्हों को ही, प्यार कहा जाता है!
एक अनजाने से भी देखो, दिल का रिश्ता बन जाता है! 

दर्द किसी का जब दुनिया में, खुद से ज्यादा लगने लगता!
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता...

जिस की खातिर मर जाने को, मिट जाने को दिल करता है!
उस इंसां के दिल से पूछो, प्यार उसे कितना करता है!

जब कोई ख्वाबों में आकर, चैन सुकूं सब ठगने लगता!
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता...

वो जिसकी सूरत में रब का, वास हमें दिखने लगता है!
जिसकी खातिर कलम हमारा, प्रेम गीत लिखने लगता है!

वो जिसकी खुशबु में हमको, चन्दन शामिल लगने लगता!
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता...

"देव" जहाँ से जिस इंसां से, भाव प्रेम के मिल जाते हैं!
उसको पाकर के जीवन में, फूल ख़ुशी के खिल जाते हैं!

जिसकी खातिर सावन में भी, बादल यहाँ सुलगने लगता!
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता! "

....................चेतन रामकिशन "देव"…………………..
दिनांक- १७.०३.२०१४

Monday, 10 March 2014

♥झोपड़-पट्टी…♥♥

♥♥♥♥♥♥झोपड़-पट्टी…♥♥♥♥♥♥♥
झोपड़-पट्टी में उजियारा करने को ! 
निर्धन का आँचल खुशियों से भरने को! 
कोई सियासी मुझको नजर नहीं आया,
जो निर्धन के साथ हो, भूखा मरने को!

लम्बे चौड़े भाषण कहना जानें हैं!
यहाँ सियासी झूठी बातें तानें हैं!
इनकी आँख का आंसू महज दिखावा है,
नहीं कभी निर्धन को अपना मानें हैं!

जुटे यहाँ पर ये घोटाले करने को!
झोपड़-पट्टी में उजियारा करने को ! 

कभी यहाँ मज़हब की बातें करते हैं!
भाई को भाई का दुश्मन करते हैं!
"देव" इन्हे अपनी सत्ता से मतलब है,
इसीलिए ये झूठे वादे करते हैं!

लाखों अरबों अपनी झोली भरने को! 
झोपड़-पट्टी में उजियारा करने को ! "

........चेतन रामकिशन "देव"….......
दिनांक-१०.०३.२०१४

Saturday, 8 March 2014

♥आलेखन का रंग…♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥आलेखन का रंग…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
आलेखन का रंग तुम्हारे, जीवन में भरना चाहता हूँ!
वक्र तुम्हारी नाराज़ी का, मैं सीधा करना चाहता हूँ!
अपनी सारी खुशियां तेरे, जीवन को मैं अर्पण करके,
हमदम तेरे जीवन से मैं, सारा दुख हरना चाहता हूँ!

नहीं पता तुम क्यूँ रूठी हो, नहीं पता क्यूँ मुँह मोड़ा है!
नहीं पता क्यूँ तुमने मेरे, प्यार भरे दिल को तोड़ा है!

दोष नहीं है फिर भी तुमसे, क्षमा भाव करना चाहता हूँ!
आलेखन का रंग तुम्हारे, जीवन में भरना चाहता हूँ!

पीड़ा मन को बहुत सताती, हँसने में भी दुख होता है!
बिना तुम्हारे नहीं जानता, किस रंग का ये सुख होता है!
"देव" तुम्हारे बिना हमारी, आँखों में सूनापन दिखता,
खून जरा भी नहीं बदन में, उतरा उतरा मुख होता है!

कलम में शक्ति, मन में भक्ति, जीवन में उत्साह नहीं है!
बिना तुम्हारे तन्हा तन्हा, जीवन का निर्वाह नहीं है!

बिना तुम्हारे तन्हा जीता, और यूँ ही मरना चाहता हूँ!
आलेखन का रंग तुम्हारे, जीवन में भरना चाहता हूँ!"

.................चेतन रामकिशन "देव"…...............
दिनांक-०८.०३.२०१४

Wednesday, 5 March 2014

♥भावों की चमक...♥

♥♥♥♥भावों की चमक...♥♥♥♥
जिनके भाव सरल होते हैं!
जिनके भाव सबल होते हैं!
उनका वंदन होता जग में,
जिनके भाव विमल होते हैं!

जो अपने हित की इच्छा में,
मानवता को नहीं मारते!

सदा आत्मा जीते उनकी,
लोग नहीं वो कभी हारते!

जन जन में सम्मान हो उनका,
जिनके भाव अछल होते हैं!
उनका वंदन होता जग में,
जिनके भाव विमल होते हैं...

कठिन परिश्रम जो करते हैं!
खून पसीना एक करते हैं!
जिनके मन में कर्मठता हो,
जीत वही अर्जित करते हैं!

साथ समय के चलते हैं जो,
उनके सब दुख हल होते हैं!
उनका वंदन होता जग में,
जिनके भाव विमल होते हैं...

जो सोने चांदी से पहले,
अपने मन को चमकाते हैं!
जो हिंसा के भाव मिटाकर,
प्रेम के मोती बरसाते हैं!
पाखंडों की सत्ता आगे,
जिनका शीश नहीं झुकता है,
"देव" जगत में ऐसे जन ही,
ध्वज प्रेम की लहराते हैं!

भले न तन हो उजला उनका,
किन्तु भाव कमल होते हैं!
उनका वंदन होता जग में,
जिनके भाव विमल होते हैं!"

....चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०५.०३.२०१४

♥♥प्यार के आख़र...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार के आख़र...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मुझको अपने दिल में रखना, और रूह से प्यार निभाना!
मेरे साथ में रहना हर पल, मैं रूठूं तो मुझे मनाना!
नहीं शिकायत करना मुझसे, अगर काम कोई बिगड़े तो,
मुझको अपने पास बिठाकर, सही काम की लय सिखलाना!

प्रेम के पथ पर नया नया हूँ, एहसासों को सिंचित करना!
न लाऊं उपहार अगर जो, क्रोध नहीं तुम किंचित करना!
अपना एक एक अक्षर देकर, ग़ज़ल तुम्हारी खातिर लिखूं,
और मेरे बिखरे आख़र को, सरस भाव से संचित करना!

काव्य कला में निपुण नहीं हूँ, सही गलत तुम ही बतलाना!
मुझको अपने दिल में रखना, और रूह से प्यार निभाना!

कभी तिमिर जो घेरे मुझको, दीपक बनकर राह दिखाना!
अगर अधिकता काम की हो तो, मेरा थोड़ा हाथ बंटाना!
कभी थकावट हो मुझको तो, गोद में अपनी मुझे सुलाना,
माँ की लोरी की तरह से, प्यार भरे कुछ गीत सुनाना!

बुरी नजर का खतरा हो तो, काजल का एक तिलक लगाना!
मुझको अपने दिल में रखना, और रूह से प्यार निभाना!

नजर से अपनी दूर न करना, घने पेड़ सी छाया करना!
इस दुनिया की नज़र से हमदम, अपना प्यार बचाया करना!
"देव" कभी मुश्किल लम्हों में, अगर अकेला पड़ जाऊं तो,
तो तुम मेरे हाथ में हमदम, अपना हाथ थमाया करना!

तुम शामिल हो मेरी रूह में, रूह में अपनी मुझे समाना!
मुझको अपने दिल में रखना, और रूह से प्यार निभाना!"

"
प्रेम-का एक एक क्षण अनमोल होता है, प्रेम अनुबंध पत्रों जैसे लिखित प्रमाणों का मोहताज नहीं होता, हाँ वो विश्वास और समर्पण का आधार मांगता है, प्रेम चाहें एक क्षण का ही क्यूँ न हो, अगर वो समर्पण और विश्वास के साथ किया जाता है अथवा दिया जाता है, तब वो क्षणिक प्रेम भी प्रेम ग्रंथ पर अमर हो जाता है, तो आइये प्रेम को धारण करें! "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-०५.०३.२०१४

"
सर्वाधिकार सुरक्षित "
" मेरी ये रचना, मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

Monday, 3 March 2014

♥दिल में है सैलाब...♥♥♥

♥♥♥♥दिल में है सैलाब...♥♥♥♥♥♥
दिल में है सैलाब, नयन में पानी है! 
दिन बोझिल था, मेरी रात पुरानी है!

झूठ को चोला ओढ़ के कितने दिन जीना,
एक दिन सच के हाथों मुंह की खानी है! 

माँ बाबा को यहाँ भटकता छोड़ गया,
जिसको सारी दुनिया कहती दानी है!

वो क्या जीते मुश्किल के हालातों से,
हार किसी ने बिना लड़े जो मानी है!

यहाँ होंसलों से दीये जल जाते हैं,
मंजर चाहें कितना भी तूफानी है!

वो मुझको ज्यादा है, खूं के रिश्तों से,
जिसने मेरे दिल की हालत जानी है!

प्यार था जिसको, उसने दुख पहचान लिया,
सारी दुनिया जिस गम से बैगानी है!

पत्थर में भी फूल खिलाकर रहता है,
जिसने कुछ बेहतर करने की ठानी है!

"देव" मेरे दिल में, आकर क्या पाओगे,
घाव हैं गहरे और बाकी वीरानी है!"

........चेतन रामकिशन "देव"…......
दिनांक-०३.०३.२०१४

Sunday, 2 March 2014

♥♥रग रग में बारूद ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥रग रग में बारूद ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बना दिया मुझको विस्फोटक, रग रग में बारूद भरी है!
कुछ अपनों ने पल भर में ही, मेरी जिंदगी तबाह करी है!
बड़े जोर से मानवता की, मगर दलीलें देते हैं वो,
पेश यहाँ ऐसे आते हैं, जैसे उनकी सोच खरी है!

किसी की दुनिया बदतर करके, लोग यहाँ पर जी लेते हैं!
मानव होकर भी मानव का, खून यहाँ पर पी लेते हैं!

मानवता इन लोगों ने ही, क़दमों नीचे यहाँ धरी है!
बना दिया मुझको विस्फोटक, रग रग में बारूद भरी है!

ऐसे लोगों को बस अपने, सुख से ही मतलब रहता है!
जान किसी की निकले बेशक, उनका चेहरा खुश रहता है!
"देव" नहीं मालूम जहां में, अपनायत है किसके दिल में,
इसीलिए बस आज का मानव, पत्थर जैसे बुत रहता है!

ऐसे लोगों का दुनिया में, कुदरत ही इन्साफ करेगी!
मुझे यकीं है इस कुदरत पर, वो न इनको माफ़ करेगी!

खून यहाँ मेरा पीकर भी, इनकी नियत नहीं भरी है!
बना दिया मुझको विस्फोटक, रग रग में बारूद भरी है!"

......................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-०२.०३.२०१४

Saturday, 1 March 2014

♥♥ठहरी सांसें, बहरी कुदरत ♥♥

♥♥ठहरी सांसें, बहरी कुदरत ♥♥
दिल पे चोट बड़ी गहरी है!
सांस मेरी हर एक ठहरी है!
मेरी तो फरियाद सुने न,
कुदरत भी गूंगी, बहरी है!

जिस सपने को पोषित करता,
वही टूटकर रह जाता है!
साथ में जिसके रहना चाहूँ,
वही छूटकर रह जाता है!

नहीं पता कब खुशियाँ होंगी,
अभी तलक दुख की देहरी है! 
मेरी तो फरियाद सुने न,
कुदरत भी गूंगी, बहरी है!

जिन्दा हूँ तो सह लेता हूँ,
बेबस होकर रह लेता हूँ!
कभी यहाँ रोता हूँ दिल से,
कभी रूह से बह लेता हूँ!

नहीं गांव सी ठंडी छाया,
दिल की हालत अब शहरी है!
मेरी तो फरियाद सुने न,
कुदरत भी गूंगी, बहरी है!

बड़े बुजुर्गों का कहना है,
गम में भी हंसकर रहना है!
"देव"  भले कुदरत आंसू दे,
पर फिर भी हमको सहना है!

इसीलिए चुपचाप खड़ा हूँ,
न कल कल, न ही लहरी है!
मेरी तो फरियाद सुने न,
कुदरत भी गूंगी, बहरी है!"

.....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-०२.०३.२०१४

♥♥♥अंगारे...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥अंगारे...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कदम कदम पर अंगारे हैं, अब चलने से डर लगता है!
राख हो गया मैं जल जल कर, अब जलने से डर लगता है! 
नहीं पता कब कोई रहज़न, लूट ले मेरी कोमलता को,
इसीलिए फूलों के जैसे, अब खिलने से डर लगता है!

किससे अपना दर्द कहें हम, अपनों ने हमको छोड़ा है!
और पराये लोगों ने भी, हमसे हर नाता तोड़ा है!

इसीलिए दुनिया वालों से, अब मिलने से डर लगता है!
कदम कदम पर अंगारे हैं, अब चलने से डर लगता है!

लोग बड़े ही सौदागर हैं, प्यार का भी सौदा करते हैं!
बेरहमी से औरों का दिल, क़दमों से रोंदा करते हैं!
"देव" हमेशा जिनको मैंने, हर पल ही चाहत बख्शी थी,
वही लोग ग़म के ख़ंजर से, कबर मेरी खोदा करते हैं!

जिसको अपना समझा मैंने, मुझको वही दगा देता है!
जिसका जैसा मन होता है, वो इल्ज़ाम लगा देता है!

पत्थर का बनना चाहता हूँ, अब छिलने से डर लगता है!
कदम कदम पर अंगारे हैं, अब चलने से डर लगता है!"

................चेतन रामकिशन "देव"….......................
दिनांक-०१.०३.२०१४