Wednesday, 30 April 2014

♥♥मजदूर के आंसू ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥मजदूर के आंसू  ♥♥♥♥♥♥♥
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!
बिन दवाओ के यहाँ घाव की दुखन सहता!
कोई समझे नहीं मज़दूर के हालातों को,
भूख और प्यास का जीते जी वो क़फ़न सहता!

हर सियासी इन्हे छलने का काम करता है!
झूठे आंसू से भरोसा का, नाम करता है!
इनका मालिक भी नहीं देता है मेहनत है धन,
उनका सुख, चैन तलक वो नीलाम करता है!

चूल्हा ठंडा है बहुत भूख की अगन सहता!
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता...

बिना रोटी के वो ज़िंदा भी भला कैसे रहे!
वो भी इन्सान है आखिर वो जुल्म कितना सहे!
"देव" कोई न सुने उसकी आह और चीखें,
फिर भला किसपे यक़ीं, किससे यहॉँ दर्द कहे!

उसकी आँखों से आंसुओं का समंदर बहता! 
शीत में देखो गलन, धूप में तपन सहता!"

...........चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०१.०५.२०१४

" मई दिवस पर मजदूरों को नमन "

♥♥दोस्त बनकर♥♥

♥♥♥♥♥दोस्त बनकर♥♥♥♥♥
दोस्त बनकर जो पास आते हैं!
दुश्मनी फिर वही निभाते हैं!

सर छुपाने को जिसने बख़्शी जगह,
उसके के घर को वो जलाते हैं!

कोई तड़पे, कोई कराहे मगर,
लोग कब किसके काम आते हैं!

जाने वो कैसे रौंदते दिल को,
हम तो सुनकर के काँप जाते हैं!

मेरी तक़दीर की कमी शायद,
हम तो साहिल पे डूब जाते हैं!

जिसने पाला था जिसने पोसा था,
लोग उसका भी खूँ बहाते हैं!

"देव" मुझसे न मिल अकेले में,
लोग चर्चा में बात लाते हैं!" 

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-३०.०४.२०१४

Tuesday, 29 April 2014

♥सवेरे की धूप....♥♥

♥♥♥♥सवेरे की धूप....♥♥♥♥
धूप बन जायें हम सवेरे की!
रोक दें चाल हम अँधेरे की!

घोंसला रखके के कोशिशें कर लूँ,
पंछियों के नए वसेरे की!

मेरी हसरत है कुछ नया करना,
सीमा तोड़ी है बंद घेरे की!

पेड़ की छाँव सा सुकून लगे,
तेरी जुल्फों के उस घनेरे की!

आओ पहले तुम्हें अंगूंठी दूँ,
बात बाकी है सात फेरे की!

इस ज़माने को न बताना कभी,
राज की बात तेरे मेरे की!

"देव" ये जिंदगी की सूरत है,
कभी मंजिल, पड़ाव, डेरे की!"

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक-३०.०४.२०१४ 

Sunday, 27 April 2014

♥♥तुम्ही शामिल दुआओं में..♥♥

♥♥♥♥♥♥♥तुम्ही शामिल दुआओं में..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम्ही शामिल दुआओं में, तुम्ही रहती निगाहों में!
तुम्ही ने फूल बरसाये, मेरे जीवन की राहों में!
तुम्ही को देखना चाहूं, तुम्ही को सोचता रहता,
तुम्ही ने चैन बख़्शा है, मेरे दुख में, कराहों में!

तुम्ही उम्मीद की किरणों का सूरज लेके आती हो!
तुम्ही फिर चांदनी बनकर, जहाँ में खिलखाती हो!

तुम्हारा हाथ मैं थामूं, तुम्हे भर लूँ मैं बाहों में!
तुम्ही शामिल दुआओं में, तुम्ही रहती निगाहों में!

तुम्ही आकाश में तारों की तरह, जगमगाती हो!
तुम्ही मेरे तरन्नुम में, ग़ज़ल बनकर समाती हो!
तुम्ही को देखकर के "देव" मुझको चैन आता है,
तुम्ही फूलों की क्यारी बनके, मेरा घर सजाती हो 

तुम्ही शब्दों की धड़कन में, कलम के नूर में तुम हो!
तुम्ही चन्दन तिलक, रोली, सखी सिंदूर में तुम हो!

सदा ऐसे ही तुम रखना, मुझे अपनी पनाहों में!
तुम्ही शामिल दुआओं में, तुम्ही रहती निगाहों में!

.....................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२७ .०४.२०१४ 

Saturday, 26 April 2014

♥♥ठहराव...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥ठहराव...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कलम थमेगा तो ठहराव बहुत होगा!
अश्क़ों का खारा सैलाब बहुत होगा!

फूल नहीं बरसाना मेरे दामन पर,
छिल जायेगा तन ये घाव बहुत होगा!

टाट लपेटो रिसते खूँ को रोको तुम,
गिरा जमीं पर तो फैलाव बहुत होगा!

आज ही अपना कफ़न खरीदा मंदे में,
कल महंगाई बढ़ी तो भाव बहुत होगा!

मैं जिन्दा हूँ लेकिन दाम चवन्नी है,
लेकिन उनका बुत नायाब बहुत होगा! 

ग़म की आग में झुलसी मेरी जवानी पर,
सब कहते हैं, हाँ रुआब बहुत होगा!

"देव" मेरे रुख़सत होने पर मत रोना,
तुझे रोशनी को महताब बहुत होगा!"

........चेतन रामकिशन "देव"............
दिनांक-२६.०४.२०१४ 

Friday, 25 April 2014

♥♥नफ़रत का ताबीज़...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥नफ़रत का ताबीज़...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी दुआयें साथ नहीं हों और कभी मरहम नहीं मिलता!
कौनसा ऐसा लम्हा होता, जिस दिन मुझको ग़म नही मिलता!
नफ़रत का ताबीज़ पहनकर, लोग करें उल्फ़त की बातें,
लेकिन इन झूठी बातों से, प्यार, वफ़ा को दम नहीं मिलता!

प्यार की बातें लगें खोखली, यदि यकीं, विश्वास नहीं हो!
पास भी होकर दूर लगे वो, ग़र दिल में एहसास नहीं हो!

नफ़रत की इस धुंध में देखो, सुकूं भरा मौसम नही मिलता!
कभी दुआयें साथ नहीं हों और कभी मरहम नहीं मिलता...

रेगिस्तानी जीवन में जब प्यार की धारा बह जाती है!
तो दुनिया की सारी नफ़रत, देखो पीछे रह जाती है!
"देव" जहाँ में सच की ताक़त, भले देर से जीते लेकिन,
मगर ईमारत झूठ की देखो, एक दिन नीचे ढ़ह जाती है!

बिना प्यार और अपनेपन के, मानवता हारी रहती है!
खुली हवा में भी दम घुटता, सांस हर एक भारी रहती है!

नफ़रत से झुलसा हर पौधा, पत्ता तक भी नम नही मिलता!
कभी दुआयें साथ नहीं हों और कभी मरहम नहीं मिलता!"

....................चेतन रामकिशन "देव"......................
दिनांक-२५.०४.२०१४

Tuesday, 22 April 2014

♥♥टूटा दिल है...♥♥

♥♥♥♥टूटा दिल है...♥♥♥♥♥
टूटा दिल है कठिन जवानी,
और आँख से बहता पानी!
हंसी ख़ुशी का मौसम लगता,
मानो कोई बात पुरानी!
किससे अपने दुख बांटू मैं,
सारी दुनिया है बेगानी!
अपने भी हैं नाम के अपने,
किसी ने मेरी तड़प न जानी!

लेकिन फिर भी ग़म से डरकर,
मैं जीते जी मर नहीं सकता!
सारी दुनिया की तरह मैं,
दिल को पत्थर कर नही सकता!

इसीलिए अपनी किस्मत से,
न छोड़ी उम्मीद लगानी!
अपने भी हैं नाम के अपने,
किसी ने मेरी तड़प न जानी...

सारे सपने टूट गए पर,
फिर मैंने आस रखी है!
कुछ करने की अपने दिल में,
मैंने हरदम प्यास रखी है!
"देव" तलाशा है ग़म में ही,
मैंने खुशियों की बूंदो को,
इसीलिए मैंने ये पीड़ा,
साँझ सवेरे पास रखी है!

हाँ दुनिया को समझ न पाया,
मेरे दिल की है नादानी!
अपने भी हैं नाम के अपने,
किसी ने मेरी तड़प न जानी! "

.....चेतन रामकिशन "देव"......
दिनांक-२२.०४.२०१४ 

♥♥प्यार के चार कदम...♥♥


♥♥♥♥♥प्यार के चार कदम...♥♥♥♥♥
क्या मेरे साथ यहाँ चार कदम चल दोगे!
क्या मेरी सूरत-ए-ग़म को यहाँ बदल दोगे!
क्या चरागों को जलाओगे तुम मेरी खातिर,
क्या अंधेरों को उजालों में तुम बदल दोगे!

प्यार का नाम महज, तन की प्यास होता नहीं! 
देखकर जुल्मो-सितम ये उदास होता नहीं!
प्यार की राह में कांटे भी हैं अंगारे भी,
प्यार बस फूलों का देखो लिबास होता नहीं!

क्या मेरे उजड़े बागवान को तुम जल दोगे!
क्या मेरे साथ यहाँ चार कदम चल दोगे!

क्या मेरी आँख के आंसू को तुम संभालोगे!
क्या मेरे पैर से कांटो को तुम निकलोगे!
"देव" सह लोगे क्या तुम मुझसे बिछड़ना खुद का,
या मेरे प्यार में बढ़कर के, मुझे पा लोगे!

क्या मुझे चैन सुकूं का, खिला कमल दोगे!
क्या मेरे साथ यहाँ चार कदम चल दोगे!"

...........चेतन रामकिशन "देव"...........
दिनांक-२२.०४.२०१४ 

Monday, 21 April 2014

♥वफ़ा की मिसाल...♥

♥♥♥♥♥वफ़ा की मिसाल...♥♥♥♥♥
तुम वफ़ाओं की एक मिसाल बनो!
चांदनी रात का ज़माल बनो!

मेरे ज़ख्मों का तुम मरहम बनकर,
मैं जो रोऊँ तो तुम रुमाल बनो!

मेरी राहों में जब अँधेरा हो,
जगमगाती हुयी मशाल बनो!

सिलसिला प्यार का ये चलते रहे,
तुम मोहब्बत की एक ढ़ाल बनो!

सात जनमों तलक न फीका पड़े,
प्यार का ऐसा तुम गुलाल बनो!

दुश्मनों को वतन के दूँ मैं सबक,
खून का मेरे तुम उबाल बनो!

"देव" दुख में भी, सुख में साथ रहे,
मेरे क़दमों की ऐसी चाल बनो!"

.......चेतन रामकिशन "देव".......
दिनांक-२१.०४.२०१४

Sunday, 20 April 2014

♥♥♥प्यार का उन्वान...♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार का उन्वान...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हरफ़ तुम्ही से नूरानी है और ग़ज़ल की शान तुम्ही हो!
मेरे गीतों का, कविता का, हमदम ये उन्वान तुम्ही हो!
गहराई से समां गयीं तुम, मेरी रूह में, मेरे दिल में, 
नाम भले ही मेरा हो पर, मेरी हर पहचान तुम्ही हो!

तुम्हे देखकर हँस लेता हूँ, तुम्हे देखकर लिख लेता हूँ!
तुम्हे सोचकर घने स्याह में, चाँद सरीखा दिख लेता हूँ!

मुश्किल के हालातों में भी, मंजिल हर आसान तुम्ही हो!
हरफ़ तुम्ही से नूरानी है और ग़ज़ल की शान तुम्ही हो....

तुमसे मिलना अच्छा लगता, तुम्हे देखना मन को भाये! 
बिना तुम्हारे दिन सूना है और रात को नींद न आये!
"देव" तुम्हारे प्यार से बढ़कर, नहीं जहाँ में कुछ भी लगता,
इसीलिए तेरी खुशबु से, फूलों की रंगत खिल जाये!

बिना तुम्हारे आँगन सूना, सूना सूना घर होता है!
हाथ तुम्हारा चलूँ पकड़ कर, खो जाने का डर होता है!

मेरे तन की रक्त शिराओं और धड़कन की जान तुम्ही हो!
हरफ़ तुम्ही से नूरानी है और ग़ज़ल की शान तुम्ही हो!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२०.०४.२०१४

♥♥खुशियों की लकीरें...♥♥

♥♥♥♥♥♥खुशियों की लकीरें...♥♥♥♥♥♥♥
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं!
क्यूँ कड़क धूप में भी, आँख ये मेरी नम हैं!
क्या मैं इंसान नहीं, बुत या कोई पुतला हूँ,
क्यूँ मेरे खून में शामिल, ये हजारों ग़म हैं!

क्या मुझे हँसने का, खुश होने का हक़ कोई नहीं!
क्या मुझे चैन से सोने का भी, हक़ कोई नहीं!
क्यों उदासी पे मेरी लोग सवालात करें,
क्या मुझे खुलके यहाँ रोने का, हक़ कोई नहीं!

तोड़ दे कोई, क्यूँ ज़ज्बात मेरे, बेदम हैं!
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं...

क्यों मेरी आह को सुनकर भी निकल जाते हैं!
लोग अपने भी यहाँ, देखो बदल जाते हैं!
"देव", नातों में, मोहब्बत में, हुई है ग़ुरबत,
मोम के रिश्ते हैं पल भर में पिघल जाते हैं!

भीड़ होकर भी हैं तन्हा, की अधूरे हम हैं!
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं!"

............चेतन रामकिशन "देव".......

Tuesday, 15 April 2014

♥चैन के दो पल...♥


♥♥♥चैन के दो पल...♥♥♥
चैन से दो पल सोना चाहूँ!
कुछ सपनों में खोना चाहूँ!
कभी किसी अपने की गोदी,
में सर रखकर रोना चाहूँ!
कभी मैं अपने दिल की बंजर,
भूमि पे कुछ बोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!

कभी सोचता हूँ बच्चा बन,
माँ की लोरी को मैं सुन लूँ!
कभी सोचता हूँ बगिया से,
फूल कोई उल्फत का चुन लूँ!

कभी मैं बारिश के पानी से,
अपनी पलक भिगोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!

बड़ा दर्द अब घुला रगों में,
और हथेली फटी हुईं हैं!
नसें प्यार की जो दिल में थीं,
वो भी अब तो कटी हुईं हैं!
पैरों में भी पड़े हैं छाले,
पगडण्डी सब बँटी हुईं हैं!
और मेरी हँसती सूरत पे,
अब मायूसी अटी हुईं हैं!

दर्द ही जब लिखा किस्मत में,
तो इससे क्यों नफरत कर लूँ!
आँखों में अंगारे लेकर,
कैसे दिल को पत्थर कर लूँ!

इसीलिए आंसू की बूंदें,
पल भर नहीं सुखोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!

"देव" किसी ने साथ दिया न,
खुद ही टूटे दिल को जोड़ा!
झूठी खुशियों के लेपन से,
ग़म का रंग बदलना छोड़ा!
स्थिर होकर जीना सीखा,
झूठ की खातिर ढ़लना छोड़ा!
और किसी के इंतजार में,
मैंने अब तो जलना छोड़ा!

बना लिया है दवा दर्द को,
तन्हाई को साथी कर लूँ!
उम्मीदों की धूप सजाकर,
अपने घर को रौशन कर लूँ!

एहसासों की गहराई में,
खुद को बहुत डुबोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१५.०४.२०१४ 

" सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

Monday, 14 April 2014

♥आँखों की नदी...♥

♥♥♥♥♥♥♥आँखों की नदी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ढूंढकर भी मुझे जब तू नहीं मिल पाती है!
मेरी आँखों की नदी फिर से मचल जाती है!

तुझको इल्ज़ामों से फुर्सत ही नहीं मैं क्या करूँ,
जिंदगी पेश-ए-सफाई में निकल जाती है!

जैसा बोओगे वही वैसा काटना होगा,
ख़ार बोने से कहाँ गुल की फसल आती है!

जिंदगी में कोई जब देता सहारा हक़ से,
लड़खड़ाती हुयी दुनिया भी संभल जाती है!

तेरे बदलाव से हैरानगी नहीं मुझको,
मोम की कांच तो पल भर में पिघल जाती है!

मलके मरहम भी नहीं, चैन मयस्सर हमको,
दर्द की आंच से ये, रूह भी जल जाती है!

"देव" चेहरे से नहीं गम के निशां मिटने दिए,
वरना सूरत तो यहाँ पल में बदल जाती है!

...........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-१५.०४.२०१४ 

♥♥♥आरोपित प्रेम..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आरोपित प्रेम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्या आरोप लगा देने से, प्रेम कला में सिद्धि होती!
क्या आरोप लगा देना ही, भावों की उपलब्धि होती!
क्यों आरोप लगाकर अपने, प्रेम को साबित करते हैं हम,
मगर जान लो आरोपों से, नहीं प्रेम में वृद्धि होती! 

सच्चाई को कहना सीखो, सच गलती को दूर करेगा!
पर केवल आरोपण करना, रोने को मजबूर करेगा!

घर आँगन में आरोपों से, नहीं कोई प्रसिद्धि होती!
क्या आरोप लगा देने से, प्रेम कला में सिद्धि होती...

आरोपों का अर्थ कठिन है, कहने में आसान रहा हो!
आरोपित व्यक्ति क्या बोले, वो जिससे अनजान रहा हो!
"देव" प्रेम के पथ में देखो, आरोपों से पीड़ा मिलती,
मानो अब तक प्यार वफ़ा के, रिश्तों में एहसान रहा हो!

एक दूजे में रखो आस्था और मन में विश्वास रखो तुम!
सच्चाई और अपनेपन का, बस दिल में एहसास रखो तुम!

आरोपों की बरसातों से, नहीं कोई समृद्धि होती!
क्या आरोप लगा देने से, प्रेम कला में सिद्धि होती!"

..................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१४.०४.२०१४

Sunday, 13 April 2014

♥♥काँटों का हार…♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥काँटों का हार…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन में फिर धुंधला धुंधला सा, ख्वाबों का एक जाल बुना है! 
सबको दी है गुलों की माला, खुद काँटों का हार चुना है!
वैसे तो दावे करते थे, लोग हजारों अपनायत के,
साथ किसी ने नहीं दिया पर, दिल ने मेरा हाल सुना है!

इसीलिए अपनी पीड़ा को, अपने दिल से कह लेता हूँ!
सांस बहुत भारी हैं लेकिन, फिर भी जिंदा रह लेता हूँ!

असर भला कैसा होगा जब, दर्द दवा से कई गुना है!
मन में फिर धुंधला धुंधला सा, ख्वाबों का एक जाल बुना है... 

अरमानों का गला काटकर, उनको बेदम कर लेता हूँ!
नमक लगाकर मैं ज़ख्मों पर, पीड़ा को कम कर लेता हूँ!
"देव" मेरे दिल की ये बंजर, भूमि जब भी पानी मांगे,
मैं आँखों से धार बहाकर, खुद उसको नम कर लेता हूँ!

अम्बर के तारे गिन गिन कर, वक़्त रात का काट रहा हूँ!
अपने दामन से पीड़ा के, फूटे अंकुर छांट रहा हूँ!

लफ़्जों का दिल भर आया है, जब दिल का एहसास सुना है!
मन में फिर धुंधला धुंधला सा, ख्वाबों का एक जाल बुना है! "

........................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-१३.०४.२०१४

Saturday, 12 April 2014

♥मासूम मोहब्बत …♥

♥♥♥♥मासूम मोहब्बत …♥♥♥♥
गुनगुनाते हुए लम्हों की कसम!
खिलखिलाते हुए ग़ुलों की कसम!
प्यार तुमसे है, कह रहा हूँ मैं,
जगमगाते हुए दीयों की कसम!

तेरी नाराज़गी के डर से ही,
अपने जज़्बात में छुपाता हूँ!
देख लेता हूँ तुमको छुप छुप कर,
दिल ही दिल में, मैं मुस्कुराता हूँ!
सोचता हूँ तुम्हे अकेले में,
और ख्यालों में तुमको पाता हूँ!
तुम क्या जानो के बेबसी कितनी,
सांसें तक भी मैं भूल जाता हूँ!

तुम ही पढ़ लो वफ़ा निगाहों में,
गीत, ग़ज़लों की, कहकहो की कसम!
प्यार तुमसे है, कह रहा हूँ मैं,
जगमगाते हुए दीयों की कसम...

अपनी पलकों को जब, झुकाती हो!
बड़ी प्यारी सी नजर, आती हो!
देखकर तुमको जिंदगी मिलती,
एक उम्मीद सी जगाती हो!
"देव" तुमसे ही मुझमें प्यार जगे,
सारी दुनिया में तुम ही भाती हो,
मेरे एहसास के उजालों में,
तुम ही दीया हो और बाती हो!

काश बिन बोले तुम समझ जाओ,
प्यार की उन सभी हदों की कसम!
प्यार तुमसे है , कह रहा हूँ मैं,
जगमगाते हुए दीयों की कसम!"

....चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक- १२.०४.२०१४

Thursday, 10 April 2014

♥♥जीवन पथ पर साथ रहो तुम…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥जीवन पथ पर साथ रहो तुम…♥♥♥♥♥♥♥
जीवन पथ पर साथ रहो तुम, मुझे अकेले डर लगता है!
बिना तुम्हारे मुझको अपना सूना सूना घर लगता है!
तुमको जबसे पाया मैंने, आदत मुझको हुयी तुम्हारी!
इसीलिए तुमको खोने का, गुम होना का डर लगता है!

इश्क़ है तुमसे और मोहब्बत, और हमारा प्यार तुम्ही हो!
मेरे जीवन की कुटिया में, खुशियों का संसार तुम्ही हो!

तेरी ज़ुल्फ़ों की बूंदों से, भीगा ये अम्बर लगता है! 
जीवन पथ पर साथ रहो तुम, मुझे अकेले डर लगता है!

नहीं दूर जाना पल भर भी, एक पल मुझको साल लगे है!
बिना तुम्हारे दिल न सोये, सारी सारी रात जगे है!
"देव" तुम्हारा रूप देखकर, हंसी चांदनी खिल जाती है,
और मेरे जीवन को हमदम, धूप प्यार की मिल जाती है!

पेड़ों के छाया की नीचे, चुपके चुपके बात करेंगे!
तेरे प्यार में ही दिन होगा, तेरे प्यार में रात करेंगे! 

बिना तुम्हारे थमी उड़ानें, टूटा टूटा पर लगता है!
जीवन पथ पर साथ रहो तुम, मुझे अकेले डर लगता है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"…...................
दिनांक- ११.०४.२०१४

♥तेरा एहसास…♥

♥♥♥तेरा एहसास…♥♥♥
तेरे एहसास का सहारा है!
दर्द भी टूटकर के हारा है!

तेरे पैरों के उन निशानों से,
देखो पावन ये घर हमारा है!

मोतियों की तरह चमकने लगा,
जब से लफ्ज़ों में ग़म उतारा है!

तेरे जाने के बाद तन्हाई,
हर तरफ तेरा ही नज़ारा है!

तोड़कर सरहदें चली आयें,
तेरी यादों का जब पुकारा है!

हाँ मैं खुश हूँ तेरी दुआओं से,
बिन दवाओं के ही गुज़ारा है!

"देव" तुमको भुला नहीं सकता,
दिल से धोखा नहीं ग़वारा है!"

.....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक- १०.०४.२०१४

Tuesday, 1 April 2014

♥दर्द की दुकान…♥♥

♥♥♥♥दर्द की दुकान…♥♥♥♥♥
मुझमें थोड़ी सी जान रहने दो!
दर्द की ये दुकान रहने दो!

गा सकूँ जो मैं अपनी ग़ज़लों को,
ग़म का साजोसामान रहने दो!

फिर न करना जफ़ा किसी के संग,
दिल में इतना ईमान रहने दो!

सोने चांदी की ख्वाहिशें न मुझे,
मेरा कच्चा मकान रहने दो!

घाव लफ्ज़ों का न भरे जल्दी,
अपने वश में जबान रहने दो!

चांदनी से बदन को धो लो मगर,
दिल पे ग़म के निशान रहने दो!

"देव" मिलने पे न चुराना नजर,
आज बेशक गुमान रहने दो!"

.....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक- ०१.०४.२०१४