Friday, 26 September 2014

♥♥जिद...♥♥


♥♥♥♥♥♥♥जिद...♥♥♥♥♥♥
जिद पे इतनी उतर रहे हैं वो। 
प्यार करके मुकर रहे हैं वो। 

जिनको उड़ने का इल्म बख़्शा था,
उनके ही पर क़तर रहे हैं वो।  

मेरे दिल को ही कह रहे पत्थर,
हद से अपनी गुजर रहे हैं वो। 

बेगुनाही ने मुझको थाम लिया,
सूखे पत्तों से झर रहे हैं वो। 

जिनकी छाँव में धूप रोकी थी,
उनमे तेज़ाब भर रहे हैं वो। 

कितने मज़लूमों को था मार दिया,
मौत से अपनी डर रहे हैं वो। 

"देव" खाली ही हाथ जाना है,
लूट क्यों इतनी कर रहे हैं वो। "

.......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-२७.०९.२०१४ 

Saturday, 20 September 2014

♥♥♥शब्दों का भार...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥शब्दों का भार...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा।
प्रेम जब आत्मा से होगा तो, बाद मरकर भी न ख़तम होगा। 
श्रंखला दीप की जला लेंगे, मन में उलझन न कोई तम होगा,
हाँ मगर टूट जायेंगी लड़ियाँ, प्रेम का भाव जब छदम होगा। 

मन के सम्बन्ध में न टूटन हो, भावनाओं का रूप खिल जाये!
जब अँधेरे दुखों के घेरें तो, प्रेम की जगती धूप मिल जाये। 

ओस की बूंद को उठालें चलो, मन का सूखा लिबास नम होगा!
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा …

छोड़कर साथ न चला करते, और न खुद का ही भला करते।
प्रेम होता है जिनके मध्य यहाँ, वो नहीं झूठ से छला करते।
त्याग के रंग में समाहित हों, दीपमालाओं से जला करते,
हाँ मगर जिनको प्रेम है ही नहीं, घाव पे अम्ल वो मला करते। 

प्रेम का नाम तो सभी लें पर, प्रेम का मर्म सब नहीं जानें। 
हाथ बाहर से तो मिला लें पर, आत्मा का मिलन नहीं मानें।  

"देव" जो प्रेम से छुओगे तो, तन शिलाओं का भी नरम होगा।
तुम मेरे मौन को समझने लगो, मेरे शब्दों का भार कम होगा।" 

......................चेतन रामकिशन "देव"….......................
दिनांक-२१.०९.२०१४ "



Wednesday, 17 September 2014

♥♥प्यार के पंख...♥♥

♥♥♥♥♥♥प्यार के पंख...♥♥♥♥♥♥♥♥
तुमसे मिलने का मन हुआ जब से। 
पंख शब्दों में लग गए तब से। 

तेरी आँखों से न बहें आंसू,
ये दुआ मांगता हूँ मैं रब से।  

तेरी सूरत से ये नज़र न हटे,
खूबसूरत है तू बहुत सब से।

आज तक छोड़कर गयीं तो गयीं,
दूर न जाना तुम कहीं अब से। 

अपनी रूहें घुली मिलीं ऐसे,
मानो रिश्ता है अपना ये कब से। 

हर जनम में मिलें इसी तरह,
यही दरख़्वास्त मेरी है रब से। 

"देव" शब्दों के पंख प्यारे हैं,
चूमना चाहूँ मैं इन्हे लब से। "   

.......चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-१७.०९.२०१४

Tuesday, 16 September 2014

♥♥माँ का ख़त..♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥माँ का ख़त..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है!
माँ के शब्दों को सौंपकर मुझको, माँ के एहसास से मिलाता है!
मेरे चोखट पे एक दस्तक दे, पास अपने मुझे बुलाता है!
न गलत काम तुम कभी करना, माँ की तरह मुझे सिखाता है!

हर घड़ी साथ मेरे रहता है, माँ न भेजा मेरा हिफाज़त को। 
माँ की तरह ही माफ़ करता है, मेरी छोटी बड़ी शरारत को!

दूर रहती है मेरी माँ मुझसे, खत मगर उसको पास लाता है!
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है!

माँ के शब्दों के नूर से हर पल, मेरे संग साथ में उजाला है!
यूँ तो रिश्ते हजार हैं लेकिन, माँ का एहसास ही निराला है!
अपने बच्चों की राह की कांटे, माँ ही हंसकर के सिर्फ चुनती है!
अपने सब काम छोड़कर माँ ही, अपने बच्चों का दर्द सुनती है!

माँ की प्यारी सी ये छुअन पाकर, देखो फूलों का रंग खिलता है!
पैसे, रूपये से और दौलत से, न कहीं प्यार माँ का मिलता है!

याद में माँ की रो पड़ी आँखें, ख़त मुझे देखो चुप कराता है! 
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है!

माँ ने मंजिल की ओर जाने को, माँ ने मुझको बहुत पढ़ाने को!
अपने आपे से दूर भेजा है, ख्वाब मेरे सभी सजाने को!
"देव" जब माँ की याद आती है, खत यही खोलकर के पढ़ता हूँ!
माँ ने सिखलाया अग्रसर होना, अपनी मंजिल की ओर बढ़ता हूँ!

माँ की आँखों में एक चमक होगी, मेरे सपनों में जब गति होगी!
अपनी ममता पे गर्व होगा उसे, जब कभी मेरी प्रगति होगी!

माँ के आँचल की याद आने पर, ख़त मुझे हौले से सुलाता है!
माँ की ममता में प्यार है कितना, ख़त मेरी माँ का ये बताता है! "

"
माँ-एक ऐसा व्यक्तित्व जिसकी उपमा/तुलना/पर्याय अगर है तो वो माँ ही है, माँ की ममता से भरा दिल भले ही अपनी संतान को, कुछ समय के लिए आँखों से दूर करता है, मगर वो हर घडी, हर पल अपनी संतानों के लिए धड़कता है, तो आइये ऐसे किरदार माँ को हृदय से प्रणाम करें।  "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-17.09.2014 

" अपनी दोनों प्रिय माताओं को समर्पित रचना।"


Monday, 15 September 2014

♥♥♥पुराने ख़त...♥♥♥


♥♥♥पुराने ख़त...♥♥♥♥
ख़त पुराने तलाश लेने दो!
अपना खोया लिबास लेने दो!

कल मैं सूरत को मांजने में था,  
आज दिल को तराश लेने दो। 

फिर महल ख़्वाब का बनायेंगे,
ताख में रखे ताश लेने दो!

कल का सूरज हमे मिले न मिले,
आज जी भरके के साँस लेने दो!

दिल के दीये को कब जलाना पड़े,
साथ अपने कपास लेने दो!

खूं जहाँ पर बहा शहीदों का,
मुझको उस थल की घास लेने दो!

"देव" दौलत से जो नहीं मिलती,
वो दुआ माँ की, ख़ास लेने दो! "

........चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक-१६.०९.२०१४

Friday, 12 September 2014

♥♥♥तेरा कद...♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥तेरा कद...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
तेरे न होने से पड़ता है, मुझको फ़र्क़ बहुत,
रूह हूँ मैं जो अगर, तू भी जान जैसा है!

तेरे क़दमों के लिए, बन गया हूँ मैं धरती,
तेरा कद दिल में मेरे, आसमान जैसा है!

तुमसे मिलकर ही खिले हैं, ये फूल चाहत के,
तेरा साया ये किसी, बागवान जैसा है!

तू ही आई है, मेरे घर में रौशनी लेकर,
बिन तेरे घर ये मेरा, बस मकान जैसा है!

नफरतों के जो मसीहा हैं, उनको देखेंगे,
मैं हूँ तलवार अगर, तू म्यान जैसा है!

हर जन्म में हो मिलन, तुमसे ही दुआ है मेरी,
बिन तेरे मेरा सफर, बस थकान जैसा है!

"देव" तुमसे ही बताया, है अपना हर सुख दुख,
तेरा आँचल ही सुकूं के, जहान जैसा है! " 

............चेतन रामकिशन "देव"…........
दिनांक-१३.०९.२०१४  

♥♥कोई अफ़साना नहीं...♥♥



♥♥♥♥♥कोई अफ़साना नहीं...♥♥♥♥♥♥
कोई अफ़साना नहीं है, ये हक़ीक़त देखो,
रोज ही भूख से बच्चों की मौत होती है!

सर पे छप्पर भी नहीं, पेट में नहीं रोटी,
मुफ़लिसी देश में चीखों के साथ रोती है!

कब दरिंदा कोई बेटी को उठा ले जाये,
माँ इसी डर से यहाँ जागकर के सोती है!

लोग बदले हैं, बदलते हैं, बदलते होंगे,
ऐसे धोखे से कहाँ रूह, ये खुश होती है!

झूठ को सच भी बोल दूँ, तो सच नही मरता,
झूठ की दुनिया की तो, शीशे की तरह होती है!

रंग, दौलत से, ही कोई बड़ा नहीं बनता,
यहाँ अच्छाई तो उल्फत से बुनी होती है!

"देव" उस शै को दुआ एक भी नहीं मिलती,
आदमी काटके जो, खूं से फसल बोती है! "

...........चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-१२.०९.२०१४ 

Thursday, 11 September 2014

♥♥दिल का मेल-जोल..♥♥


♥♥♥♥दिल का मेल-जोल..♥♥♥♥
सिलसिला है हसीं मोहब्बत का, 
मुझसे मिल जाओ, मुझसे जुल जाओ!

हर तरफ ही प्यार की ही खुशबु हो,
इन हवाओं में यार घुल जाओ!

मेरी गलती पे मांग लूंगा क्षमा,
तुम भी थोड़ा सा गर पिघल जाओ!

लड़खड़ाना मैं बंद कर दूंगा,
तुम भी हमदम अगर संभल जाओ!

इस उजाले से हो जहाँ रौशन,
आओ दीये की तरह जल जाओ!

मेरी बेचैनी को क़रार मिले,
देखकर मुझको तुम मचल जाओ!

"देव" दुख दर्द मुझसे बांटो तुम,
एक सहेली की तरह खुल जाओ! "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-१२.०९.२०१४  

Wednesday, 10 September 2014

♥कविता(एक चन्द्रिका)..♥



♥♥♥कविता(एक चन्द्रिका)..♥♥♥
मैं कविता का पक्ष करता हूँ!
भावनाओं का नक्ष करता हूँ!
जब कविता को मुझसे मिलना हो,
मन को उसके समक्ष करता हूँ!

ये कविता है प्रेमिका जैसी!
ये कविता है चन्द्रिका जैसी!
रंग भर देती अक्षरों में जो,
ये कविता है तूलिका जैसी!

योग्यता इतनी हैं भरी जिसमें,
उसको वंदन से यक्ष करता हूँ!

मैं कविता का पक्ष करता हूँ...

प्रेम की बारिशों सी बरसी है!
मेरे आँगन की एक तुलसी है!
ये कविता है इस तरह अपनी,
मेरी पीड़ा में साथ झुलसी है!

देख कविता के इस समर्पण को,
आंसुओं से मैं अक्ष भरता हूँ!

मैं कविता का पक्ष करता हूँ...

ये कविता सदा ही पावन हो!
हर कलमकार का धवल मन हो!
"देव" आशाओं के जलें दीपक,
न तिमिर से भरा कोई क्षण हो!

एक बढ़ाई तो है बहुत ही कम,
मैं तो प्रसंशा लक्ष करता हूँ!

मैं कविता का पक्ष करता हूँ!
भावनाओं का नक्ष करता हूँ! "

(नक्ष-अंकित/लेखन, यक्ष-देवयोनि/विशेष, अक्ष-नयन/आँखे, लक्ष-लाख )

" कविता, जब आत्मा और हृदय से अंकित होती है, तो वो प्रेरणा बन जाती है, कविता
किसी की बपौती नहीं, कविता तो हृदय के मूल तत्वों में निहित होती है, जो हृदय के भावों से, अंकित नहीं होती, वो तुकांत/अतुकांत गठजोड़ तो हो सकता है, पर कविता कभी नहीं, तो आइये कविता का सम्मान हृदय से करें! "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-११.०९.२०१४  

"
सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

Tuesday, 9 September 2014

♥न दीया है...♥♥

♥♥♥♥न दीया है...♥♥♥♥♥
न दीया है न और बाती है!
ये अँधेरा ही उनका साथी है!
जागकर रात मुफ़लिसों की कटे,
भूख में नींद किसको आती है!

तंगहाली में सांस भारी है!
जिंदगी बिन दवा के हारी है!
छीन लेते ले हैं, हक़ गरीबों का,
ऐसा आलम है, लूटमारी है!

लूटने वाले हैं यहाँ पर खुश,
और मुफ़लिस की जान जाती है!

न दीया है न और बाती है...

कोई सरकार न सुने उसकी,
सबको बस अपना होश रहता है!
"देव" मुफ़लिस की जिंदगी है कठिन,
न उम्मीदें, न जोश रहता है!

हर कोई दुश्मनी रखे हमसे,
जिंदगी इस कदर सताती है!

न दीया है न और बाती है....

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०९.०९.२०१४  ०

Sunday, 7 September 2014

♥♥♥तुमने समझा न...♥♥♥


♥♥♥♥तुमने समझा न...♥♥♥♥
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया!
एक था प्यार से भरा जो दिल,
अपने हाथों से खुद ही तोड़ दिया!

तुमको अश्क़ों की धार दिखलाई!
अपनी बेचैनी तुमको बतलाई! 
तुमने नफरत से ही मगर देखा,
प्यार की दुनिया तुमने ठुकराई!

जिस कलाई को थामते थे कभी,
आज उसको ही यूँ मरोड़ दिया...

वक़्त का आईना दिखाकर के!
जा रहे तुम नज़र चुराकर के!
तुमको खुशियां हजार मिलती हों,
क्या पता मेरा दिल जलाकर के!

दर्द में मैं बिलख रहा था मगर,
तुमने मरहम का जार फोड़ दिया!
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया...

अब चलो फैसला लिया है ये,
तेरे दर पर न लौट आएंगे!
"देव" पत्थर का, कर लिया दिल को,
रात दिन कितनी चोट खाएंगे!

प्यार की जो नदी उमड़ती थी,
उसको सूखे के, साथ जोड़ दिया!
तुमने समझा न दर्द को मेरे,
मैंने भी मिन्नतों को छोड़ दिया! "

......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०८.०९.२०१४

Friday, 5 September 2014

♥♥रूह का सलाम..♥♥


♥♥♥♥♥♥♥रूह का सलाम..♥♥♥♥♥♥♥♥
कोरे कागज़ पे तुम्हारा ही नाम लिखता हूँ!
तेरे सजदे में सुबह और शाम लिखता हूँ!
तेरी सूरत में मुझे प्यार, वफ़ा दिखती है,
इसीलिए रूह का तुझको सलाम लिखता हूँ!

देखकर तुझको मेरे दिल को चैन मिलता है!
तेरे होने से ही खुशियों का, फूल खिलता है!

तुझको कुदरत का हसीं एक ईनाम लिखता हूँ!
कोरे कागज़ पे तुम्हारा ही नाम लिखता हूँ....

छोटी छोटी तेरी ऊँगली को, थाम लूंगा मैं!
बिना फेरों के तुम्हें अपना मान लूंगा मैं!
"देव" तुमने ही सिखाई है मोहब्बत मुझको,
अपने होठों से सदा तेरा नाम लूंगा मैं!

तेरे दीदार से उम्मीद, अदब मिलता है!
तेरे होने से ही जीवन का, सबब मिलता है!

दूर होकर भी मैं तुझको अमाम* लिखता हूँ!
कोरे कागज़ पे तुम्हारा ही नाम लिखता हूँ! "

............चेतन रामकिशन "देव"….........
दिनांक-०६.०९. २०१४  

अमाम*----प्रत्यक्ष

♥ गुरु का कद...♥

♥♥♥♥ गुरु का कद...♥♥♥♥♥
धर्म और जात से परे हैं गुरु!
भेद की बात से परे हैं गुरु!
एक से हैं गुरु की आँख में हम,
ऐसी सौगात से भरे हैं गुरु!

साल भर, उम्र भर नमन उनको!
सौंप दें आओ बाल मन उनको!
प्रेम की रौली से तिलक जड़कर,
देते सम्मान का सुमन उनको!

अपने आँचल में दुख मेरा लेकर,
मुझको खुशियों से आ भरें हैं गुरु!

धर्म और जात से परे हैं गुरु....


आज गुरुओं का मान करना है!
उनको झुककर प्रणाम करना है!
"देव" गुरुओं से ज्ञान को पाकर,
हमकों दुनिया में नाम करना है!

बिन गुरु के नहीं दिखे मंजिल,
लक्ष्य की सोच से भरे हैं गुरु!

धर्म और जात से परे हैं गुरु....

धर्म और जात से परे हैं गुरु!
भेद की बात से परे हैं गुरु! "

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-०५.०९. २०१४  

Thursday, 4 September 2014

♥♥शब्द की संगिनी..♥♥

♥♥♥♥शब्द की संगिनी..♥♥♥♥♥
शब्द की संगिनी बने कविता!
रूह की रोशनी बने कविता!
भाव मन पर असर करें ऐसे,
प्रेम की भाषिनी बने कविता!

काव्य होगा तो मन धवल होगा!
मन में एहसास का कमल होगा!
शब्द गूंजेंगे आसमानों में,
ओज भावों में फिर नवल होगा! 

रंग फूलों का है खिल गया है सुनो,
नम्रता, नंदिनी बने कविता!

शब्द की संगिनी बने कविता....

काव्य होगा तो गीत भी होंगे!
प्रेम होगा तो मीत भी होंगे!
"देव" ये शब्द तो हैं सतरंगी,
लाल, सुरमई ये पीत भी होंगे!

भावनाओं की बांसुरी की धुन,
आस्था की नमी बने कविता!

शब्द की संगिनी बने कविता,
रूह की रोशनी बने कविता! "

.......चेतन रामकिशन "देव"…...
दिनांक-०४.०९. २०१४