Friday, 28 November 2014

♥♥माँ की एक छुअन...♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥माँ की एक छुअन...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है। 
कष्ट में संतान हो तो माँ का, चैन सुकूं खोने लगता है। 
माँ तो माँ है संतानों की, सूरत में दुनिया को देखे,
नींद तभी आती है माँ को, जब बच्चा सोने लगता है। 

माँ की ममता इतनी व्यापक, लाखों सागर भर जाते हैं। 
माँ को खुशियां मिलती हैं जब, बच्चे अच्छा कर जाते हैं। 

माँ की एक छुअन भर से ही, दर्द दूर होने लगता है।  
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है। 

माँ कविता जैसी कोमल है, माँ गीतों जैसी प्यारी है। 
माँ लेखन की खुशबू में है, माँ उपवन है, फुलवारी है। 
माँ गौरी हो, या काली हो, फ़र्क़ नहीं पड़ता है इससे,
माँ की ममता धवल चांदनी, माँ की ममता मनोहारी है। 

माँ अपनी संतान के आंसू, बिना झिझक के पीना चाहे। 
माँ बच्चों की खुशियों में ही, अपना जीवन जीना चाहे। 

माँ खुश होती है जब बच्चा, ख्वाबों का बोने लगता है। 
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है। 

माँ मिथ्या के अनुसरण का, ज्ञान नहीं बच्चों को देती। 
माँ ईर्ष्या का, द्वेष का किंचित, दान नहीं बच्चों को देती। 
"देव " जहाँ में माँ से सुन्दर, कोई छवि नहीं हो सकती,
माँ भूले दुख का विष का, पान नहीं बच्चों को देती। 

माँ की आँखों में बच्चों की, सूरत हर पल ही रहती है। 
माँ को हो सम्मान सदा ही, सारी कुदरत ये कहती है। 

माँ की ऐसी ममता से तो, ज़हर-मधु होने लगता है। 
संतानों की देख के पीड़ा, माँ का दिल रोने लगता है। "


"
माँ- शब्दकोष के सभी शब्द जो प्रसंशा के लिए, सम्मान के लिए, अपनत्व के प्रयुक्त होते हों, वे समूचे शब्द माँ की ममता में निहित होते हैं, माँ के ऐसे व्यापक स्वरूप को नमन। "

" मेरी ये रचना मेरी दोनों माताओं कमला देवी जी एवं प्रेमलता जी को सादर समर्पित। "

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- २९.११.२०१४ 

" "




Wednesday, 26 November 2014

♥♥♥मोम...♥♥♥♥



♥♥♥♥♥♥♥♥मोम...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब पत्थर को मोम बनाया जाता है। 
नफ़रत का हर राग भुलाया जाता है। 

हर ख़्वाहिश पूरी न होती दुनिया में,
कभी कभी खुद को समझाया जाता है। 

ऊंच नीच, दौलत की बातें दूर रहें,
दिल से दिल का मेल कराया जाता है। 

अपनी कमियां भी आँखों में आ जायें,
जब दर्पण खुद को दिखलाया जाता है। 

खुशियां आतीं घर की चोखट पे खुलकर,
जब बिटिया को भी मुस्काया जाता है। 

एक दिन देखो नज़र जहां की पड़ जाये,
प्यार को बेशक लाख छुपाया जाता है। 

"देव" उन्हें भी कद्र दोस्ती की होगी,
आज भले दुश्मन बतलाया जाता है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२६.११.२०१४

Tuesday, 25 November 2014

♥♥मेरा मुझमें क्या...♥♥

♥♥♥♥मेरा मुझमें क्या...♥♥♥♥
तुमसे मिलने जुलने का मन। 
साथ तुम्हारे चलने का मन। 
तेरे उजाले की खातिर अब, 
दीपक बनकर जलने का मन। 

जब से तुमसे प्रेम हुआ है,
मेरा मुझमें शेष नहीं कुछ। 
तुमने कोमलता सिखलाई,
अब मन में आवेश नहीं कुछ। 

जो तेरे माकूल हो वैसे,
तेरी ख़ातिर ढ़लने का मन। 
तेरे उजाले की खातिर अब, 
दीपक बनकर जलने का मन। 

जब से तुम भावों में आये,
कविताओं के फूल खिले हैं। 
शब्द भी रहते "देव" कलम में,
एहसासों को रंग मिले हैं। 

तेरे अधरों की नरमी को,
हिम से जल में घुलने का मन। 
तेरे उजाले की खातिर अब, 
दीपक बनकर जलने का मन। "

......चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक-२६.११.२०१४ 

♥♥♥फासले...♥♥♥


♥♥♥♥♥फासले...♥♥♥♥♥♥
फासले पास में नहीं रखना। 
दर्द, एहसास में नहीं रखना। 

मैं पुकारूँ जो और तुम न मिलो,
खुद को वनवास में नहीं रखना।  

चाँद हो तुम, मगर कभी खुद को,
दूर आकाश में नहीं रखना। 

जो मेरा दिल कहे वो दे दो तुम,
बात कोई काश में नहीं रखना। 

लिखो, चिपकाओ और मुझे भेजो,
ख़त को अवकाश में नहीं रखना। 

पत्तियां, फूल जो तरसते रहें,
सूखा मधुमास में नही रखना। 

"देव " देरी हो पर नहीं दूरी,
खुद को प्रवास में नहीं रखना। "

......चेतन रामकिशन "देव"……...
दिनांक-२५.११.२०१४

Sunday, 23 November 2014

♥♥♥हे! कुदरत...♥♥♥


♥♥♥♥♥हे! कुदरत...♥♥♥♥♥
माँ की गोद में रखा सर हो। 
भरा ख़ुशी से सबका घर हो। 
हिंसा, नफरत, शूल रहें न,
भूखा कोई, न बेघर हो। 

हे! कुदरत तुमसे विनती है,
दिल लोगों का साफ़ करो तुम। 
न्याय की खातिर भटक रहा जो,
उसके संग इन्साफ करो तुम। 
ये क्या तुम आँखों को मूंदे,
लाचारों पर जुल्म देखतीं।
जो लोगों के हक़ को लूटें,
कभी न उनको माफ़ करो तुम। 

बिन रोटी के मरे न मुफ़लिस,
और न जल में घुल जहर हो। 
हिंसा, नफरत, शूल रहें न,
भूखा कोई, न बेघर हो...

सही कार्य का अवलोकन कर,
उसको आगे करते रहना। 
हे! कुदरत तुम शक्तिशाली,
पापी जन का बोझ न सहना। 
"देव" की तरह लोग अनेकों,
विनती तुमसे ये करते हैं,
नहीं तनिक भी निर्दोषों के,
घर को बिजली बनकर ढहना। 

इस जग को तुम ऐसा कर दो,
घर घर में बहता मधुकर हो। 
हिंसा, नफरत, शूल रहें न,
भूखा कोई, न बेघर हो। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२४ .११.२०१४


Saturday, 22 November 2014

♥♥मिथ्या सौगंध...♥♥


♥♥♥मिथ्या सौगंध...♥♥♥
फूलों में भी गंध नहीं है। 
अब सच्ची सौगंध नहीं है। 
क्षण भर में सब अलग हो रहे,
रूहानी सम्बन्ध नहीं है। 

चटक रहे दिल शीशे जैसे,
भावुकता का मान नहीं है। 
दर्द किसी को कितना होगा,
मानो उनको ज्ञान नहीं है। 
परदे पर नाटक का मंचन,
करके पात्र बदल जाते हैं,
कसमें, वादे, प्यार, वफ़ा का,
अब कोई स्थान नहीं है। 

खेल रहें हैं लोग दिलों से,
कोई प्रतिबन्ध नहीं है। 
क्षण भर में सब अलग हो रहे,
रूहानी सम्बन्ध नहीं है...

नाम की नातेदारी रखना,
अब लोगों का नया नियम है। 
तोड़ के दिल वो सोच रहे हैं,
मानो कोई सही करम है। 
"देव" न जाने क्यों लोगों के,
हाथ जरा भी नहीं कांपते,
अब अपनायत नहीं रही है,
न ही मन में बचा रहम है। 

मारके दिल लावारिस छोड़ें,
कफ़न का भी प्रबंध नहीं है। 
 क्षण भर में सब अलग हो रहे,
रूहानी सम्बन्ध नहीं है। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-२३.११.२०१४ 

Wednesday, 19 November 2014

♥♥साथ ग़र तेरा...♥♥

♥♥♥♥♥साथ ग़र तेरा...♥♥♥♥♥
साथ ग़र तेरा मिल गया होता। 
प्यार का दीप जल गया होता। 

हौंसला तेरे प्यार का पाकर,
ग़म का पर्वत भी हिल गया होता। 

तू जो हाथों से अपने देती शिफ़ा,
मेरा हर घाव सिल गया होता। 

बीज उल्फ़त के रोंप देतीं अगर,
फूल चाहत का खिल गया होता। 

प्यार का मुझको ऐसा देते शहद,
मेरे दिल में जो घुल गया होता।    

रौशनी लेके तेरी रंगत की,
ये अँधेरा भी ढल गया होता। 

प्यार तक़दीर में नहीं शायद,
"देव" होता तो मिल गया होता। "

........चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक-१९.१०.२०१४

Monday, 17 November 2014

♥♥तेरी नज़दीकी...♥♥♥


♥♥♥♥♥तेरी नज़दीकी...♥♥♥♥♥♥
रात आकाश को छुपाने लगी। 
मुझको भी तेरी याद आने लगी। 

तेरी सूरत को और दमक देने,
चांदनी फिर जमीं पे आने लगी। 

तू जो आई जो मेरी देहरी पर,
दीप की लौ भी खिलखिलाने लगी। 

तेरी नज़दीकी का असर पाकर,
जिंदगी सारे ग़म भुलाने लगी। 

हर तरफ पर फूल खिल गए जबसे,
प्यार की दुनिया तू वसाने लगी। 

हर घड़ी तेरा ही तसुव्वर है,
रूह में जब से तू समाने लगी। 

"देव" सर मेरा गोद में रखकर,
प्यार से मुझको तू सुलाने लगी। "

........चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-१७.१०.२०१४ 

Saturday, 15 November 2014

♥♥♥♥क्षणभंगुर...♥♥♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥क्षणभंगुर...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्षणभंगुर है जोड़ दिलों का, पल में खंडित हो जाता है। 
सही मनुज भी निर्ममता से, जग में दंडित हो जाता है। 
वो जिसको एहसास नहीं हो, यहाँ प्रेम की भावुकता का,
वही यहाँ झूठे तथ्यों से, प्रेम का पंडित हो जाता है। 

प्रेम का अंकन मुखपृष्ठों पर, अंकित करना प्रेम नहीं है। 
बस अपने को श्रेष्ठ समझकर, सुरभित करना प्रेम नहीं है। 
प्रेम तो है एक भाव समर्पण, नहीं कोई ऊँचा न नीचा,
ऊपरी मन से, प्रेम पुष्प को, पुलकित करना प्रेम नहीं है। 

प्रेम नहीं वो जिसमें धन का, वंदन मंडित हो जाता है। 
क्षणभंगुर है जोड़ दिलों का, पल में खंडित हो जाता है... 

प्रेम विषय के संदर्भों में, सबकी अपनी परिभाषा है। 
वो उतना ही प्रेम में डूबे, जिसकी जितना जिज्ञासा है। 
"देव" यहाँ पर प्रेम को कोई, महज तनों का मिलन बताये,
और किसी की विश्लेषण में, प्रेम आत्मा की भाषा है। 

वो क्या जाने प्रेम को जिसका, मूल्य घमंडित हो जाता है। 
क्षणभंगुर है जोड़ दिलों का, पल में खंडित हो जाता है।  "

...................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-१६.१०.२०१४ 

Thursday, 13 November 2014

♥♥बाल श्रम की मज़बूरी...♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥बाल श्रम की मज़बूरी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
घरवालों के लालन पालन को, एक बच्चा श्रम करता है। 
बहन की शादी, दवा पिता की, घर के तम को कम करता है।
उसकी इच्छा भले नहीं हो, बालकपन में श्रम करने की,
पर चूल्हे की आग की खातिर, वो मेहनत का दम भरता है। 

सरकारें कहती हैं देखो, बाल श्रम पे रोक सही है। 
बच्चों का शोषण होता है, न खाता है, नहीं बही है। 
मैं भी इस सरकारी मत से सहमत हूँ पर ये कहता हूँ,
बिन पैसों के उस बच्चे के, घर में भूखी लहर रही है। 

क्या सरकारी जिम्मेदारी, बाल श्रम रुकवाने भर है। 
उस श्रमिक को मदद क्यों नहीं, जिसका भूखा प्यासा घर है। 

बाल श्रम रुकवाया जाये, पर पीड़ित का दुख हरकर के। 
बिना मदद के मर जायेंगे, रोगी बूढ़े उसके घर के। 

इसीलिए तो बाल श्रम की, वजह को पहले छांटा जाये। 
और फिर उनको प्यार वफ़ा के, खिले सुमन को बांटा जाये।   

बाल श्रम पे अंकुश का ये, सफल तभी प्रयास रहेगा। 
जब निर्धन को अन्न, दवा और खुशियों का एहसास रहेगा! "

......................चेतन रामकिशन "देव"…...................... 
दिनांक-१३.१०.२०१४

Monday, 10 November 2014

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मेरी तस्वीर में तेरा ही अक्स दिखता है।
एक लम्हे की जुदाई से भी दिल दुखता है।
बिन तुम्हे देखे मेरा दिल भी अधूरा मैं भी,
देख के तुझको कलम गीत नये लिखता है।

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥

...........चेतन रामकिशन "देव"…..........
दिनांक-१०.१०.२०१४

Sunday, 9 November 2014

♥♥♥तुम्हारा ख्वाब...♥♥♥


♥♥♥♥तुम्हारा ख्वाब...♥♥♥♥♥♥
रात भर ख्वाब मैं सजाता रहा। 
तेरा चेहरा ही याद आता रहा। 

जब हवाओं ने मेरा हाथ छुआ,
तेरा एहसास मुस्कुराता रहा। 

तुमने अल्फ़ाज़ प्यार के जो कहे,
हौले हौले वो गुनगुनाता रहा। 

चांदनी तुमने जबसे बरसाई,
स्याह में भी मैं जगमगाता रहा। 

तेरी सूरत की जब छुपी थी झलक,
बिखरी ज़ुल्फ़ों को मैँ हटाता रहा।

हुयी सुबह न देख ले कोई,
तेरी तस्वीर को छुपाता रहा। 

"देव" ये ख्वाब अब हक़ीक़त हो,
ये दुआ लेके सर झुकाता रहा। 

......चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक-१०.१०.२०१४





Friday, 7 November 2014

♥वेदना का जहर(मौन)..♥

♥♥♥♥♥♥♥♥वेदना का जहर(मौन)..♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मौन रहूँ तो कैसे मन में, शब्द कौंधने को आते हैं। 
हर्ष नहीं है पास हमारे, हम दुख की सरगम गाते हैं। 
पढ़ी किताबें जितनी अब तक, उनमे ये ही लिखा हुआ है,
दुख, पीड़ा के बाद में देखो, खुशियों वाले दिन आते हैं!

इसीलिए मैं यही सोचकर, अपने आंसू पी लेता हूँ। 
तन्हा तन्हा बहुत अकेला, होकर देखो जी लेता हूँ। 

बुरे समय में देखो अपने भी, राहों से बच जाते हैं। 
मौन रहूँ तो कैसे मन में, शब्द कौंधने को आते हैं... 

जिनको है अपमान की आदत, वो मेरा क्या मान करेंगे। 
नहीं मदद वो कर सकते हैं और न वो एहसान करेंगे। 
"देव" वो मुझको आरोपित कर, छप लें बेशक अख़बारों में,
लेकिन अपनी रूह के दुख का, वो कैसे अनुमान करेंगे। 

छोड़ दिया सब कहना सुनना, किसी से अब फरियाद नहीं है। 
उनसे अब क्या आस लगाऊँ, जिनको मेरी याद नहीं है। 

जहर वेदना का पीकर के, नींद में हम भी सो जाते हैं। 
मौन रहूँ तो कैसे मन में, शब्द कौंधने को आते हैं। "

.................चेतन रामकिशन "देव"……………..
दिनांक-०८.११.२०१४

Thursday, 6 November 2014

♥♥दिल के जज़्बात...♥


♥♥♥♥♥दिल के जज़्बात...♥♥♥♥♥
दिल के जज़्बात फिर जले क्यों हैं। 
हम सही होके भी छले क्यों हैं। 

वो तो कहते थे, प्यार मुझसे हुआ,
अजनबी बनके वो मिले क्यों हैं। 

मैं हूँ पत्थर सड़क का, चाँद हो तुम,
ख्वाब मिलने के फिर पले क्यों हैं। 

आदमी तुम हो, आदमी वो भी,
तीर, तलवार ये चले क्यों हैं। 

जिनसे जज्बात हैं उन्हें सौंपो,
होठ चुप होके, अब सिले क्यों हैं। 

पर्चियां तक तो हैं, किताबों में,
मेरे ख़त पांव के, तले क्यों हैं। 

"देव " रिश्तों का क़त्ल करके भी,
 सबकी नज़रों में वो भले क्यों हैं। "

.......चेतन रामकिशन "देव"………
दिनांक-०७ .११.२०१४ 

Tuesday, 4 November 2014

♥♥♥फैसला...♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥फैसला...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
एक तरफ़ा ही मुझे फैसला वो देके गया।
दर्द का मुझको यहाँ सिलसिला वो देके गया।

मैंने माँगा था सुकूं, उससे हथेली भर ही,
पर मुझे आंसुओं का जलजला वो देके गया।

मैं झुलसता ही रहा आग में ग़मों की यूँ,
न जरा भर भी मुझे होंसला वो देके गया।

पंख खोलूं तो बनें घाव मेरे दामन पर,
मुझको काँटों से भरा घोंसला वो देके गया।

"देव " हर रोज मुझे मारने की कैसी जुगत,
मौत का ऐसा मुझे, काफिला वो देके गया। "

............चेतन रामकिशन "देव"…...........
दिनांक-०५.११.२०१४ 

Sunday, 2 November 2014

♥ ♥चाँद पे घर....♥


♥♥♥♥♥चाँद पे घर....♥♥♥♥
गिरके संभलेंगे हमने ठाना है।
हमको मंजिल की ओर जाना है।

हार जाने से होंसला न डिगे,
चाँद पे हमको घर बनाना है।

बंदिगी, जिंदगी ये है जब तक,
जीत और हार को तो आना है।

अपने आपे से पहले सच बोलो,
रूह से अपनी क्या छुपाना है।

बाद मरके भी याद आयें जो,
नाम इतना हमें कमाना है।

क्या हुआ आज जो मिले कांटे,
कल में फूलों को खिलखिलाना है।

"देव" रोशन जहाँ ये हो जाये,
प्यार का दीप फिर जलाना है। "

......चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक- ०३.११.२०१४