Saturday, 31 December 2011


♥♥♥♥♥नया साल क्या देगा उनको....♥♥♥♥♥♥♥
भूख से पीड़ित तंगहाल है, नया साल क्या देगा उनको!
सर्दी जिनका बनी काल है, नया साल क्या देगा उनको!

जिनके तन पे हैं महंगे कपड़े, झूम रहे वो नए साल पे,
जिनके तन पे बस रुमाल है, नया साल क्या देगा उनको!

वो करते बारिश पैसों की, तरह तरह से जश्न मनायें,
भूख से जिनका बुरा हाल है, नया साल क्या देगा उनको!

शहर के धनवानों ने देखो, लाखों की मदिरा गटकी है,
जिनको पानी भी मुहाल है, नया साल क्या देगा उनको!

नए साल के नाम पे देखो, नशे में नंगे पांव थिरकते,
जिनके पैर की फटी खाल है, नया साल क्या देगा उनको!"


"
एक सवाल है अपने आप से,
नए साल से उनको क्या मिलेगा जिनका जीवन भूख, प्यास, बेरोजगारी, गरीबी,
जातिवाद, अस्पर्शता आदि के दंश को झेल रहा है?"
................
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--३१.१२.२०११



Tuesday, 27 December 2011

♥♥"ग़ालिब" को नमन♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥"ग़ालिब" को नमन♥♥♥♥♥♥♥♥
शब्दों के जादूगर "ग़ालिब" आपको मेरा सलाम!
युगों-युगों तक याद रहेगा, आपका ये शुभ नाम!

आपके शब्दों की ज्योति से मिटता है अँधियारा!
आपका लेखन मन मंदिर में करता है उजियारा!
यूँ तो और भी शायर-लेखक, पुस्तक में अंकित हैं,
मगर आपका काव्य कोष है, उन लोगों से न्यारा!

कोहिनूर हीरे सा चमके, आपका हर एक कलाम!
शब्दों के जादूगर "ग़ालिब" आपको मेरा सलाम.....

आपके शब्दों ने सिखलाया, सारे जग को प्यार!
आपके शब्दों ने सिखलाया, मिथ्या पर प्रहार!
शब्द हमारे बिल्कुल बौने, आपके कद के आगे,
आपके जैसा नहीं है कोई , जग में रचनाधार!

"देव" आपको करता "ग़ालिब",फिर सादर प्रणाम!
शब्दों के जादूगर "ग़ालिब" आपको मेरा सलाम!"

"शब्दों के जादूगर, महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब को आज उनके जन्मदिवस पर नमन!
अपने इन टूटे-फूटे शब्दों से उनकी शान में लिखा है हमने! हम उनके कद के सम्मुख कुछ भी लिखने की योग्यता नहीं रखते, बस उन्हें सम्मान देने के लिए हमने प्रयास भर किया है!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक----२७.१२.२०११

Monday, 26 December 2011

♥प्रेम-समर्पण♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्रेम-समर्पण♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
छवि तुम्हारे हमारे मन में, तुम्हारे मन में हमारी मूरत!
सदा ही जीवन के रास्ते पे, है हमको एक दूजे की जरुरत!

तुम्हारे बिन मैं सदा अधूरा, हमारे बिन तुम भी हो अधूरी!
सदा रखेंगे दिलों में चाहत, कभी ना आए जरा सी दूरी!
तुम्हारी खुश्बू से घर महकता, हमारी सांसें भी खिल रहीं हैं,
ना बन सके घर बड़ा तो क्या गम, दिलों में चाहत बड़ी जरुरी!

हमारा मन भी है साफ-सुथरा, तुम्हारा मन भी है खुबसूरत!
छवि तुम्हारे हमारे मन में, तुम्हारे मन में हमारी मूरत......

कभी मिले जो तुझे उदासी, तो हम तुम्हारी ख़ुशी बनेंगे!
तुम्हारी आंसू हमारी आँखों से धार बनकर सदा बहेंगे!
कभी जो हमको मिले निराशा, हमें तू अपना दुलार देना,
तुम्हारे मन का यकीन पाकर, दुखी पलों की चुभन सहेंगे!

तुम्हारा चेहरा हमे हंसी दे, तुम्हे हंसा दे हमारी सूरत!
छवि तुम्हारे हमारे मन में, तुम्हारे मन में हमारी मूरत......

जहाँ हो दोनों दिलों में चाहत, वहां मौहब्बत भी खिलखिलाए!
तभी तो रस्ते का एक पत्थर भी "देव" बनकर के जगमगाए!
न खुद को ऊँचा, न उनको नीचा, रखो न मन में विभेद कोई,
न ऐसे घर में पनपती नफरत, दीवारें तक भी ख़ुशी मनाए!

तुम्हारी आशा जुड़ी है हमसे, हमारी तुमसे जुड़ी है हसरत!
छवि तुम्हारे हमारे मन में, तुम्हारे मन में हमारी मूरत!"

"प्रेम, समर्पण का नाम है! जहाँ समर्पण के साथ प्रेम होता है, वहां
नफरत के लिए, अहम् के लिए, उंच-नीच के लिए कोई रिक्त स्थान नहीं शेष रहता!
प्रेम का वातावरण सजीव को हो तो प्रफुल्लित करता ही है, मगर इस प्रेम के प्रभाव से
घर की निर्जीव वस्तुयें भी जीती जागती लगती हैं!"

.........................अपनी अनमोल प्रेरणा को समर्पित रचना.......................
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-२७.१२.२०११

♥प्रेम का रोशन दीया बुझाना....♥

♥♥♥♥♥♥♥प्रेम का रोशन दीया बुझाना....♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्रेम की चाहत बड़ी सरल है, बहुत कठिन है प्रेम निभाना!
आज तो लगने लगता देखो, कुछ दिन में ही प्रेम पुराना!

जन्म-जन्म मिलने के वादे, एक पल में खंडित करते हैं!
अपने मतलब की ख्वाहिश में, प्रेम को ये दंडित करते हैं!

इन लोगों को आसां लगता, प्रेम का रोशन दीया बुझाना!
प्रेम की चाहत बड़ी सरल है, बहुत कठिन है प्रेम निभाना!"
-------------------चेतन रामकिशन "देव"-------------------------





Saturday, 24 December 2011

♥♥एक अलौकिक शक्ति♥♥


♥♥♥♥♥♥♥♥एक अलौकिक शक्ति♥♥♥♥♥♥♥♥
बड़ा दिवस प्रकट करता है, एक आलौकिक शक्ति!
आओ करें अब तन्मय होकर, हम प्रभु की भक्ति!

प्रभु का स्मरण करने से, मिट जाता अज्ञान!
प्रभु हमको सदा बताते, सत्य पथों का ज्ञान!
प्रभु प्रेषित करते हमको, प्रेम भाव की ज्योति,
प्रभु के चरणों में मिलता, मानव को उत्थान!

प्रभु के स्नेह से मिलती, तिमिर से हमको मुक्ति!
बड़ा दिवस प्रकट करता है, एक आलौकिक शक्ति.....

भिन्न-भिन्न हैं चित्र प्रभु के, एक मगर स्वरूप!
उनकी छाया से मिटती है, समस्याओं की धूप!
प्रभु की आँखों में हर जन, होता एक समान,
प्रभु को भाता केवल मन, न तन का रंग-रूप!

प्रभु हमको सिखलाते हैं, हर मुश्किल की युक्ति!
बड़ा दिवस प्रकट करता है, एक आलौकिक शक्ति.......

आओ करें अपने चिंतन में, हम प्रभु का वास!
आओ करें हम सत्य पथों पे, चलने का प्रयास!
प्रभु के पदचिन्हों पर जो हम ले जायें जीवन,
"देव" हमारे जीवन में भी, आ जाए उल्लास!

प्रभु का स्मरण करने से, मिले सरल सी मुक्ति!
बड़ा दिवस प्रकट करता है, एक आलौकिक शक्ति!"


"बड़ा दिन अर्थात प्रभु का दिवस! यूँ तो हर दिवस, हर रात, प्रभु की होती है, किन्तु जिस दिन
अलौकिक शक्तियाँ जन्मती हैं वह दिन निश्चित रूप से अनमोल होता है! आज अपने लघु शब्दों से प्रभु के लिए शब्द जोड़े! आप सभी को प्रभु सफलता, समरसता, सम्रद्धि दे, मेरी यही कामना है!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- २५.१२.२०११
रचना प्रेरणा-







                                                                                                                  
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥यादें♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
प्यार आपका याद रहेगा, साथ आपकी बातें होंगी!
सपनो में दीदार करूँ जो, ऐसी दिलकश रातें होंगी!

आज भीड़ में चले गए पर, कभी तो ऐसा पल आएगा!
मेरी याद का दिया तुम्हारे, मन मंदिर में जल जायेगा!

उस पल आपकी आँखों से भी, आंसू की बरसातें होंगी!
प्यार आपका याद रहेगा, साथ आपकी बातें होंगी!"
-----------------चेतन रामकिशन "देव".............................
♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥किसान दिवस ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
नमन करें आओ कृषक को, उनको दें आभार!
ह्रदय से उनकी करें वंदना, उनको देकर प्यार!

कृषक तो अपने जीवन भर, हमको दे हरियाली!
किन्तु कृषक के घर में तो, हर पल है बदहाली!
नेताओं ने नहीं दिया है, आज भी कृषक-तोहफा,
किन्तु खुद के जन्मदिवस पर, ये करते दिवाली!

यदि न अन्न उगाये कृषक, मिट जाए बाजार!
नमन करें आओ कृषक को, उनको दें आभार!"

"आज किसान दिवस पर किसानों को नमन करें!
किसान इस देश को सम्रद्धि देने में पहले पायदान पर है,
किन्तु सरकारों की खराब नीति और सरकार में बढ़ते जा रहे पूंजीवादियों
के अस्तित्व से किसान बदहाल है! देश के कृषि मंत्री की परिजनों के नाम से अनेको मिलें हैं!
क्या उम्मीद रखी जा सकती है कि, ऐसे लोग कृषक हित में सोचेंगे!

चेतन रामकिशन "देव"

दिनांक----२३.१२.२०११

Wednesday, 21 December 2011


♪♫•*¨*•.¸¸❤¸¸❤¸¸.•*♪♫•*¨*•माँ.¸¸❤¸¸.*•♫♪❤¸*•♫¸¸❤¸¸.*•♫♪❤¸*•♫
सुमन की खुश्बू से घर महकता, मनों में आशाओं की किरण है!
कभी न उस घर में सूनापन हो, वो जिन घरों में माँ के चरण हैं!

चलो के माँ के सुनहरे आंचल में रखके मस्तक दुलार पायें!
किसी खुदा की ना हो जरुरत, यदि जो माँ का दीदार पायें!

आशीष माँ का हमारे संग में, सदा कवच जैसा आवरण हैं!
कभी न उस घर में सूनापन हो, वो जिन घरों में माँ के चरण हैं!"


•♫♪"*♪♫•*¨*•.¸"❤¸•♫♪"*♪♫•.¸"❤¸•♫♪"*♪♫¸¸❤¸¸.*•♫♪❤¸*•♫
----माँ, कोई पर्याय नहीं! कोई तुलना नहीं! अतुलनीय छवि! माँ को नमन!"
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक---२२.१२.११

Monday, 19 December 2011

♥ग्राम देवता की पीड़ा ♥♥


♥♥♥♥♥♥♥ग्राम देवता की पीड़ा ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ग्राम देवता की तंगी की, कोई ना सुने पुकार!
खाद,बीज का दाम बढ़ाए, देश की हर सरकार!
सबका पोषण करने वाला, खुद रहता है भूखा,
ग्राम देवता की आँखों से, बहे अश्क की धार!

शरद ऋतू की सर्दी हो या मई- जून की ज्वाला!
कभी ना थककर घर में बैठे, खेतों का रखवाला!

फसलों की कीमत भी देखो, तय करती सरकार!
ग्राम देवता की तंगी की, कोई ना सुने पुकार.....

ग्राम देवता पर होते हैं, देश में अत्याचार!
ग्राम देवता की भूमि को, लूट रही सरकार!
ग्राम देवता की पीड़ा का उड़ता है उपहास,
ग्राम देवता पर पड़ती हैं, लाठी की बौछार!

ग्राम देवता हमको देता पोषण का सामान!
सरकारें करती हैं उसका केवल ये अपमान!

ग्राम देवता पर होता है निस दिन ही प्रहार!
ग्राम देवता की तंगी की, कोई ना सुने पुकार......

सरकारों अब करना छोड़ो कृषक का अपमान!
एक दिन इनकी शक्ति तुमको कर देगी वीरान!
इनकी ही मेहनत भरती है देश के कोषागार,
बिन कृषक के बिक जाएगा पल में हिंदुस्तान! 

ग्राम देवता के बिन सूनी इस भारत की शान!
कृषक से ही होती जग में भारत की पहचान! 

मरते दम तक उतर सके न, कृषक का उपकार!
ग्राम देवता की तंगी की, कोई ना सुने पुकार!"

" जीवन के लिए मिलने वाली उर्जा हेतु, उपयोग में लाये जाने
खाद्यान का निर्माता कृषक( ग्राम-देवता) इस देश में बेहद अपेक्षित जीवन जीने को विवश है!  देश के राजकोष में सबसे ज्यादा धन कृषि से आता है किन्तु ये सरकारें उस धन का चोथाई हिस्सा तक कृषि और कृषक के हित में नहीं लगातीं! वास्तव में ग्राम देवता सिसक रहा है!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--१९.१२.२०११



Sunday, 18 December 2011

♪♫•*¨*•.¸¸❤¸¸.*•शहीदों को नमन¸¸❤¸¸.•*♪♫•*¨*•.¸¸❤¸¸.
नमी हवा में है आंसुओं की, ये आसमां भी बरस रहा है!
तुम्हारे जाने के बाद वीरों, ये देश अब भी तरस रहा है!

सलाम अशफाक तुमको मेरा,छवि तुम्हारी वसी नयन में!
दोबारा आओ धरा पे अपनी,  बहुत जरुरत हुई वतन में!

सफेदपोशों के हाथ देखो, ये अपना भारत झुलस रहा है!
नमी हवा में है आंसुओं की, ये आसमां भी बरस रहा है!

"बलिदान दिवस पर शहीदों को नमन करते हुए, "शुभ-दिन"
•♫♪"*♪♫•*¨*•.¸¸चेतन रामकिशन "देव"❤¸•♫♪"*♪♫•*•♫♪❤¸

Friday, 16 December 2011

❤¸¸.•*♪♫❤¸¸.•*♪♫❤¸¸.•*♪♫❤¸¸
प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!
प्रेम जहाँ पुष्पों की माला, हिंसा है त्रिशूल!

प्रेम नहीं तो मानव जीवन लगता है पाषाण,
प्रेम नहीं तो शब्द भी लगते हैं जहरीले वाण!

प्रेम नहीं तो माँ जननी की माटी लगती धूल!
प्रेम है कोमल रेशम जैसा, हिंसा तो है शूल!

---"शुभ-दिन"---चेतन रामकिशन "देव"---
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
आओ निकालें अपने मन से, मैले दुरित विचार!
जात धर्म से ऊपर उठकर करें मनुज से प्यार!

ईश्वर ने जब बिना भेद के दिया हमें ये जन्म!
हम आपस में क्यूँ फिर करते, भेदपूर्ण ये कर्म!

आओ गिरा दें जात-धर्म की स्वयंनिर्मित दीवार!
जात धर्म से ऊपर उठकर करें मनुज से प्यार!"
------"शुभ-दिन"--------चेतन रामकिशन "देव"--



  

Tuesday, 13 December 2011

♥♥आज के नेता ♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आज के नेता ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गंगा के तट पर जाकर के, जो पीते "किनले" का पानी,
ऐसे खद्दरधारी आखिर कैसे साफ करेंगे गंगा!

वो जिनको मतलब है खुद से, झोली जो भरते हैं अपनी,
उनके जाने देश बिके या बिक जाए ध्वज तिरंगा!

उनका मकसद सत्ता पाना, मौज उड़ाना, धूम मचाना,
इसकी खातिर फूट डालकर, जनता में करवाते दंगा!

उनके घर हैं महल सरीखे, उनका जीवन राजा जैसा,
वो क्या जाने निर्धनता को, वो क्या जाने भूखा-नंगा!"


" राजनीति, राज्य / देश के सञ्चालन की नीति अब व्यवसाय बनती जा रही है!
सफेदपोश लोग बस सत्ता के लालच में वो सब भी करने/ कराने से नहीं चूकते
जो देश, समाज और भाईचारे, अमन के हित में नहीं होता! तो आइये कुछ चिंतन करें!

चेतन रामकिशन "देव"
१३.१२.२०११



Monday, 12 December 2011

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥ 
कभी ना खोना सहनशीलता, संयम से रहना सीखो तुम!
करो झूठ का अंत मनों से,सच को सच कहना सीखो तुम!
जीवन का दुःख से भी नाता, फूलों की बस सेज नहीं है,
जैसे सुख को अपनाते हो, दुःख को भी सहना सीखो तुम!"
------------"शुभ-दिन"------चेतन रामकिशन "देव"------

Sunday, 11 December 2011

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन में न अभिमान के अंकुर उगाइए!
अपने से छोटों को भी गले से लगाइए!
जाने के बाद भी जो करे याद ये जहाँ,
तुम नम्रता के तेल से दीपक जलाइए!"
---"शुभ-दिन"----चेतन रामकिशन "देव"---

♥एक इन्सान तुम बनो ♥♥

♥♥♥♥♥♥♥एक इन्सान तुम बनो ♥♥♥♥♥♥♥
हिंदू न बनो तुम , न ही मुसलमान तुम बनो |
बनना ही है कुछ , तो नेक इंसान तुम बनो |
सिर्फ लड़ने - झगड़ने से जीवन नहीं साकार |
भरदो लबों में खुशी सबकी मुस्कान तुम बनो |

हिंसा में सिर्फ दर्द है , न देती ये दिल को सुकून |
रूह को करती छलनी , उतार देती आँखों में खून |

बस प्रेम और सदभावना की पहचान तुम बनो |
हिंदू न बनो तुम और न ही मुसलमान तुम बनो |

आपस में बैर करने से, हमें कहाँ कुछ है मिलेगा |
नफरत भरेगी दिलो में , प्यार तो बढ़ नहीं सकेगा |
आने वाली नस्लों को, हम ये तोहफा क्यूँ दे जाएँ |
आओ मिलकर आज ही सुन्दर एक जहां बनाये |

हिंसा आँखों में एक - दूजे के , भर देता बस लहू |
जब प्रेम ही है जहां में तो इसकी पहचान तुम बनो |

मानव की सभ्यता का सम्मान तुम बनो |
हिन्दू ना बनो तुम और ना मुसलमान तुम बनो!"

"तो आइये नेक इन्सान बने, इंसानियत का धर्म हर एक धर्म से ऊँचा है! एक दूजे को
स्नेह और सद्भाव के साथ सम्मान देंगे तो, मनुज और मनुज के बीच मजहब की दीवार कड़ी होगी!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- ११.१२.२०११                                 साभार- मीनाक्षी जी!

Saturday, 10 December 2011

♥♥♥♥♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
कोहरा हो कितना भी गहरा, मंजिल से न नजर हटाना!
कभी ह्रदय ना छोटा करना, आँखों से ना नीर बहाना!
शस्त्रों के प्रहार से ज्यादा, है शब्दों की मारक छमता,
हो जाए जो ह्रदय छलनी , ऐसे ना मुख-तीर चलाना!"
----------"शुभ-दिन"------चेतन रामकिशन "देव"-----

Sunday, 4 December 2011

""♥♥♥♥♥♥देव आनंद को नमन ♥♥♥♥♥♥♥♥
कभी बने वो "राजू गाइड", कभी बने "नादान"!
कभी बताया हमे उन्होंने , "जोनी मेरा नाम"!

उनके अभिनय में दिखती थी सच्चाई की छाया!
कभी रुलाया भावुकता से, हमको कभी हंसाया!
कभी प्रेम में सखी को ढूंढा, कभी विरह ही पीड़ा,
मन में दीप जले आशा का, ऐसा गीत सुनाया!

अभिनय के ऐसे प्रहरी का, आज हुआ अवसान!
युगों युगों तक याद रहेगा, महानायक का नाम!"


"महानायक देव आनंद जी आज हम सबके के बीच नहीं रहे!
आज वो देह रूप से हमारे साथ नहीं है पर
उनकी स्मृति सदा साथ रहेगी! नमन उन्हें!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक--०४.१२.२०११

Saturday, 3 December 2011

♥विकलांगो को नमन ♥♥


"♥♥♥♥♥♥विकलांगो को नमन ♥♥♥♥♥♥♥♥
हैं बेशक अंग उनके भंग, पर इन्सान हैं वो भी!
लहू भी लाल है उनका, मनुज पहचान हैं वो भी!
करो उपहास न इनका, बनो सहयोगी तुम इनके,
नहीं हैं जानवर कोई, मनुज संतान हैं वो भी!"

....राष्ट्रीय विकलांग दिवस पर

ये पंक्तियाँ सभी विकलांग बंधुओं को समर्पित करता हूँ! विकलांग नहीं चाहता की उसकी वंदना हो,
पर वो नहीं चाहता की उसका उपहास हो! तो आइये विकलांग जनों का भी सम्मान करें!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक---०३.१२.२०१२


Friday, 2 December 2011

♥दिल की कोई बात लिखें ♥♥

"♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल की कोई बात लिखें ♥♥♥♥♥♥♥♥
कलम उठाकर अपने मन की, दिल की कोई बात लिखें!
कभी अमावस का गहरापन , कभी चांदनी रात लिखें!

कभी नदी की कल-कल वाणी, कभी हवा में बहती खुश्बू,
कभी गगन में उड़ते पंछी, सुन्दर ये सौगात लिखें!

कभी सुखों की परिभाषा हो, पीड़ा से संघर्ष कभी,
कभी किसी के विरह की पीड़ा, कभी किसी का साथ लिखें!

एक हैं मानव, एक लहू है, और सभी को मौत बनी,
हिन्दू- मुस्लिम कोई नहीं है, बस ये मानव-जात लिखें!

कलम डिगे न, कलम रुके न, अवसर चाहें जैसे भी हों,
सच का लेखन सदा करें हम, सच्चाई की बात लिखें!"

..चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक----०२.१२.२०११




Thursday, 1 December 2011

♥♥तुम्हारी छवि ♥♥♥

"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥तुम्हारी छवि ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
छवि तुम्हारी है इतनी सुन्दर, के जैसे खिलता सुमन हो कोई!
तुम्हारा मन है विशाल इतना, के जैसे अम्बर-गगन हो कोई!
नयन तुम्हारे हैं इतने प्यारे, के उनकी उपमा क्या कर सकूँ मैं,
तुम्हारी बोली है इतनी प्यारी, के कोकिला को जलन हो कोई!"

..................चेतन रामकिशन "देव"..............................


Wednesday, 30 November 2011

♥♥कलम हुआ खामोश♥♥


"♥♥♥♥♥♥♥♥कलम हुआ खामोश♥♥♥♥♥♥♥
काल ने तोड़ी साँस की डोरी, कलम हुआ खामोश!
ये सुनकर के सजल हुआ है , शब्द का हर एक कोष!

ज्ञानपीठ की रहीं विजेता, इंदिरा जिनका नाम!
सदा ही प्रेषित किया उन्होंने, मानवता का ज्ञान!
अपने ओजस्वी लेखन से, दर्पण हमे दिखाया,
देह से जीवित भले न हों वो, रहेगा जीवित नाम!

इतनी जल्दी चली गईं वो, होता है अफ़सोस!
काल ने तोड़ी साँस की डोरी, कलम हुआ खामोश"

"डॉ. इंदिरा गोस्वामी जी ( ज्ञानपीठ पुरुस्कार विजेता) का आज देहांत हो गया! शब्दों का एक बहुत बड़ा प्रेमी हमसे,  देह रूप से बहुत दूर चला गया! उनके शब्द इस संसार में स्वर्ण की तरह जगमग होते रहेंगे! क्यूंकि अनमोल शक्तियाँ कभी मृत नहीं होती हैं!===उन्हें नमन- चेतन रामकिशन "देव"

"साभार- जनाब खुर्शीद हयात जी!

♥♥मगर गरीबी सहन हो कब तक.

"♥♥♥♥♥♥♥♥♥मगर गरीबी सहन हो कब तक... ♥♥♥♥♥♥
तरस रहा है गरीबी में वो, है भूख से उसका पेट खाली!
हमारे नेता घरों में अपने, मना रहे हैं मगर दिवाली!
हजार खूनों के दोषियों को, यहाँ पे फांसी नहीं मिली है
महज तमाचा ही जड़ने वाला, बना दिया है बड़ा मवाली!

सही है ये था गलत तरीका, मगर गरीबी सहन हो कब तक!
अमीर नेता बिछायें मखमल, मगर गरीबी दहन हो कब तक!

हमारे नेता नहीं समझते, गरीब लोगों की तंगहाली!
तरस रहा है गरीबी में वो, है भूख से उसका पेट खाली........

नहीं सुनेंगे यदि जो नेता, तो जनता कब तक शिथिल रहेगी!
कभी तो उसके लहू की धारा, रगों में तपकर उबल पड़ेगी!
चलो हमारे वतन को छोड़ा, किया है अरसे से राज तुमने,
सियासियों को पकड़ पकड़ के, करोरों जनता यही कहेगी!

सही है ये था गलत तरीका, मगर ये पीड़ा सहन हो कब तक!
महज ही ३२ रूपये में आखिर, ये जिंदगानी वहन हो कब तक!

सफेदपोशों के दिन हैं उजले, है रात उनकी बड़ी निराली!
तरस रहा है गरीबी में वो, है भूख से उसका पेट खाली......

अभी समय है बदल लो अपनी, ये राजनीति गलत दिशा की!
ये झोलियाँ बस भरो न अपनी, कभी तो देखो दुखी दशा भी!
नहीं जो बदले अभी भी जो तुम, ये "देव" जीवन नहीं चलेगा,
नहीं दिवस हों तुम्हारे उजले, तिमिर में डूबेगी ये निशा भी!

सही है ये था गलत तरीका, मगर ये जिन्दा जलन हो कब तक!
ये आंख कब तक गिरायें आंसू, दिलों में ऐसी दुखन हो कब तक!

सफेदपोशों के दिन हैं उजले, है रात उनकी बड़ी निराली!
तरस रहा है गरीबी में वो, है भूख से उसका पेट खाली!"


"राज्य के सञ्चालन की नीति राजनीति को, सत्ता को जब जब अपने कुल/ अपनी बपौती समझा जाता है तो जनता की रगों का खून भी गरम होने लगता है! राजनेतिक लोगों को चिंतन करना चाहिए देश हित में! आखिर जनता क्या चाहती है? सरकारी धन को लूटना, खाना, और ऐश करना राजनीति नहीं!----

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक---३०.११.२०११

Tuesday, 29 November 2011

♥♥अंतिम विरह की पीड़ा ♥♥♥♥♥

"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥अंतिम विरह की पीड़ा ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते!
हमारे आंसू बिलख बिलख कर, तुम्हें बुलाते, तुम्हें बुलाते!
हमारी आँखों के नीचे देखो, पड़े हैं गहरे निशान काले,
बिना तुम्हारे हमें सनम अब, ख़ुशी के पल भी नहीं सुहाते!

खुदा भी जाने क्यूँ ले गए हैं, हमारे घर से तुम्हें बुलाकर!
खुदा से पूछो जियूं मैं कैसे, तुम्हें भुलाकर, तुम्हें भुलाकर!

तुम्हारे बिन तो ये आईने भी, ख़ुशी की सूरत नहीं दिखाते!
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते......

क्यूँ इतना कम था तुम्हारा जीवन, हमे अधूरा क्यूँ कर गए हो!
हमारे जीवन के पहलुओं पर, क्यूँ याद बनके बिखर गए हो!
कोई भी रस्ता नहीं है दिखता, जो पीछे पीछे मैं तेरे आऊ,
न लौटकर आओगे कभी तुम, क्यूँ इतने लम्बे सफ़र गए हो!

खुदा भी जाने क्यूँ ले गए हैं, हमारे घर से तुम्हें बुलाकर!
हमारी आँखों को नीर देकर, हमे रुलाकर, हमे रुलाकर!

तुम्हारे बिन तो हँसी ठहाके, हमारे मन को नहीं हँसाते!
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते......

खुदा हमारी सुनो जरो तुम, सफ़र में तन्हा किया करो ना!
नहीं है कटती उम्र ये तन्हा, किसी को विरहा दिया करो ना!
ये "देव" कितना हुआ है तन्हा, जरो तो सोचो तड़प हमारी,
जुदाई के पल नहीं सुहाते, जुदा किसी को किया करो ना!

खुदा भी जाने क्यूँ ले गए हैं, हमारे घर से तुम्हें बुलाकर!
खुदा से पूछो जियूं मैं कैसे, तुम्हें भुलाकर, तुम्हें भुलाकर!

तुम्हारे बिन तो पड़ोसियों के, वो नन्हें बच्चे नहीं चिढाते!
विरह के बेला नहीं है कटती, मिलन के सपने बड़े सताते!"

" किसी के जीवन से किसी से चले जाने से जीवन का पक्ष निश्चित रूप से प्रभावित
होता है! किसी के असमय चले जाने से होने वाली पीड़ा बड़ा सताती है! उसी पीड़ा को अपने शब्दों में उकेरने का छोटा सा प्रयास किया है! www.chetankavi.blogspot.com

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-- २९.११.२०११

Monday, 28 November 2011

♥आंसुओं की फुहार कर के♥♥


"♥♥♥♥♥♥♥♥आंसुओं की फुहार कर के♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
किया है तन्हा हमें उन्होंने, हमारी उल्फत को मार कर के!
हमे रुलाके चले गए वो, भुला दिया हमको प्यार कर के!
कहाँ गईं वो कसम वफ़ा की, मिलन के वादे कहाँ गए हैं,
चले गए हैं यहाँ से हंसकर, वो आंसुओं की फुहार कर के!"
                                                                        ..........चेतन रामकिशन "देव"....

♥♥दुःख( सुख की बेला) ♥♥

"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दुःख( सुख की बेला) ♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा!
कोई तुम्हारे पथों से कंटक, नहीं चुनेगा, नहीं चुनेगा!
न टूटना तुम दुखों से अपने, कभी तो सुख का सवेरा होगा,
कोई तुम्हारे नयन के सपने, नहीं बुनेगा, नहीं बुनेगा!

ये जिंदगी है ही नाम इसका, दुखों की बेला, सुखों का सावन!
दुखों से डरकर नहीं रहो तुम, कभी तो सुख का मिलेगा यौवन!

वही संभल कर है आगे बढ़ता, जो खाके ठोकर कभी गिरेगा!
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा......

कभी है बेकारी की तड़प तो, कभी मोहब्बत हमे रुलाती!
कभी पराजय सताए हमको, कभी गरीबी हमे सताती!
कभी गगन में भी उड़ता जीवन, कभी जमीं की है धूल मिलती,
ये जिंदगी है ही नाम इसका, कभी गिराती, कभी उठाती!

तपन में दुःख की नहीं जलो तुम, ख़ुशी भी तुमको करार देगी!
तुम्हारे चेहरे के कालेपन को, ये जिंदगी ही निखार देगी!

उसी का जीवन बढेगा आगे, जो जिंदगी से नहीं डरेगा!
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा......

ये जिंदगी है ही नाम इसका, हमेशा इसमें ख़ुशी नहीं है!
मगर ये मानव की जिंदगानी, यूँ ही किसी को मिली नहीं है!
दुखों के डर से नहीं कहो तुम, है "देव" हमको दिला दे मुक्ति,
किसी के मुक्ति भी मांगने से, किसी को मुक्ति मिली नहीं है!

तो जिंदगी जब है काटनी तो, चलो के हिम्मत से हम जियेंगे!
नहीं दुखों से डरेंगे हम तो, हम अपने आंसू स्वयं पियेंगे!

वही रहेगा हमेशा जिन्दा, जो अपने मन से नहीं मरेगा!
ह्रदय की पीड़ा सहन करो तुम, कोई तुम्हारी नहीं सुनेगा!"

" पीड़ा, से मन को वेदना अपर मिलती है किन्तु ये जीवन अनवरत चलने का नाम है! हमे पीड़ा से उर्जा प्राप्त करनी होगी! हमे खुद को सहनशील बनाना होगा! तभी हम जीवन को संघर्ष के साथ जी सकेंगे! तो आइये पीड़ा को सहन करने के लिए सहनशीलता को उन्नत करें! 
चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- २८.११.२०११ 

Wednesday, 23 November 2011

♥निराशा( असफलता की जननी)♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥निराशा( असफलता की जननी)♥♥♥♥♥♥♥♥♥
निराश होकर के जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सफलता!
ये जिंदगी है ही नाम इसका, कभी विषमता, कभी सरलता! 
ना दोष दो तुम खुदा को अपने, करो तो मेहनत सही दिशा में,
बिना कर्म के चरागे-किस्मत, उम्र में पूरी कभी ना जलता!

निराश रहने से तो हमेशा, विचार मैले ही बन सकेंगे!
सदा डिगेंगे पथों से अपने, नहीं निशाने पे ठन सकेंगे!

निराश भावों से जिंदगी के ग़मों का मौसम नहीं बदलता!
निराश होकर के जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सफलता.......

निराश होना नहीं सुहाता, ख़ुशी के पल भी नहीं दमकते!
निराश भावों के इस तिमिर में, हँसी के तारे नहीं चमकते!
निराश होके तो जिंदगी में, सदा ही कांटे मिलेंगे तुमको,
निराश भावों के बागवां में, ख़ुशी के गुलशन नहीं महकते!

निराश रहने से तो हमेशा, विचार मैले ही बन सकेंगे!
रहेंगे हाथों पे हाथ रखकर, नहीं हमारे कदम बढ़ेंगे!

निराश शब्दों से जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सबलता!
निराश होकर के जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सफलता.......

चलो के बदलें मनन का अपने, मनों में आशाओं को वसायें!
हमे मिलेगी सफलता सच में, सही दिशा में कदम बढायें!
निराशा भावों से "देव" जीवन सदा ही लगता है बोझ जैसा,
मनों में साहस भरें चलो हम, विपत्ति में भी हम मुस्कुरायें!

निराशा भावों से तो हमेशा, विचार मैले ही बन सकेंगे!
रहेगी भूमि सदा ही बंजर, जमीं में अंकुर नहीं उगेंगे!

निराश चिंतन से जिंदगी में, ख़ुशी का सूरज नहीं निकलता!
निराश होकर के जिंदगी में, नहीं मिलेगी कभी सफलता!"


"दुःख और सुख जिंदगी के हिस्से हैं! निराशा के साथ जिंदगी जीना,
जीवन की निर्णायक सोच को प्रभावित करता है! निराशा व्यक्ति के जिंदगी से
उसके साहस का अंत करती है और वो व्यक्ति सबल होते हुए भी
अपनी हिम्मत/ मेहनत का अंत कर देता है! तो आइये आशावान बनें!

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक- २४.११.२०११









 

Saturday, 19 November 2011

♥दहेज़ की अगन♥


"♥♥♥♥♥♥♥♥दहेज़ की अगन♥♥♥♥♥♥♥♥♥
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी!
नए माहौल में उसने नई दुनिया वसाई थी!
वो जिसको मांग में सिंदूर भरकर पूजती रहती,
उसी लोभी ने उसकी देह की होली जलाई थी!

उन्हें करके भी ऐसे पाप, न अवसाद होता है!
तमाशा देखते हैं वो, कोई बरबाद होता है!

पड़ी है राख- चिंगारी जहाँ मखमल बिछाई थी!
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी......

पिता ने कर्ज लेकर के ब्याह उसका रचाया था!
उधर से मांग जो आई वही सामान लाया था!
बड़ी आशाओं से उसने दिया था हाथ बेटी का,
नयन में नीर भरके बेटी को डोली बिठाया था!

कभी सोचा भी ना था बेटी का ये हाल कर देंगे!
वो उसकी चांदनी को इस तरह से लाल कर देंगे!

हुई दुनिया से वो रुखसत, करी जिसकी विदाई थी!
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी......

हजारों नारियों के साथ ऐसा रोज करते हैं!
कभी प्रहार करते हैं, कभी आरोप जड़ते हैं!
यहाँ लगती हैं मिथ्या "देव" नारी मुक्ति की बातें,
यहाँ नारी के रखवाले ही उनसे युद्ध लड़ते हैं!

पति की आयु-वृद्धि को, सदा मंदिर भी जाती थी!
चरण छूती थी भगवन के, वहां मस्तक झुकाती थी!

उसी ने मौत दी, जिसके लिए बाती जलाई थी!
बड़े अरमान लेकर के पति के घर वो आई थी!"


" दहेज़ के लिए नारी की देह को जलाना, उत्पीड़न करना, आज भी व्यापक स्तर पर है! नारी भी मानव है, पीड़ा की अनुभूति उसे भी होती है! आखिर हम प्रेम और अपनेपन की बजाये क्यूँ विवाह जैसे बंधन में सौदेबाजी करते हैं और मनचाहा ना मिलने पर ऐसी अमानवीय हरकत करते हैं! तो आइये इस दशा को सँभालने में अपने स्तर से सहयोग करें!-
   दिनांक--२०-११-2011                                        चेतन रामकिशन "देव"

Thursday, 17 November 2011

♥♥धुंधली चांदनी ♥♥


"♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥धुंधली चांदनी ♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सुबह की लाल किरणें हों या रात की हो चांदनी!
बिन तेरे ए सनम मेरे, धुंधली है हर एक रोशनी!
ये जहाँ तुम बिन अधूरा लग रहा है रात-दिन,
लौट आओ फिर सनम तुम, दूर कर दो हर कमी!

घर का हर कोना है सूना, बिन तेरी आवाज के!
कल के सपने भी हैं टूटे, टूटे सपने आज के!

तेरे बिन हर एक ख़ुशी है, घर के बाहर ही थमी!
सुबह की लाल किरणें हों या रात की हो चांदनी..............

कोई धुन मन को न भाए, तेरी पायल के सिवा!
चल रहीं हैं आँधियां पर, लग रही चुप चुप हवा!
अब दवायें कम न करतीं, मेरी पीड़ा की तड़प,
तेरे हाथों के छुअन बिन, बेअसर है हर दवा!

जिंदगी लगती है सूनी, बिन तुम्हारे साथ के!
उंगलिया भी आना चाहें, पास तेरे हाथ के!

बिन तेरे ना हैं सुहाते, चाँद, तारे और जमीं!
सुबह की लाल किरणें हों या रात की हो चांदनी..............

तुम न जाने क्यूँ गए हो, तोड़के हर एक कसम!
एक पल भी क्या तुम्हें हम, याद न आए सनम!
"देव" तेरे बिन जहाँ में, बस तिमिर की छांव है,
बिन तेरे जीवन अधूरा, है अधूरा ये जनम!

तेरे बिन बेजान लगते, शब्द भी और सार भी!
मन भी मेरा रो रहा है, टूटे दिल के तार भी!

बिन तुम्हारे रहती है इन, आँखों में हर दम नमी!
सुबह की लाल किरणें हों या रात की हो चांदनी!"


"किसी अपने के जीवन से चले जाने से, जीवन का पक्ष निश्चित रूप से प्रभावित होता है! व्यक्ति, जीवित रहते हुए भी अकेला रहता है और हतौत्साहित रहता है! उसके जीवन का अकेलापन उसके साहस को कुरेदता है! तो आइये किसी के जीवन से जाने से पहले सोचें--------चेतन रामकिशन "देव"



Tuesday, 15 November 2011

माँ( ममतामयी छवि)♥

"♥♥♥♥ माँ( ममतामयी छवि)♥♥♥♥♥♥
वो प्रेम है, दुलार है, ममतामयी छवि है!
लोरी हमे सुनाती, वो स्नेह की छवि है!
दुनिया में कोई दूसरा उस जैसा नहीं है,
चंदा की चांदनी है वो, प्रकाश का रवि है!

हे माँ! तुम्हारी तुलना कोई कर नहीं सकता!
गणना तुम्हारे त्याग की कोई कर नहीं सकता!

संसार के हर रत्न से अनमोल वो निधि है!
वो प्रेम है, दुलार है, ममतामयी छवि है........

वो सत्य का दर्पण है,वो आशाओं की लड़ी!
दुर्गम कठिन पथों पे है माँ साथ में खड़ी!
मिथ्या का रंग उसपे कभी चढ़ नहीं पाया,
बातें हैं मेरी माँ की सदा सत्य से जड़ी!

हे माँ! तुम्हारी तुलना कोई कर नहीं सकता!
गणना तुम्हारे त्याग की कोई कर नहीं सकता!

करुणा के छीर जैसी माँ बहती हुई नदी है!
वो प्रेम है, दुलार है, ममतामयी छवि है........

खुद रहके भी दुखों में हमें, हर्ष माँ देती!
उलझन को हमारी सदा निष्कर्ष माँ देती!
आओ के "देव" माँ की करें वंदना सभी,
देती है जन्म भी हमें उत्कर्ष माँ देती!

हे माँ! तुम्हारी तुलना कोई कर नहीं सकता!
गणना तुम्हारे त्याग की कोई कर नहीं सकता!

माँ के ह्रदय में कोई कपट और न बदी है!
वो प्रेम है, दुलार है, ममतामयी छवि है!"


"माँ- के बारे में लिखने के लिए संसार का हर शब्दकोष छोटा है! माँ अतुलनीय है! माँ वन्दनीय है! माँ अनमोल है! माँ संसार की सबसे अमूल्य निधि है! तो आइये माँ का सम्मान करें-------चेतन रामकिशन "देव"






Tuesday, 18 October 2011

*आई वही गुलामी***


**********आई वही गुलामी****************
"एक दिवस की आजादी थी, आई वही गुलामी!
माँ जननी की तस्वीरें फिर, लगती हमे पुरानी!
झंडे भी तह करके हमने, बक्सों में रख डाले,
सुप्त हो गया चिंतन मंथन, शीतल हुई जवानी!

जकड़ गयी माँ जननी फिर से, जागा भ्रष्टाचार!
सत्ताधारी दमन कर रहे, जनता का अधिकार!

लहू की स्याही सूख गई है, कैसे बढ़े कहानी!
एक दिवस की आजादी थी, आई पुन: गुलामी..........

इन्कलाब के नारों की भी, शांत हुई आवाज!
जंग लग गया है पंखो में, सुप्त हुई परवाज!
चोराहों पर पड़े सुनाई, फिर से फूहड़ गीत,
तहखाने में डाल दिए हैं, राष्ट्रगान के साज!

अंग्रेजो का रूप धर रही, देश की हर सरकार!
सिंहासन देने वालों पर, करती अत्याचार!

अरबों में भी नहीं है कोई , भगत सा स्वाभिमानी!
एक दिवस की आजादी थी, आई वही गुलामी!

आजादी के दिन ही बंटती, निर्धन को खैरात!
अँधेरे में फुटपाथों पर कटती उसकी रात!
चौराहे पर मिलती रहती, भूखी प्यासी लाश,
किन्तु शासन प्रशासन को आम हुई ये बात!

देश की धड़कन थमी "देव" है,  न उर्जा संचार!
सत्ताधारी दमन कर रहे, जनता का अधिकार!

नेताओं ने बदले चेहरे, नियत वही पुरानी!
एक दिवस की आजादी थी, आई वही गुलामी!"


"१५ अगस्त की आजादी हमने जी ली! जमकर नारे लगा लिए, फिर गुलामी आ गयी है, क्यूंकि हमने देश से कभी उस तरह प्रेम ही नहीं किया, जैसे माँ के साथ करते हैं! जैसे प्रेयसी के साथ करते हैं! तो चलो हम सबको फिर से गुलामी मुबारक- चेतन रामकिशन "देव"

♥सोच का परिवर्तन ♥


"♥♥♥♥♥♥सोच का परिवर्तन ♥♥♥♥♥♥
मन में अपने प्रेम रखो तुम, होठों पे मुस्कान!
आगे बढ़ने से पहले पर, त्याग चलो अभिमान!
साहस को जीवन में भरके, सच्चाई के साथ,
मजहब से ऊपर उठकर के, बनो जरा इंसान!

नैतिकता और मर्यादा का कभी न करना ह्रास!
ना कमजोरी लाना मन में, ना टूटे विश्वास!

सबको अपने गले लगाओ, सबको दो सम्मान!
मन में अपने प्रेम रखो तुम, होठों पे मुस्कान...............

जीवन में मुश्किल से डरकर, ना होना भयभीत!
कदम बढ़ाना सही दिशा में, मिलेगी तुमको जीत!
किसी के घावों पर मरहम का तुम कर देना लेप,
पत्थर में भी जग जाएगी, मानव जैसे प्रीत!

कभी उड़ाना ना निर्धन का, तुम मित्रों उपहास!
नहीं कोई ऊँचा नीचा है, सब अपने हैं खास!

मानवता का कभी ना करना तुम कोई अपमान!
मन में अपने प्रेम रखो तुम, होठों पे मुस्कान............

मृत्य का भय करना छोड़ो, ना मानो तुम हार!
खुद तुममें ईश्वर रहता है, तुम हो रचनाधार!
"देव" जगाओ अपने मन में तुम चिंतन की सोच,
ऐसा एक इतिहास बनाओ, याद करे संसार!

सच्चाई के दम के आगे तो झुकता आकाश!
आओ करें हम इस जीवन में एक ऐसा प्रकाश!

इन शब्दों से आप सभी का करता हूँ आह्वान!
मन में अपने प्रेम रखो तुम, होठों पे मुस्कान!"


"जीवन, महज जीने का नाम नहीं है! बल्कि कुछ कर दिखाने का, इतिहास बनाने का नाम है! एक दूजे से प्रेम करने का नाम है! तो आइये सोच का परिवर्तन करें!-चेतन रामकिशन "देव"