Sunday, 20 April 2014

♥♥♥प्यार का उन्वान...♥♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार का उन्वान...♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
हरफ़ तुम्ही से नूरानी है और ग़ज़ल की शान तुम्ही हो!
मेरे गीतों का, कविता का, हमदम ये उन्वान तुम्ही हो!
गहराई से समां गयीं तुम, मेरी रूह में, मेरे दिल में, 
नाम भले ही मेरा हो पर, मेरी हर पहचान तुम्ही हो!

तुम्हे देखकर हँस लेता हूँ, तुम्हे देखकर लिख लेता हूँ!
तुम्हे सोचकर घने स्याह में, चाँद सरीखा दिख लेता हूँ!

मुश्किल के हालातों में भी, मंजिल हर आसान तुम्ही हो!
हरफ़ तुम्ही से नूरानी है और ग़ज़ल की शान तुम्ही हो....

तुमसे मिलना अच्छा लगता, तुम्हे देखना मन को भाये! 
बिना तुम्हारे दिन सूना है और रात को नींद न आये!
"देव" तुम्हारे प्यार से बढ़कर, नहीं जहाँ में कुछ भी लगता,
इसीलिए तेरी खुशबु से, फूलों की रंगत खिल जाये!

बिना तुम्हारे आँगन सूना, सूना सूना घर होता है!
हाथ तुम्हारा चलूँ पकड़ कर, खो जाने का डर होता है!

मेरे तन की रक्त शिराओं और धड़कन की जान तुम्ही हो!
हरफ़ तुम्ही से नूरानी है और ग़ज़ल की शान तुम्ही हो!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................
दिनांक-२०.०४.२०१४

♥♥खुशियों की लकीरें...♥♥

♥♥♥♥♥♥खुशियों की लकीरें...♥♥♥♥♥♥♥
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं!
क्यूँ कड़क धूप में भी, आँख ये मेरी नम हैं!
क्या मैं इंसान नहीं, बुत या कोई पुतला हूँ,
क्यूँ मेरे खून में शामिल, ये हजारों ग़म हैं!

क्या मुझे हँसने का, खुश होने का हक़ कोई नहीं!
क्या मुझे चैन से सोने का भी, हक़ कोई नहीं!
क्यों उदासी पे मेरी लोग सवालात करें,
क्या मुझे खुलके यहाँ रोने का, हक़ कोई नहीं!

तोड़ दे कोई, क्यूँ ज़ज्बात मेरे, बेदम हैं!
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं...

क्यों मेरी आह को सुनकर भी निकल जाते हैं!
लोग अपने भी यहाँ, देखो बदल जाते हैं!
"देव", नातों में, मोहब्बत में, हुई है ग़ुरबत,
मोम के रिश्ते हैं पल भर में पिघल जाते हैं!

भीड़ होकर भी हैं तन्हा, की अधूरे हम हैं!
क्यूँ मेरे हाथ में खुशियों की लकीरें कम हैं!"

............चेतन रामकिशन "देव".......

Tuesday, 15 April 2014

♥चैन के दो पल...♥


♥♥♥चैन के दो पल...♥♥♥
चैन से दो पल सोना चाहूँ!
कुछ सपनों में खोना चाहूँ!
कभी किसी अपने की गोदी,
में सर रखकर रोना चाहूँ!
कभी मैं अपने दिल की बंजर,
भूमि पे कुछ बोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!

कभी सोचता हूँ बच्चा बन,
माँ की लोरी को मैं सुन लूँ!
कभी सोचता हूँ बगिया से,
फूल कोई उल्फत का चुन लूँ!

कभी मैं बारिश के पानी से,
अपनी पलक भिगोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!

बड़ा दर्द अब घुला रगों में,
और हथेली फटी हुईं हैं!
नसें प्यार की जो दिल में थीं,
वो भी अब तो कटी हुईं हैं!
पैरों में भी पड़े हैं छाले,
पगडण्डी सब बँटी हुईं हैं!
और मेरी हँसती सूरत पे,
अब मायूसी अटी हुईं हैं!

दर्द ही जब लिखा किस्मत में,
तो इससे क्यों नफरत कर लूँ!
आँखों में अंगारे लेकर,
कैसे दिल को पत्थर कर लूँ!

इसीलिए आंसू की बूंदें,
पल भर नहीं सुखोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!

"देव" किसी ने साथ दिया न,
खुद ही टूटे दिल को जोड़ा!
झूठी खुशियों के लेपन से,
ग़म का रंग बदलना छोड़ा!
स्थिर होकर जीना सीखा,
झूठ की खातिर ढ़लना छोड़ा!
और किसी के इंतजार में,
मैंने अब तो जलना छोड़ा!

बना लिया है दवा दर्द को,
तन्हाई को साथी कर लूँ!
उम्मीदों की धूप सजाकर,
अपने घर को रौशन कर लूँ!

एहसासों की गहराई में,
खुद को बहुत डुबोना चाहूँ!
कभी ओस की बूंदो से मैं,
अपना चेहरा धोना चाहूँ!"

चेतन रामकिशन "देव"
दिनांक-१५.०४.२०१४ 

" सर्वाधिकार सुरक्षित, मेरी ये रचना मेरे ब्लॉग पर पूर्व प्रकाशित "

Monday, 14 April 2014

♥आँखों की नदी...♥

♥♥♥♥♥♥♥आँखों की नदी...♥♥♥♥♥♥♥♥♥
ढूंढकर भी मुझे जब तू नहीं मिल पाती है!
मेरी आँखों की नदी फिर से मचल जाती है!

तुझको इल्ज़ामों से फुर्सत ही नहीं मैं क्या करूँ,
जिंदगी पेश-ए-सफाई में निकल जाती है!

जैसा बोओगे वही वैसा काटना होगा,
ख़ार बोने से कहाँ गुल की फसल आती है!

जिंदगी में कोई जब देता सहारा हक़ से,
लड़खड़ाती हुयी दुनिया भी संभल जाती है!

तेरे बदलाव से हैरानगी नहीं मुझको,
मोम की कांच तो पल भर में पिघल जाती है!

मलके मरहम भी नहीं, चैन मयस्सर हमको,
दर्द की आंच से ये, रूह भी जल जाती है!

"देव" चेहरे से नहीं गम के निशां मिटने दिए,
वरना सूरत तो यहाँ पल में बदल जाती है!

...........चेतन रामकिशन "देव".............
दिनांक-१५.०४.२०१४ 

♥♥♥आरोपित प्रेम..♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥आरोपित प्रेम..♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्या आरोप लगा देने से, प्रेम कला में सिद्धि होती!
क्या आरोप लगा देना ही, भावों की उपलब्धि होती!
क्यों आरोप लगाकर अपने, प्रेम को साबित करते हैं हम,
मगर जान लो आरोपों से, नहीं प्रेम में वृद्धि होती! 

सच्चाई को कहना सीखो, सच गलती को दूर करेगा!
पर केवल आरोपण करना, रोने को मजबूर करेगा!

घर आँगन में आरोपों से, नहीं कोई प्रसिद्धि होती!
क्या आरोप लगा देने से, प्रेम कला में सिद्धि होती...

आरोपों का अर्थ कठिन है, कहने में आसान रहा हो!
आरोपित व्यक्ति क्या बोले, वो जिससे अनजान रहा हो!
"देव" प्रेम के पथ में देखो, आरोपों से पीड़ा मिलती,
मानो अब तक प्यार वफ़ा के, रिश्तों में एहसान रहा हो!

एक दूजे में रखो आस्था और मन में विश्वास रखो तुम!
सच्चाई और अपनेपन का, बस दिल में एहसास रखो तुम!

आरोपों की बरसातों से, नहीं कोई समृद्धि होती!
क्या आरोप लगा देने से, प्रेम कला में सिद्धि होती!"

..................चेतन रामकिशन "देव".................
दिनांक-१४.०४.२०१४

Sunday, 13 April 2014

♥♥काँटों का हार…♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥काँटों का हार…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
मन में फिर धुंधला धुंधला सा, ख्वाबों का एक जाल बुना है! 
सबको दी है गुलों की माला, खुद काँटों का हार चुना है!
वैसे तो दावे करते थे, लोग हजारों अपनायत के,
साथ किसी ने नहीं दिया पर, दिल ने मेरा हाल सुना है!

इसीलिए अपनी पीड़ा को, अपने दिल से कह लेता हूँ!
सांस बहुत भारी हैं लेकिन, फिर भी जिंदा रह लेता हूँ!

असर भला कैसा होगा जब, दर्द दवा से कई गुना है!
मन में फिर धुंधला धुंधला सा, ख्वाबों का एक जाल बुना है... 

अरमानों का गला काटकर, उनको बेदम कर लेता हूँ!
नमक लगाकर मैं ज़ख्मों पर, पीड़ा को कम कर लेता हूँ!
"देव" मेरे दिल की ये बंजर, भूमि जब भी पानी मांगे,
मैं आँखों से धार बहाकर, खुद उसको नम कर लेता हूँ!

अम्बर के तारे गिन गिन कर, वक़्त रात का काट रहा हूँ!
अपने दामन से पीड़ा के, फूटे अंकुर छांट रहा हूँ!

लफ़्जों का दिल भर आया है, जब दिल का एहसास सुना है!
मन में फिर धुंधला धुंधला सा, ख्वाबों का एक जाल बुना है! "

........................चेतन रामकिशन "देव"…..................
दिनांक-१३.०४.२०१४

Saturday, 12 April 2014

♥मासूम मोहब्बत …♥

♥♥♥♥मासूम मोहब्बत …♥♥♥♥
गुनगुनाते हुए लम्हों की कसम!
खिलखिलाते हुए ग़ुलों की कसम!
प्यार तुमसे है, कह रहा हूँ मैं,
जगमगाते हुए दीयों की कसम!

तेरी नाराज़गी के डर से ही,
अपने जज़्बात में छुपाता हूँ!
देख लेता हूँ तुमको छुप छुप कर,
दिल ही दिल में, मैं मुस्कुराता हूँ!
सोचता हूँ तुम्हे अकेले में,
और ख्यालों में तुमको पाता हूँ!
तुम क्या जानो के बेबसी कितनी,
सांसें तक भी मैं भूल जाता हूँ!

तुम ही पढ़ लो वफ़ा निगाहों में,
गीत, ग़ज़लों की, कहकहो की कसम!
प्यार तुमसे है, कह रहा हूँ मैं,
जगमगाते हुए दीयों की कसम...

अपनी पलकों को जब, झुकाती हो!
बड़ी प्यारी सी नजर, आती हो!
देखकर तुमको जिंदगी मिलती,
एक उम्मीद सी जगाती हो!
"देव" तुमसे ही मुझमें प्यार जगे,
सारी दुनिया में तुम ही भाती हो,
मेरे एहसास के उजालों में,
तुम ही दीया हो और बाती हो!

काश बिन बोले तुम समझ जाओ,
प्यार की उन सभी हदों की कसम!
प्यार तुमसे है , कह रहा हूँ मैं,
जगमगाते हुए दीयों की कसम!"

....चेतन रामकिशन "देव"…....
दिनांक- १२.०४.२०१४

Thursday, 10 April 2014

♥♥जीवन पथ पर साथ रहो तुम…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥जीवन पथ पर साथ रहो तुम…♥♥♥♥♥♥♥
जीवन पथ पर साथ रहो तुम, मुझे अकेले डर लगता है!
बिना तुम्हारे मुझको अपना सूना सूना घर लगता है!
तुमको जबसे पाया मैंने, आदत मुझको हुयी तुम्हारी!
इसीलिए तुमको खोने का, गुम होना का डर लगता है!

इश्क़ है तुमसे और मोहब्बत, और हमारा प्यार तुम्ही हो!
मेरे जीवन की कुटिया में, खुशियों का संसार तुम्ही हो!

तेरी ज़ुल्फ़ों की बूंदों से, भीगा ये अम्बर लगता है! 
जीवन पथ पर साथ रहो तुम, मुझे अकेले डर लगता है!

नहीं दूर जाना पल भर भी, एक पल मुझको साल लगे है!
बिना तुम्हारे दिल न सोये, सारी सारी रात जगे है!
"देव" तुम्हारा रूप देखकर, हंसी चांदनी खिल जाती है,
और मेरे जीवन को हमदम, धूप प्यार की मिल जाती है!

पेड़ों के छाया की नीचे, चुपके चुपके बात करेंगे!
तेरे प्यार में ही दिन होगा, तेरे प्यार में रात करेंगे! 

बिना तुम्हारे थमी उड़ानें, टूटा टूटा पर लगता है!
जीवन पथ पर साथ रहो तुम, मुझे अकेले डर लगता है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"…...................
दिनांक- ११.०४.२०१४

♥तेरा एहसास…♥

♥♥♥तेरा एहसास…♥♥♥
तेरे एहसास का सहारा है!
दर्द भी टूटकर के हारा है!

तेरे पैरों के उन निशानों से,
देखो पावन ये घर हमारा है!

मोतियों की तरह चमकने लगा,
जब से लफ्ज़ों में ग़म उतारा है!

तेरे जाने के बाद तन्हाई,
हर तरफ तेरा ही नज़ारा है!

तोड़कर सरहदें चली आयें,
तेरी यादों का जब पुकारा है!

हाँ मैं खुश हूँ तेरी दुआओं से,
बिन दवाओं के ही गुज़ारा है!

"देव" तुमको भुला नहीं सकता,
दिल से धोखा नहीं ग़वारा है!"

.....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक- १०.०४.२०१४

Tuesday, 1 April 2014

♥दर्द की दुकान…♥♥

♥♥♥♥दर्द की दुकान…♥♥♥♥♥
मुझमें थोड़ी सी जान रहने दो!
दर्द की ये दुकान रहने दो!

गा सकूँ जो मैं अपनी ग़ज़लों को,
ग़म का साजोसामान रहने दो!

फिर न करना जफ़ा किसी के संग,
दिल में इतना ईमान रहने दो!

सोने चांदी की ख्वाहिशें न मुझे,
मेरा कच्चा मकान रहने दो!

घाव लफ्ज़ों का न भरे जल्दी,
अपने वश में जबान रहने दो!

चांदनी से बदन को धो लो मगर,
दिल पे ग़म के निशान रहने दो!

"देव" मिलने पे न चुराना नजर,
आज बेशक गुमान रहने दो!"

.....चेतन रामकिशन "देव"…..
दिनांक- ०१.०४.२०१४

Monday, 31 March 2014

♥बेबसी का तूफान…♥

♥♥♥बेबसी का तूफान…♥♥♥♥
दिल में तूफान बेबसी का है!
दर्द कितना ये मुफ़लिसी का है!

दिल पे पत्थर मैं रखके जीता हूँ,
वरना आलम तो ख़ुदकुशी का है!

सांस भारी हैं और बेचैनी,
इम्तहां आज फिर किसी का है!

सारी दुनिया में बह रही खुशियां,
मेरा मौसम तो नाख़ुशी का है!

लोग इल्ज़ाम यूँ लगाते हैं,
जैसे ईनाम ये ख़ुशी का है!

मेरा दिल तोड़कर के वो बोले,
ये खिलौना महज हँसी का है!

"देव" जो रूह से निभाएगा,
प्यार में मुझपे, हक़ उसी का है!"

........चेतन रामकिशन "देव"…......
दिनांक- ०१.०४.२०१४

Sunday, 30 March 2014

♥♥अश्कों की नदियां…♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥अश्कों की नदियां…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
अश्कों की नदियां हैं लेकिन, होठ मेरे फिर भी सूखे हैं!
नमी नहीं है भावनाओं में, सब रिश्ते नाते रूखे हैं!
आज प्यार की परिभाषा का, पूरा ढांचा बदल गया है,
रूह की चाहत नहीं रही है, लोग बदन के बस भूखे हैं!

नहीं पता कैसी दुनिया है, अपनायत की चाह नहीं है!
नफरत के कांटे हैं पथ पर, समरसता की राह नहीं है!

भारत उदय हुआ है लेकिन, देश के निर्धन क्यूँ भूखे हैं!
अश्कों की नदियां हैं लेकिन, होठ मेरे फिर भी सूखे हैं!

बोझ समझकर माँ बाबा को, आज उन्हें दुत्कारा जाता!
आज महज दौलत की खातिर, खूँ का रिश्ता भी मिट जाता!
बस अपनी खुशियों की खातिर, भूल गए हम अपनेपन को,
सब चाहते हैं हंसी ठहाके, नहीं किसी के दुःख से नाता!

ये इक्कीसवीं सदी है जिसमें, रिश्ते नाते नाम के होते!
नातेदारी होती उनसे, जो बस अपने काम के होते!

घायल मर जाते सड़कों पर, दया के सब सागर सूखे हैं!
अश्कों की नदियां हैं लेकिन, होठ मेरे फिर भी सूखे हैं!

ऐसा आलम देख कविमन और कलम मुरझा जाते हैं!
भाव दर्द के इनके मन में और कलम में घुल जाते हैं!
"देव" गांव की वो पगडण्डी, मुझे शहर से प्यारी लगती,
जहाँ पेड़ की छाया नीचे, हम कुदरत से मिल जाते हैं!

मगर शहर के के इस धुयें ने, मानवता को मंद कर दिया!
प्यार की सुन्दर किरणों वाले, हर रस्ते को बंद कर दिया!


रोता है ये मेरा मन भी,  भाव स्याही के सूखे हैं!
अश्कों की नदियां हैं लेकिन, होठ मेरे फिर भी सूखे हैं!"

................चेतन रामकिशन "देव"…...............
दिनांक- ३०.०३.२०१४ 

Saturday, 29 March 2014

♥यादों का एहसास…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥यादों का एहसास…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
सांसें भले उधारी की हों, खुद को जिन्दा रख लेते हैं!
जब भी प्यास लगे अधरों को, खुद के आंसू चख लेते हैं!
नहीं पता कब तुझे देखने की, हसरत हो जाये दिल को,
इसीलिए तस्वीर तुम्हारी, हम कमरे में रख लेते हैं!  

बड़ा ही गहरा दर्द प्यार का, दवा असर न कर पाती है!
इंसां बेशक मर जाते हैं, याद न लेकिन मर पाती है!

इसीलिए तेरी यादों का, दिल पे पत्थर रख लेते हैं!
सांसें भले उधारी की हों, खुद को जिन्दा रख लेते हैं!

तुमसे दिल का रिश्ता है हम, इसीलिए न गिला करेंगे!
घाव मुझे तुम देती जाओ, सबको हंसकर सिला करेंगे!
"देव" अगर तुम मुझे देखकर, खिड़की के परदे ढ़क लोगी,
तो हम तेरी तस्वीरों से, एहसासों में मिला करेंगे!

अपने दिल को समझा लेंगे, न तुमसे फरियाद करेंगे!
तुझे खबर न होगी तुझको, हम चुपके से याद करेंगे!

तेरी याद के एहसासों को, गीत, ग़ज़ल में लिख लेते हैं!
सांसें भले उधारी की हों, खुद को जिन्दा रख लेते हैं!"

................चेतन रामकिशन "देव"…...............
दिनांक- २९.०३.२०१४  

Thursday, 27 March 2014

♥माँ के लफ्ज़…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥माँ के लफ्ज़…♥♥♥♥♥♥♥♥♥
माँ के लफ्ज़ों से दुआओं की फसल खिल जाये!
माँ के एहसास से खुशियों का कमल खिल जाये!
दूध से अपने भुजाओं में, बल भरा मेरी,
माँ के आँचल में मुझे, सारी खुशी मिल जाये!

माँ की आवाज़ ने जब भी मुझे पुकारा है!
मुझे उस वक़्त मिला, प्यार बहुत सारा है!

माँ के छूने से, चुभा काँटा भी निकल जाये!
माँ के लफ्जों से दुआओं की फसल खिल जाये!

माँ की आँखों में सितारों की चमक रहती है!
माँ की बोली में सुरों जैसी खनक रहती है!
बंद आँखों से भी कर लेती नजारा है माँ,
माँ को संतान की पीड़ा की भनक रहती है!

माँ का दिल प्यारा है, सूरत भी बड़ी भोली है!
माँ की ममता से दीवाली है, मेरी होली है!

माँ के होने से, अंधेरों में दीया जल जाये!
माँ के लफ्जों से दुआओं की फसल खिल जाये!

माँ की आँखों में नहीं आंसू, हमें भरने हैं!
माँ के दिल के भी नहीं टुकड़े हमें करने हैं!
"देव" धरती पे है भगवान की छाया माँ में,
हमको दुख दर्द यहाँ, माँ के सभी हरने हैं!

माँ के सपनों को सजाने के लिए जुट जाओ!
माँ के जीवन के लिए, हँसके यहाँ मिट जाओ!

माँ का किरदार नहीं कोई भी बदल पाये!
माँ के लफ्जों से दुआओं की फसल खिल जाये!"


(अपनी दोनों माताओं कमला देवी जी एवं प्रेमलता जी को सादर समर्पित)

....चेतन रामकिशन "देव"….
दिनांक- २७.०३.२०१४ 

Tuesday, 25 March 2014

♥♥♥दिल की चुप्पी…♥♥♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥दिल की चुप्पी…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
गतिशीलता मंद हो गयी, सीने में दिल चुप रहता है!
मुट्ठी भर होकर भी देखो, पर्वत जैसा दुख सहता है!
इस दुनिया में न हर कोई, सुनता देखो दर्द किसी का,
इसीलिए तो सोच समझकर, ये अपनी पीड़ा कहता है!

कभी ग़ज़ल को, कभी गीत को, भावुकता से भर देता है!
कभी किसी की खातिर देखो, दुआ हजारों कर देता है!

नहीं कराहता कभी जोर से, आँखों से चुप चुप बहता है!
गतिशीलता मंद हो गयी, सीने में दिल चुप रहता है....

कभी किसी अपने के हाथों, बेदर्दी से छल जाता है!
कभी किसी की खातिर देखो, दीपक जैसे जल जाता है!
"देव" कभी इंसान के दुख में, संग साथ में रोता है ये,
और कभी खुशियों में देखो, फूलों जैसा खिल जाता है!

कपट सिखाते हम ही इसको, जनम से ये पावन होता है!
बड़ा दयालु होता है ये, इसका सुन्दर मन होता है!

अपनी इच्छा मार के देखो, दंड हमारा ये सहता है!
गतिशीलता मंद हो गयी, सीने में दिल चुप रहता है!"

.................चेतन रामकिशन "देव"..................
दिनांक- २५.०३.२०१४ 

♥♥इल्ज़ाम…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥इल्ज़ाम…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
क्या इल्ज़ाम लगा देने से, रंग प्यार का खिल जाता है!
क्या इल्ज़ाम लगा देने से, घाव मनों का सिल जाता है!
इन झूठे इल्ज़ामों से तो, सम्बन्धों में दूरी बढ़ती,
प्यार, वफ़ा का रिश्ता नाता, बस मिट्टी में मिल जाता है!

जो बस खुद को पाक़ समझकर, औरों पर कालिख मलते हैं!
कहाँ भला उनके जीवन में, दीये हक़ीक़त के जलते हैं!

ये क्या जानें इल्ज़ामों से, ये प्यारा दिल छिल जाता है!
क्या इल्ज़ाम लगा देने से, रंग प्यार का खिल जाता है!

कितने भी इल्ज़ाम लगाओ लेकिन सच कब मर पाया है!
इल्ज़ामों का झूठा चेहरा, एक दिन क़दमों में आया है!
"देव" जहाँ में इल्ज़ामों से, रिश्ते नाते खंडित होते,
इल्ज़ामों की आंच में तपकर, खिलता घर भी मुरझाया है!

इन झूठे इल्ज़ामों के बिन, जब भी प्यार किया जाता है!
वही प्यार देखो दुनिया में, दिल से यहाँ किया जाता है!

इल्ज़ामों की चोट से देखो, घर, आंगन सब हिल जाता है!
क्या इल्ज़ाम लगा देने से, रंग प्यार का खिल जाता है!"

..................चेतन रामकिशन "देव"...................... 
दिनांक- २४.०३.२०१४ 

Saturday, 22 March 2014

♥♥प्रतीक्षा…♥♥

♥♥♥♥प्रतीक्षा…♥♥♥♥
मेरे हाथ पे हाथ रखोगी!
प्यार वफ़ा की बात कहोगी!
कभी दुआ में, कभी याद में,
हमदम मेरे साथ रहोगी!

कभी देख तेरी तस्वीरें,
हौले हौले बात करूँगा!
कभी रहूँगा तनहा दिन भर,
कभी तड़प में रात करूँगा!
कभी तुम्हारी आहट पाकर,
खिड़की के परदे खिसका दूँ,
कभी तुम्हारे क़दमों नीचे,
फूलों की सौगात करूँगा!

मेरे मन के पृष्ठ पटल पर,
गंगाजल सी तुम्ही बहोगी!
कभी दुआ में, कभी याद में,
हमदम मेरे साथ रहोगी...

कभी जुदाई की बातों में,
मेरे व्याकुल ज़ज्बातों में!
याद करूँगा हर पल तुमको,
सुख दुख के सब हालातों में!
तुम्हे देखने की हसरत में,
हर पल मैं प्रतीक्षा करता,
"देव" कभी मिलने आ जाना,
तुम सावन की बरसातों में!

यकीं है मुझको एक दिन तुम भी,
प्यार के ढाई लफ्ज़ कहोगी !
कभी दुआ में, कभी याद में,
हमदम मेरे साथ रहोगी!"

....चेतन रामकिशन "देव"....
दिनांक- २२.०३.२०१४

Thursday, 20 March 2014

♥मेरे जीवन में…♥

♥♥♥♥मेरे जीवन में…♥♥♥♥
बनकर चाँद मेरे आंगन में!
चली आओ मेरे जीवन में!
तुझसे हर एहसास पनपता,
वसी है तू ही अंतर्मन में!

तू दुनिया से न्यारी लगती!
तू फूलों की क्यारी लगती!
बिना तेरे मेरा जग सूना,
तू कोमल और प्यारी लगती...

गंगाजल सी पावन है तू,
खुशबु तेरी घुली पवन में!
तुझसे हर एहसास पनपता,
वसी है तू ही अंतर्मन में!

नैतिकता की सीमा तुझसे!
कविताओं की उपमा तुझसे!
नहीं विरत होने दे पथ से,
शब्दकोष की गरिमा तुझसे...

छुअन तुम्हारी बड़ी ही प्यारी,
नम्र भावना है चिंतन में!
तुझसे हर एहसास पनपता,
वसी है तू ही अंतर्मन में!

भाषा की मीठी बोली में!
तू कुदरत की रंगोली में!

"देव" तुझी से दीवाली है,
तू शामिल मेरी होली में!

खुशबु तेरी, रोटी में है,
स्वाद तुझी से है भोजन में!"

.....चेतन रामकिशन "देव"…….
दिनांक- २०.०३.२०१४

Monday, 17 March 2014

♥♥प्यार के फूल…♥♥

♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥प्यार के फूल…♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥♥
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता!
किसी की खातिर जब मन देखो, रात रात भर जगने लगता!

ऐसे बेचैनी के लम्हों को ही, प्यार कहा जाता है!
एक अनजाने से भी देखो, दिल का रिश्ता बन जाता है! 

दर्द किसी का जब दुनिया में, खुद से ज्यादा लगने लगता!
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता...

जिस की खातिर मर जाने को, मिट जाने को दिल करता है!
उस इंसां के दिल से पूछो, प्यार उसे कितना करता है!

जब कोई ख्वाबों में आकर, चैन सुकूं सब ठगने लगता!
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता...

वो जिसकी सूरत में रब का, वास हमें दिखने लगता है!
जिसकी खातिर कलम हमारा, प्रेम गीत लिखने लगता है!

वो जिसकी खुशबु में हमको, चन्दन शामिल लगने लगता!
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता...

"देव" जहाँ से जिस इंसां से, भाव प्रेम के मिल जाते हैं!
उसको पाकर के जीवन में, फूल ख़ुशी के खिल जाते हैं!

जिसकी खातिर सावन में भी, बादल यहाँ सुलगने लगता!
जब दुनिया की भीड़ से हटकर, कोई अच्छा लगने लगता! "

....................चेतन रामकिशन "देव"…………………..
दिनांक- १७.०३.२०१४

Monday, 10 March 2014

♥झोपड़-पट्टी…♥♥

♥♥♥♥♥♥झोपड़-पट्टी…♥♥♥♥♥♥♥
झोपड़-पट्टी में उजियारा करने को ! 
निर्धन का आँचल खुशियों से भरने को! 
कोई सियासी मुझको नजर नहीं आया,
जो निर्धन के साथ हो, भूखा मरने को!

लम्बे चौड़े भाषण कहना जानें हैं!
यहाँ सियासी झूठी बातें तानें हैं!
इनकी आँख का आंसू महज दिखावा है,
नहीं कभी निर्धन को अपना मानें हैं!

जुटे यहाँ पर ये घोटाले करने को!
झोपड़-पट्टी में उजियारा करने को ! 

कभी यहाँ मज़हब की बातें करते हैं!
भाई को भाई का दुश्मन करते हैं!
"देव" इन्हे अपनी सत्ता से मतलब है,
इसीलिए ये झूठे वादे करते हैं!

लाखों अरबों अपनी झोली भरने को! 
झोपड़-पट्टी में उजियारा करने को ! "

........चेतन रामकिशन "देव"….......
दिनांक-१०.०३.२०१४